जीवन की पावन धरा से
जीवन की पावन धरा से इस आलम को सजना है
कहीं छा कहीं धूप छुप-छुपकर इसे सवारना है
नफरत है इस मुल्क में
कहीं मायूसी कहीं खामोशी इस जहां से मतभेद
मिटाकर जीवन धारा से जुड़ना है
जो मुल्क नफरत की आग में सुलग रहा
इससे उबर कर शांति का पाठ पढ़ाना है......
कश्मीर मुद्दा कहीं सियासत आलोचना की तह में
जो अवाम तुल देते जरा अपने दामन में तो देख सियाचिन हो रहे हैं सब.....
बदलती मासूमियत कहीं जुझारु पन में पल रही जिंदगी.....
जीवन की पावन धरा ......
टिप्पणियाँ