वर्तमान समय में देश में धर्मनिरपेक्षता नहीं बची
प्रगतिशील लेखक संघ का राष्ट्रीय सम्मेलन तीन दिन चलेगा। जयपुर में 37 वर्षों के बाद यह अधिवेशन हो रहा है। देश भर से 26 प्रदेशों से लगभग छह सौ लेखक इस सम्मेलन में भाग ले रहे हैं।
यही वो जगह है,
यही वो फिज़ा है
यहीं पर कहीं आप, हमसे मिले थे।
एक लोकप्रिय गीत की यह पंक्तियां समूचे परिवेश में गूंज रही थीं। अवसर था, प्रगतिशील लेखक संघ की ओर से आयोजित 17वें राष्ट्रीय सम्मेलन का, जहां समूचे देश से आए रचनाकार – लेखक – विचारक सम्मिलित हुए हैं।
सत्र का संचालन कर रहे सम्मेलन के राष्ट्रीय संयोजक और राजस्थान प्रगतिशील लेखक संघ के महासचिव ईशमधु तलवार ने बताया कि 37 वर्ष पहले यह अधिवेशन जयपुर के इसी रवीन्द्र मंच पर आयोजित हुआ था। उस समय आज के राष्ट्रीय महासचिव राजेन्द्र राजन और अध्यक्ष मण्डल के सदस्य सुखदेव सिंह सिरसा सहित अनेक लोग उस सम्मेलन में शामिल हुए थे, जो आज भी यहां मौजूद हैं। उस समय वे युवा थे, जबकि अब 37 वर्षों के बाद वे विभिन्न पदों पर आ चुके हैं।
साहित्य, संस्कृति तथा अभिव्यक्ति के विविध स्वरूपों से सराबोर एक सुन्दर सुबह, जिसका शुभारम्भ सांस्कृतिक मार्च से हुआ। यह मार्च अल्बर्ट हॉल पर जवाहर लाल नेहरू की प्रतिमा पर माल्यार्पण से शुरू होते हुए, रवीन्द्र मंच पर रवीन्द्र नाथ टैगोर की प्रतिमा पर माल्यार्पण के साथ सम्पन्न हुई। प्रगतिशील लेखक संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष पुन्नीलन द्वारा संगठन के ध्वजारोहण के बाद कार्यक्रम शुरू हुआ।
उद्घाटन सत्र का विषय था अभिव्यक्ति के खतरे उठाने ही होंगे। जाने – माने चिंतक और भाषाविज्ञ गणेश एन. देवी ने सम्मेलन का उद्घाटन किया। उन्होने मजबूती से कहा कि इस समय हम सभी के कन्धों पर भाषा तथा अभिव्यक्ति को बचाए रखने का उत्तरदायित्व है। इसे निभाने के लिए हमें, अलग – थलग पड़ने की बजाय एकजुट होकर आगे बढ़ना होगा। अब यह वक्त आ गया है कि समान विचारधारा के सभी लेखक और गैर लेखक संगठनों को अपने सभी मतभेद भुलाते हुए एकजुट होकर यह आवाज़ उठानी होगी कि हम दुनिया को बदलना चाहते हैं।
उद्घाटन सत्र कैफी आज़मी की कविता वनवास से शुरू हुआ, जिसे असम से आई कवियित्री कविता कर्मकार ने गाया। बाद में सेवानिवृत्त जज के.पी. सक्सेना ने कैफी आज़मी के लिखे गीत “मेरी आवाज़ सुनो” को अपना सुर दिया।
सत्र को आगे बढ़ाते हुए, राजस्थान प्रलेस के अध्यक्ष रितुराज ने कहा कि 37 वर्ष बाद जयपुर में इस सम्मेलन का होना, एक बड़ी परिघटना है। लेखकीय कार्य को महत्वपूर्ण बताते हुए, उन्होने कहा कि लेखक होना एक कठिन संघर्ष है। विपरीत परिस्थितियों में भी भाषा को बचाए रखते हुए, उत्तरोत्तर लिखते रहना, प्रलोभनों से दूर रहना, तथा प्रतिरोध की नई ज़मीन तैयार करना, एक सच्चे व प्रगतिशील लेखक का कार्य है।
प्रलेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पुन्नीलन ने अपने स्वागत भाषण में कहा कि वर्तमान समय में देश में धर्मनिरपेक्षता नहीं बची है। जिस प्रकार के हिन्दू राज्य का स्वप्न, विवेकानन्द तथा टैगोर ने देखा था, वह आज की परिस्थितियों से बिलकुल विपरीत है। देश में जिस प्रकार से हिन्दूवादी विचारधारा चल रही है, वह आने वाले समय के लिए विनाशकारी है। इस प्रकार के फासीवाद को रोके जाने की ज़रूरत है। साथ ही, उन्होने रचनाकर्मियों से अपील की कि वे इस प्रकार के हालातों का अपनी कविताओं, कहानियों तथा रचनाओं के माध्यम से विरोध करें।
संजय श्रीवास्तव [सदस्य सचिव, प्रलेस] ने लेखकों तथा संस्कृतिकर्मियों के निधन पर शोक प्रस्ताव प्रस्तुत किया तथा उपस्थित श्रोताओं ने उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए, मौन रखा।
राजेन्द्र राजन [राष्ट्रीय महासचिव, प्रलेस] ने कहा कि इस समय में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर खतरा बढ़ता जा रहा है, जहां कई पत्रकारों तथा लेखकों की हत्याएं तक हुई हैं। विचारकों को शहरी नक्सली कहते हुए, गिरफ्तार किया जा रहा है। समय आ चुका है कि लेखक अपने एकान्तवास से बाहर आएं, तथा सार्वजनिक मंचों पर अपने विचार रखें।
जस्टिस वी.एस.दवे का स्वास्थ्य ठीक नहीं होने के कारण, वे कार्यक्रम में उपस्थित नहीं हो सके। उनकी ओर से भेजे गए संदेश को लोकेश कुमार सिंह 'साहिल' ने पढ़ कर सुनाया।
सुखदेव सिंह सिरसा ने अपने विचार रखते हुए कहा कि वर्तमान समय में लेखकों पर प्रतिबन्ध लगाए जा रहे हैं। रचनाकारों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता उपलब्ध नहीं है।
पूनम सिंह ने पुरजोर स्वर में कहा कि साहित्य तथा शब्दों की मशाल ही है, जो असंख्य चुप्पियों को तोड़ सकती है। सिंह ने लेखकों से अपील करते हुए कहा कि वे इस कठिन समय में साहसी बनें, तथा एकजुट हों।
लोकप्रिय रंगकर्मी व कलाकार रमा पाण्डेय ने लेखकों से उद्बोधन किया कि वे जनता से संवाद करें। पाण्डेय ने कहा कि इस समय, युवाओं से सार्थक संवाद किए जाने की महती आवश्यकता है। कश्मीर की वर्तमान स्थितियों पर चिंता जताते हुए, पाण्डेय ने कहा कि प्रतिभावान तथा बौद्धिक लोगों को अत्याचार के विरोध में अपना स्वर मुखर करना चाहिए।
उद्घाटन सत्र का संचालन सम्मेलन के राष्ट्रीय संयोजक और राजस्थान प्रगतिशील लेखक संघ के महासचिव ईश मधु तलवार ने किया। उन्होने कहा कि जयपुर में 37 साल बाद इतिहास अपने आप को दोहरा रहा है। इस सम्मेलन में तमिल, तेलुगू, कन्नड़, मलयालम, मराठी, बंगाली, गुजराती, उड़ीया, असमिया, डोगरी मैथिली, भोजपुरी, पंजाबी, राजस्थानी आदि विभिन्न भाषाओं के लेखकों के शामिल होने से भारतीय भाषाओं का एक अनूठा संगम लेखकों के इस मेले में देखने को मिल रहा है। अन्त में प्रगतिशील लेखक संघ के सदस्य सचिव प्रेमचन्द गांधी ने धन्यवाद ज्ञापित किया।
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