आत्मा जानती है सत्य क्या है
आस्था ईश्वरीय शक्तियों का उपयोग है,हम जिस प्रकार की भावनाओं को अपने मन मस्तिष्क में उजागर करते हैं उसका फल कर्म से जुड़ा होता है आत्मा जानती है सत्य क्या है किन्तु चुनौती तो मन को समझाने में है। आस्था का संगम मन बचन और कर्म की त्रिवेणी है। इस में से एक का भी लोप होना पाताल गंगा जैसा है। अर्थात फल प्राप्त न होना।
फसलें किसान इस उम्मीद और आस्था से बोता है कि उसे लाभ मिले, किंतु बर्षा के अभाव में वह यदि वैकल्पिक व्यवस्था नहीं करता तो चाहे आप इंन्द्र देव पर कितनी ही आस्था क्यों न रखो, कर्म फल नहीं मिलेगा।
संसार में कई धर्मालम्बी हैं।धर्म ग्रंथ हैं सबकी शिक्षा और उद्देश्य एक ही हैं, फिर हम सब में एक जैसी आस्था क्यों नहीं रखते। इस लिए कि हमारी आस्था भिन्न भिन्न धर्मों में कर्म के अनुसार अलग-अलग हैं । रामायण में श्री राम, गीता में भगवान कृष्ण, शिव पुराण में शिव , तथा अन्य पुराणों में आस्था के नामेंद्र कई भगवान माने जाते हैं इनके कर्म ज्ञान और शिक्षा के आधार पर हम इन्हें अपना प्रतीक मानते हैं।
आस्था शव्द आस एवं मनौती शव्दो के प्रर्यायवाची हैं। हमारे देश में तेंतीस करोड़ या तेंतीस कोटि देवी-देवताओं को माना जाता है।कर्म फल के रूप में पूजा प्रतीष्ठा की जाती है। इसीलिए कर्म ही पूजा कहा जाता है।
हमारे खिलाड़ी खेलने जाते हैं हर जगह यज्ञ हवन किये जाते हैं, लेकिन जीत कर्म पर निर्भर है।
चंद्रयान विक्रम चंद्रमा की कक्षा में स्थापित करने के लिए सारे देश वासियों ने दुवाएं की , किंतु वैज्ञानिक कर्म फल प्राप्त नहीं हो सका।गिर कर उठना, असफल होकर सफलता प्राप्त कृतित्व पर आधारित है इतनी लम्बी दूरी तय कर लेने के बाद आंशिक दूरी तय करने में सक्षम होंगे।
नासा ने तारीफ की,सारा वैज्ञानिक जगत जुड़ेगा तो सफलता मिलने कोई समय नहीं लगेगा।
आस्था जीवन मंत्र है
कर्म जीवन फल है।
आस्था सम्पूर्ण मानव समुदाय के लोगों के एकीकरण की प्रक्रिया है
सदभावना विश्वबंधुत्व की सद्प्रेरणा के लिए आस्था का विषय बने ,फल स्वरूप लोग सेवा में संलग्न रहें।
माता पिता गुरु में परम आस्थावान उनकी सेवा में भी तत्पर रहें। उनकी कर्मपूजा अवश्य आशीर्वाद का फल देगी।
अंत में एक उदाहरण दे रहा हूं,रोगी के लिए सभी दुआ और यज्ञ हवन करते हैं किन्तु रोग बिना दवा और उपचार के ठीक नहीं होगा।
कर्म प्रधान हैं, जो जैसा बोएगा, वैसे ही फल पाएगा।
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