मानवीय गुणों में लगातार गिरावट आ रही है
हमारा देश मानवीय गुणों के आधार पर जहां विश्व में श्रेष्ठे स्थान रखता था। आज मानवीय गुणों में लगातार गिरावट आ रही है।
एक जमाना स्वतंत्रता के पश्चात ऐसा भी था जब देश में गरीबी का आलम था लोगों के पास खाना जुटाने के लिए पैसे नहीं हुआ करते थे। गांव के लोग आपस में एक-दूसरे की मदद किया करते थे बदले में काम करने वाले को अनाज या खाना दिया जाता था। पैसे का अभाव था फिर भी उसकी बड़ी कीमत थी रुपया चांदी का था ।
सोना वर्ष चौंसठ पैंसठ में पिच्चासी रुपए तोला था। लोगों के पास सोने चांदी के जेवरात हुआ करते थे,जो बड़े घरानों में होते थे, गरीब घर के लोग लड़के लड़कियों की शादी में मांग काम चलाते थे।थोड़े बहुत रुपये उधार या साहुकार से व्याज पर मिल जाता था। लड़के-लड़कियों की शादी या पैतृक कार्यो में गांव परिवार और रिश्तेदारों द्वारा अनाज रुपयों, घी, तथा गाय बकरी की मदद दी जाती थी। यह उस गांव की मानवता निशानी मानी जाती थी।
आज ये सारी प्रथाएं समाप्ति की ओर हैं । उस समय की नौकरी अधिकतर फौज की होती थी।पढा लिखा तो दूर अनपढ़ जवान भी सेना में भर्ती हो जाता था। मेरे ताऊजी सुवेदार थे उनकी मृत्यु पर ताई जी को ९रुपये पेन्शन मिलती थी।ताऊ और ताई का लोग बड़ा सम्मान करते थे ये लोगों की आर्थिक सहायता कर देते थे। आज करोड़ पति भी किसी की सहायता नहीं कर पाते हैं।
महात्मा गांधी, मुकुंदीलाल जी इन्टरेश करने के बाद बैरेस्टर बन गये थे। मोती लाल जी भी ऐसे ही उस समय के जाने माने वकील थे जिन्होंने ने आनन्द भवन का निर्माण करवाया था। पैसा कम विश्वास अधिक था लोगों का, आज ऐसे लोगों की वकालत करने को अधिवक्ता तैयार हैं जो कातिल हैं रेप के मामले में फंसे हैं ऐसे राजनेताओं की कमी भी नहीं है जो धन बल पर ये कुकृत्य कर रहे हैं
धर्म के ठेकेदारों में भी ऐसे ही संत दिखाई दे रहे हैं जो अपने कुकर्मो लिए समाज में मानवीय गुणों का अवमूल्यन कर रहे हैं
ऐसा पहले कभी नहीं होता था रोटी बेटी पर कुदृष्टि वालों का सामाजिक बहिष्कार होता था हुक्का पानी बंद करना बड़ी सजा थी
वर्तमान में पढ़ा लिखा नव युवक जो पीएचडी है अध्यापक है डाक्टर है सड़कों पर , धरने पर बैठा है पुलिस वालों के डंडे खा रहा है नदियों की गाद निकाल रहे हैं। यह मानवीय गुणों का लगातार अपशय है।
शासन में बैठा व्यक्ति जैसे चाह रहा है बोल देता और कर देता है जेल जाने को अपनी शान समझते हैं, समाज डर किसी को नहीं है।
अंन्त में देश के कानून निर्माताओं उसके रक्षकों, धार्मिक संस्थाओं के मठाधीशों को समाज के गिरते मूल्यों की रक्षा के लिए अपना आदर्श प्रस्तुत करना ही चाहिए। अन्यथा हमें हर हाल में गिरते हुए मानवीय गुणों के अवमूल्यन पर पछताना पड़ेगा।
आशा है प्रबुद्ध समाजअपना मूल्य निर्धारित करने में योगदान देगा
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