माउंट एवरेस्ट विजेता सीमा गोस्वामी की उपलब्धि को केंद्र और राज्य सरकार ने अनदेखा किया

दुनिया के सबसे ऊंचे पर्वत शिखर माउंट एवरेस्ट को फतह करना उसका सपना था। पर्वत पर चढ़ने का मौका उसे उस समय उसको मिला जब वह एन.सी.सी.के दल में शामिल होकर 2009 ई. में भारत की लमखागा पर्वत चोटी पर विजय प्राप्त की। पहाड़ पर चढ़ते-चढ़ते उसकी हिम्मत जवाब दे गई और उसने अपने कान पकड़कर स्वयं से माफी मांगी। वह अपने घर वापस लौट आई। लेकिन पर्वत पर चढ़ने की उसकी चाहत मरी नहीं। 2013 में फिर प्रशिक्षण लिया ओर DKD 2 पे विजय प्राप्त की ।



सीमा गोस्वामी का जन्म हरियाणा के ज़िला कैथल के गांव सीवन में 10 मार्च ,1988.को हुआ। पिता ओइम प्रकाश किसान है,माता विमला देवी है। सीमा ने ग्रेजुएशन के अलावा योगा थेरेपी में डिप्लोमा ,बी.पी.एड तथा फिजिकल में एम.ए. किया। इनके अलावा माउंटेनियरिंग की बेसिक तथा एडवांस की ट्रेनिंग भी ली। बैडमिंटन और एथलेटिक्स में भी हाथ आजमाये। सीमा को रीडिंग, ट्रेवलिंग, गार्डनिंग और माउंटेनियरिंग का शौक रहा। वह शुरू से ही निडर और साहसी रही है.


सीमा ने 2014 में फिर से अभ्यास शुरू कर दिया। वह लड़कियों को पीठ पर लादकर चढ़ाई का अभ्यास करने लगी। वह फिर से पहाड़ पर जाना चाहती थी लेकिन घर की आर्थिक स्थिति नहीं थी। फिर भी मां-बाप ने बेटी के सपने को टूटने नहीं दिया। कुछ चंदा,कुछ सरकारी मदद और कुछ ब्याज पर राशि लेकर 2015 में सीमा एवरेस्ट पर चढ़ाई करने के लिए नेपाल में बेस कैंप में पहुंच गई। तभी नेपाल में जबरदस्त भूकम्प आ गया जिससे वहां भारी तबाही आ गई। मजबूरन सीमा को वापस लौटना पड़ा। हार उनकी होती है जो हिम्मत हार जाते हैं। सीमा ने हिम्मत नहीं हारी। 7,अप्रैल 2016 को दादा खेड़ा की पूजा करके सीमा शेरनी की तरह पहाड़ पर चढ़ने के लिए निकल पड़ी।



8अप्रैल को भूकंप के झटके पर झटके आये। अत: चढ़ाई का काम स्थगित करना पड़ा। 17 म ई 2016 को चढ़ाई शुरू हो गई। 20 म ई 2016 की सुबह 7 बजकर 53 मिनट पर कु०,सीमा गोस्वामी ने माउंट एवरेस्ट पर भारत का तिरंगा झंडा फहराया दिया और वह पर्वतारोहण के इतिहास में एवरेस्ट विजेता बन गई। लौटते हुए उसका सामना मौत से हुआ। उसका ऑक्सीजन का सिलेंडर खत्म हो गया। किसी का वहाँ टूटा हुआ सिलेंडर उसको मिला जिसमें कुछ ऑक्सीजन थी। उसी से काम चलाया। सारा शरीर ठंड से जम गया। 21 मई को बचाव दल ने उसको ढ़ूंढ़ निकाला।


 इस प्रकार से माउंट एवरेस्ट शिखर  को फतह करके सीमा ने सिद्ध कर दिया है कि "हरियाणा की म्हारी छोरी छोरों से कम हैं के ?"  सीमा के मां-बाप की भी तारीफ करनी पड़ेगी कि आर्थिक तंगी होते हुए भी उन्होंने अपनी बेटी के सपने को पूरा किया।


  राज्य सरकार तथा केन्द्र सरकार की ओर से सीमा को उतना प्रोत्साहन नहीं मिला है जिसकी वह ह़कदार है। जब महिला  पहलवानों और क्रिकेटरों को करोड़ों-करोड़ों रूपये दिये जाते हैं और बड़ी-बड़ी नौकरियां दी जाती हैं तो सीमा को ऐसा क्यों नहीं मिला ?


 सीमा गोस्वामी की शिक्षा और उपलब्धियों को देखते हुए उसे पुलिस में डी.एस.पी.की नौकरी मिलनी चाहिए। उसकी उचित आर्थिक सहायता भी करनी चाहिए। उसमें नेतृत्व के गुण हैं और वह नारी सशक्तिकरण की एक मिसाल है। 


टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

उर्दू अकादमी दिल्ली के उर्दू साक्षरता केंद्रों की बहाली के लिए आभार

राजा बहिरवाणी बने सिंधी काउंसिल ऑफ इंडिया दुबई चैप्टर के अध्यक्ष

स्वास्थ्य कल्याण होम्योपैथी व योगा कॉलेजों के दीक्षांत में मिली डिग्रियां

"मुंशी प्रेमचंद के कथा -साहित्य का नारी -विमर्श"