सेहत के लिए खतरनाक है प्लास्टिक
लेखक>लाल बिहारी लाल
नई दिल्ली । प्लास्टिक मनुष्य के रीढ की हड्डी की तरह सामाजिक हिस्सा बन चुकी है। ये जीवन के हर मोड़ पर सस्ता एंव सुगम होने के कारण इसका प्रयोग लोग बहुतायत रुप से करते हैं। मानव इसका प्रयोग करने के बाद इसका निपटान भी सही से नहीं कर पाता है ।
यह पर्यावरण में नही घुलता है यानी कि यह नन बायोडिग्रेडेबल है। इसे पर्यावरण में घूलने में 200 से 500 साल तक औऱ बोतल के ढक्कण को तो लगभग 1000 वर्ष घुलने में लग जाते है । इस बीच जमीन पर परे रहते है जिससे भूमि की उर्वरा शक्ति नष्ट होने लगती है। नाली जाम हो जाते है जिससे सड़न फैलने लगती है औऱ लोगों के सेहत पर असर पड़ता है। इधर उधऱ फेकने के कारण नदियों के रास्ते सागर तक पहुँच जाते है और जलीय जीव को नुकसान पहुंचाते हैं। डाल्फिन सहित पूरी दुनिया में लगभग 1 लाख से ज्यादा जलीय जीव समय से पहले काल के गाल में समा जाते है। इसके जलाने से जहरीली गैसें निकलती है जो वातावरण(वायु) को दूषित करती है। अर्थात इसके कारण जल, थल एवं नभ तीनों दूषित हो रहे है। इसी को ध्यान में रखकर दुनिया के 128 देश पहले ही प्लास्टिक थैलियों पर प्रतिवंध लगा चुके है।
आज भागमभाग भरी जिंदगी में मानव इस कदर उलझ गया है कि वो न अपने सेहत पे औऱ नाहीं प्रकृति को बचाने के प्रति ध्यान दे पाता हैं। इसके परिणामस्वरुप वातावरण दूषित और स्वंय बिमार रहने लगा है।
यूं तो प्रकृति को सबसे ज्यादा खतरा प्रदूषण से है क्योंकि बढ़ती हुई आबादी की मांग को पूरा करने के लिए प्राकृतिक संसाधनों का दोहन अंधाधुंध हो रहा है। जिस कारण जलवायु दूषित हो चुके है। प्रदूषण को बढ़ने या फैलने के लिए कई कारक उतरदायी है। उन्हीं कारकों में एक कारक (प्रदूषक ) प्लास्टिक भी है। जी हां हम बात कर रहे है प्लास्टिक की जो आज निर्माण के 120 साल के अंदर ही समस्त जीवों के लिए संकट बनते जा रहा है। क्योँकि पर्यावरण में इनका विघटन होने में 200-500 साल तक लग जाते है । प्लास्टिक के ढक्कण का विघटन होने में तो लगभग 1000 वर्ष लग जाते है । ये नन बायोडिग्रेडेबल पदार्थ है जो वातावरण में आसानी से घूलते नहीं है।
प्लास्टिक एवं पदार्थ का अलग-अलग गुण है। एक गुण के रुप में प्लास्टिक उन पदार्थों की विशेषता का प्रतीक है जो अधिक खींचने या तनने के बाद स्थायी रुप से अपना रुप बदल देते है तो अपने मूल रुप में वापस नहीं आते है। इसके निर्माण का भी एक रोचक कहानी है- एक दिन एक जर्मन केमिस्ट(वैज्ञानिक) हान्स बोन पेंचामीन 1898 ई में डायजोमीथीन का प्रयोग कर रहे थे तभी गलती से प्ला्टिक का निर्माण हो गया। जिसके लगभग 35 साल बाद एक अन्य केमिस्ट (वैज्ञानिक) एरिक फाउसेंट ने औद्योगिक रुप से इसका इस्तेमाल प्रारंभ किया।
सन 1960 ई में पूरी दुनिया में प्लास्टिक के 50 लाख टन कचरा फैला था जो आज 609 करोड़ टन से ज्यादा हो गया है । अर्थात आज हरेक(हर एक) आदमी के हिस्सें में आधा किलो से ज्यादा प्लास्टिक का कचरा आ गया है।
दुनिया में 1 करोड़ टन प्लास्टिक बैग का प्रतिदिन उपयोग करते है। बात करे भारत की तो केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ( CPCB) के अनुसार 25,940 टन प्रतिदिन प्लास्टिक का उपयोग हो रहा है। वही 500 खरब प्लास्टिक बैग पूरी दुनिया में रोजाना प्रयोग किया जा रहा है। प्लास्टिक बैग जहरीली केमिकल जायलेन, इसीटोन बेंजोन से मिलकर बने होते है जो सेहत के लिए हानिकारक है।
भारत भी इस कड़ी में सुमार होने जा रहा है। जहां 2 अक्टूबर 2019 से सिंगल यूज प्लास्टिक बैन होने जा रहा है। इसकी घोषणा लाल किले से प्रधानमंत्री ने 15 अगस्त 2019 को की थी हालाकि पिछले दो दशक से इस पर बातचीत चल रही थी लेकिन साष्ट्रीय स्तर पर एक्शन में अब आया है । प्रधानमंत्री ने दुकानदार भाईयों से कहा कि आप बिल्कुल ही इसका उपयोग न करे और ग्राहकों को भी प्रोत्साहित करे और जनता से भी निवेदन किया है कि भारत को प्रदूषण रोकने में मदद कीजिये और सिंगल यूज प्लास्टिक का प्रयोग नहीं कीजिये।
क्योंकि प्लास्टिक को खाने से रोजाना देश के किसी न किसी कोने में गाये मर रही है। इसलिए जरुरी है कि अपने स्वास्थ्य औऱ आने वाली पीढ़ी को बेहतर पर्यावऱण देने के लिए आम जन आगे आये तभी सरकार की यह पहल कामयाब हो पायेगी। आने वाले दिनों में देखना है कि से कितना पर्यावरण सुधार होगा।
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