मातृशक्ति का सम्मान हमारा धर्म हो

विजय सिंह बिष्ट 


या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।


नवद्धाशक्ति में मां के प्रकाट्य रूपों की अनेक प्रकार से स्तुति वंदन का विधान है  सभी कालों भूत, वर्तमान और भविष्य में सर्व सम्पन्न मां को ही नतमस्तक होकर वंदना अर्पण किया गया है। आदिकाल से कुंवारी कन्याओं के वंदन पूजन और जिवाने की प्रथाएं यत्र तत्र सर्वत्र  चली आ रही हैं।
        ।नारी सर्वत्र पूजियेत।
यह भी इंगित करता है कि निरन्तर चलने वाली आपकी सभी शक्तियों को मै नमन करता हूं जिसकी पूजा प्रतिष्ठा नव रात्राओं में विभिन्न प्रकार से प्रतिपादित की जाती है। नारी की पूजा सृष्टि के आरंभ से की जाती है जो जननी है रत्नगर्भा है। जिसने अपने उदर से संत,महान योद्धा, और विदुषी एवं विद्वानों को जन्म दिया है।
      जो सहन शीलता की धरती, ज्ञान की गरिमा, अभिमन्यु की गर्भ में संस्कार स्वरूपा, लक्ष्मी ,रौद्र रूपा महाकाली, अभिज्ञान शाकुन्तलम की रचयिता, ये सभी गौरी , शक्ति, दुर्गा,हर युग में झांसी की रानी, सीता,राधा , द्रोपदी बन कर आती हैं और आती रहेंगी। नारी भोगने की नहीं पूजा की पात्रा हैं। राधा कृष्ण, सीता राम, ये नाम पहले इस लिए लगाया जाता है कि नारी का सम्मान पुरुष की योग्यता को दर्शाता है। संसार की रचना के साथ प्रकृति और पुरुष का मिलन विषमलिंगी प्रेम का समागम है।हर जीव , पेड़ पौधों फूलों में भी समवर्धन,संचरण जनन के लिए लिगींय विषमता होनी आवश्यक है।
     किसी भी बात के लिए समय निर्धारण होता है, मौसम के अनुसार फसलों का  बोना तथा कटना जीव जंतुओं का प्रजनन होता आया है। आज बर्तमान में इन्सान अपने सारे कर्म और धर्म को भूलता जा रहा है। धर्मनगरी के मठाधीशों के कुकर्म की चर्चाएं राज नेताओं की योन शोषण की घटनाएं समाज को कुमार्ग पर ले जा रही है।धर्म और सत्ता का दुरपयोग सामाजिक कंलक बनता जा रहा है।
नियम कानून छोटे बड़े का भेद कर रहे हैं। शासन में रत  अभिमान में स्वेच्छाचारिता दिखा रहे हैं गरीब का कोई नहीं।
   हमें यदि नव रात्राओं की पूजा करनी है राम लीलाओं का आयोजन करना है तो निवेदन स्वरूप ये कामना करते हैं हमारा समाज शिक्षा भी ले कि हम नैतिक दायित्वों का भी निर्वाह करें।
मातृशक्ति का सम्मान हमारा धर्म हो।
कुदृष्टि हमारा अपमान है
हम नैतिक आदर्शों पर चलें।
जिससे हम गौरवान्वित हों।


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