रावण जलता आ रहा ,जला न अब तक द्वेष
रावण जलता आ रहा ,जला न अब तक द्वेष ।
मन का रावण मारकर ,शुद्ध करें परिवेश।।।
लेखिका>सुषमा भंडारी
मुश्किल है आसां नहीं बंटवारे की पीड़
चिड़िया ही बस जानती कैसे बनता नीड। ।
पुतले सारे जल गए, रावण मरा न एक
राम बना ना एक भी रावण है प्रत्येक ।।
अहंकार को मार कर मन को कर ले साफ
प्रभुराम को याद कर कर देंगे वो माफ।।
सत्य सदा ही जीतता हारे सदा ही झूठ
खुशियों की अब क्या कहें झूठ से जाती रूठ।।
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