आलोचना करने के बजाय चुनी हुई सरकार से दबाव डाल कर जनहित में काम करवाया जाय


यह तो समय के खेल हैं। जीतने वाला अपनी सारी बुराईयों को छिपाने  तो सक्षम हो जाता है और हारने वाला गड़े मुर्दे भी उखाड़ने लगता है। वर्तमान चुनावों में ऐसा ही देखने को मिला है। भारत में लिखने और बोलने की स्वतंत्रता ने ऐसा  बीभत्स दृश्य खड़ा कर दिया जिसकी कल्पना नहीं की जा सकती। गांधी नेहरू, हिंदुस्तान और पाकिस्तान की चर्चा   संसद भवन से लेकर गलियारों तक बड़े अजीबोगरीब ढंग से व्यक्त न की गई हो। अखबार,व्यंगकार, कविता, पुराने से पुराने मुगलिया चित्रों की प्रर्दशनी हर टीबी चेनलों ह्वटस अप पर इतनी शान और शौकत से परोसी गई जिसका अंदाजा लगाना भी कठिन है।


देश के प्रधानमंत्री जी को चोर ,हत्यारा और कितने ही द्रुबचनों से पुकारा जाना शोभा नहीं देता।मान और माननीय सभी हैं चाहे वह सांसद हैं अथवा किसी प्रदेश के मुख्यमंत्री हर भारतीय का अपना महत्वपूर्ण स्थान है। किसी को बेइज्जत करना अपना ही सम्मान खोना है। अभी भी लोगों के मन में दिल्ली की राजनीति को लेकर घृणा और अवसाद भरा हुआ है।अपना अपने को ही काफ़िर और मुसलमान कह कर उलाहना दे रहा है।जितने लोगों की वोट से केजरीवाल जीता है वे सब निकमें और जाहिल हिंदू  हैं, मुफ्तखोर हैं ऐसा कह देना तर्क संगत नहीं है।


अच्छा होता सभी लोग इस सरकार से काम लेने और राजधानी को हर प्रकार से विकसित करने की बात करते। मिलकर सरकार की कमियों को गिनाकर स्वच्छ वातावरण तैयार करते।पक्ष और विपक्ष को मजबूत बनाने का काम करना आवश्यक है। कुतर्क हमेशा अवरोधक होते हैं। दिल्ली की  जनता को क्षेत्र स्तर से विधायक  और सांसद से काम लेने और करवाने में सक्षम होना चाहिए। जनता के प्रति उनकी जिम्मेदारी होती है कि वे सभी लाभकारी योजनाओं से जनता के हितार्थ काम करें। उन्हें जन सेवक होना चाहिए। दिल्ली का नागरिक एक सव्य शिष्ठ नागरिक है उसे राजधानी में रह कर उच्चविचारवान होना चाहिए आइए दिल्ली की सरकार और विपक्ष को इतना सक्षम बनाएं कि भ्रष्टाचार अराजकता और स्वेच्छाचार का नामो-निशान मिटाकर देश की सर्वश्रेष्ठ राजधानी बनकर हमारा नाम भी रोशन करे। मिलकर संकल्प लें कि हम स्वच्छ स्वस्थ प्रशासन लेके रहेंगे।


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