एक साल में भारतीय जनता पार्टी ने अपने कई बड़े नेताओं को खो दिया
अरुण जेटली (28 दिसंबर, 1952 से 24 अगस्त, 2019)
24 अगस्त, 2019 को दिल्ली के एम्स में पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली का निधन हो गया। वह लंबे समय से कैंसर की बीमारी से जूझ रहे थे। हाल ही में उन्होंने किडनी ट्रांसप्लांट भी करवाई थी। उनका जीवन उपलब्धियों से भरा था और बतौर वित्त मंत्री उन्होंने कई सुधार करते हुए अर्थव्यवस्था को नई ऊंचाई दी।
1977 में जेटली दिल्ली विश्वविद्यालय में छात्रसंघ के अध्यक्ष चुने गए थे। इसके बाद जेल में इनकी मुलाकात अटल बिहारी वाजपेयी जैसे दिग्गज नेताओं से हुई और उनका राजनीतिक करियर शुरू हुआ। अटल सरकार में वह कानून मंत्री भी रहे। वर्ष 1980 में उन्हें भाजपा यूथ विंग का कार्यभार दिया गया। जेटली प्रधानमंत्री मोदी के काफी करीब थे। 2009 में राज्यसभा में जेटली नेता विपक्ष बने। सरकार को घेरने में वह कोई कसर नहीं छोड़ते थे।
पिछले एक साल में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने अपने कई बड़े नेताओं को खो दिया है। इन नेताओं की कमी देश ही नहीं बल्कि वैश्विक स्तर पर लोगों को महसूस होने वाली है। ये ऐसे नेता थे, जिन्होंने देश के बड़े ओहदों पर रहते हुए खास जिम्मेदारियां संभालीं। शनिवार 24 अगस्त को पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली के निधन पर केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि एक साल में हमने कई नेताओं को खो दिया है।
अटल बिहारी वाजपेयी (25 दिसंबर 1924 से 16 अगस्त 2018)
एक प्रखर वक्ता के रूप में पूरे विश्व में पहचान बनाने वाले पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी साल 2018 में 16 अगस्त को दुनिया छोड़कर चले गए। हर मोर्चे पर अपनी पार्टी के लिए ढ़ाल की तरह खड़े होने वाले वाजपेयी लंबे समय से बीमार थे। 2004 में चुनाव हारने के बाद वाजपेयी ने राजनीति से संन्यास ले लिया था । उसके बाद वह कभी भी सार्वजनिक जीवन में नहीं लौटे ।
देश की राजनीति में उनके अभूतपूर्व योगदान और राष्ट्र को समर्पित उनके जीवन को देखते हुए वर्ष 2015 में उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया। वाजपेयी भाजपा के संस्थापकों में शामिल थे। करीब छह साल तक उन्होंने भारत के प्रधानमंत्री पद की गरिमा भी बढ़ाई। वह पहले ऐसे गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री थे, जिन्होंने पांच साल का कार्यकाल पूरा किया।
अनंत कुमार (22 जुलाई, 1959 से 12 नवंबर, 2018)
एनडीए-एक के कार्यकाल में केंद्रीय मंत्री रहे दिग्गज नेता अनंत कुमार का 12 नवंबर, 2018 को 59 वर्ष की आयु में निधन हो गया। वह कैंसर से पीड़ित थे। उस दौरान वह मोदी सरकार में संसदीय कार्य मंत्री थे। वह इलाज कराने के लिए लंदन और न्यू यॉर्क भी गए थे। 1996 से वह दक्षिणी बेंगलुरु की सीट का प्रतिनिधित्व करते थे। वह कर्नाटक की बात करने में हमेशा अग्रणी रहते थे। उनकी पहचान उन कम लोगों में से थी, जिनको दिल्ली और दक्षिण भारत दोनों स्थानों पर बराबर का सम्मान प्राप्त था। वह पार्टी में दक्षिण भारत और उत्तर भारत के सेतु के रूप में जाने जाते थे।
मनोहर पर्रिकर (13 दिसंबर, 1955 से 17 मार्च, 2019)
रक्षा मंत्री के रूप में देश की अहम जिम्मेदारी संभालने वाले मनोहर पर्रिकर का 63 वर्ष की आयु में 17 मार्च, 2019 को निधन हो गया। वह भी लंबे समय से कैंसर से पीड़ित थे। खराब स्वास्थ्य के दौरान भी वह गोवा के मुख्यमंत्री थे। उन्हें विशेष मांग पर गोवा का मुख्यमंत्री बनाया गया था।
इससे पहले वह केंद्र सरकार में रक्षा मंत्री थे। उनके इस पद पर रहते हुए ही भारत ने पाकिस्तान में आतंकियों पर सर्जिकल स्ट्राइक की थी। पर्रिकर चार बार गोवा के मुख्यमंत्री बने। रक्षा मंत्री के कार्यकाल के दौरान वह राज्यसभा से सांसद थे।
सुषमा स्वराज (14 फरवरी, 1952 से 6 अगस्त, 2019)
भाजपा की दिग्गज वरिष्ठ नेता और प्रखर वक्ता सुषमा स्वराज का कुछ दिन पहले ही अचानक निधन हो गया। स्वास्थ्य ठीक न होने के चलते उन्होंने इस बार चुनाव नहीं लड़ा था। वाजपेयी सरकार में वह सूचना प्रसारण मंत्री थीं और मोदी सरकार में विदेश मंत्री रहते हुए उन्होंने पूरी दुनिया में एक मिसाल पेश की थी। मात्र 25 साल की उम्र में वह राजनीति में आ गई थीं।
1977 में वह हरियाणा में पहली बार विधायक बनीं। इसके बाद 1990 में वह राज्यसभा पहुंच गईं। 1996 में वह दिल्ली से लोकसभा चुनाव जीतीं। वह दिल्ली की मुख्यमंत्री भी रहीं। 2009 और 2014 में वह मध्य प्रदेश के विदिशा से चुनाव लड़कर राज्यसभा पहुंचीं। 2009 से 2014 तक वह नेता प्रतिपक्ष थीं और अपनी बात दमदार तरीके से रखती रहीं।
बाबू लाल गौर (2 जून, 1930 से 21 अगस्त, 2019)
मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर का 21 जून बुधवार को निधन हो गया । 89 वर्षीय गौर लंबे समय से बीमार चल रहे थे। बाबूलाल गौर मप्र के बड़े नेताओं में गिने जाते थे। बाबूलाल गौर का असली नाम बाबूराम यादव था। उनका जन्म 2 जून, 1930 को उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में हुआ था। उन्होंने भोपाल की पुट्ठा मिल में मजदूरी करते हुए अपनी पढ़ाई पूरी की। स्कूल के समय से ही बाबूलाल राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा जाया करते थे। वह कई श्रमिक आंदोलनों से जुड़े और ट्रेड यूनियन पॉलिटिक्स में अपनी पकड़ जमाई। बाबूलाल 'भारतीय मज़दूर संघ' के संस्थापक सदस्य थे।
बाबूलाल गौर 23 अगस्त, 2004 से 29 नवंबर, 2005 तक मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। गौर पहली बार 1974 में भोपाल दक्षिण विधानसभा क्षेत्र के उपचुनाव में जनता समर्थित उम्मीदवार के रूप में निर्दलीय विधायक चुने गये थे। वे 7 मार्च, 1990 से 15 दिसम्बर, 1992 तक मध्य प्रदेश के स्थानीय शासन, विधि एवं विधायी कार्य, संसदीय कार्य, जनसम्पर्क, नगरीय कल्याण, शहरी आवास तथा पुनर्वास एवं 'भोपाल गैस त्रासदी' राहत मंत्री रहे।
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