डॉ मुक्ता कृत पुस्तकों- 'परिदृश्य चिंतन के' और 'हाशिए के उस पार' का लोकार्पण और परिचर्चा का आयोजन

गुरूग्राम ,कादंबिनी क्लब द्वारा गुरूग्राम,राज्य शैक्षिक अनुसंधान केंद्र के अन्वेषण कक्ष में, हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक और राष्ट्रपति सम्मान से सम्मानित डॉ मुक्ता कृत  दो पुस्तकों- 'परिदृश्य चिंतन के'और 'हाशिए के उस पार' का लोकार्पण और परिचर्चा का आयोजन साहित्यकारों, विद्वानों और कलमकारों की उपस्थिति में सफलतापूर्वक संपन्न हुआ। इस आयोजन में हरियाणा साहित्य अकादमी के निदेशक डॉक्टर पूरणमल गौड़ मुख्य अतिथि के रुप में शोभायमान रहे। विशिष्ट अतिथि के रुप में डाॅक्टर अशोक दिवाकर (उप कुलपति ,स्टारैक्स  युनिवर्सिटी गुरूग्राम)  डाॅक्टर मुकेश गम्भीर ( निदेशक, रेडियो स्टेशन पलवल )  डाक्टर सविता चड्ढा जी (वरिष्ठ साहित्यकारा ) डॉ अमरनाथ अमर जी(उपनिदेशक दूरदर्शन) जैसी  विभूतियाँ मंचासीन थीं। 



कार्यक्रम का शुभारंभ गणमान्य अतिथियों द्वारा दीप प्रज्ज्वलन व विख्यात कवयित्री वीना अग्रवाल के मधुर कंठ से प्रस्तुत सरस्वती वंदना से हुआ ।इसके पश्चात  वरिष्ठ पत्रकार एवं हिंदी सेवी स्वर्गीय मुकुल शर्मा और अखिल भारतीय शिक्षाविद्  मोहनलाल 'सर' जी की स्मृति में मौन रखकर सब उपस्थित साहित्यकारों ने उनके प्रति अपनी भावपूर्ण श्रद्धांजलि समर्पित की ।कार्यक्रम का संचालन सुविख्यात कवयित्री एवं लेखिका वीना अग्रवाल ने बहुत ही मोहक और भावपूर्ण ढंग से किया। इसके बाद सभी साहित्यकारों और मनीषियों की उपस्थिति में अतिथियों के कर कमलों द्वारा 'परिदृश्य चिंतन के 'और 'हाशिये के उस पार 'पुस्तक का लोकार्पण हुआ। सभी अतिथियों ने डाक्टर मुक्ता को भी कार्यक्रम की मुख्य केन्द्र बिन्दु मान उन्हें सम्मानित किया। इसी मंच से कादंबिनी पत्रिका के जनवरी अंक का भी विमोचन किया गया। 



लेखिका डॉ मुक्ता की पुस्तक 'परिदृश्य चिंतन के' की  विस्तृत समीक्षा कादंबिनी क्लब की संचालिका एवं वरिष्ठ लेखिका सुरेखा शर्मा ने, दिल्ली नगर निगम के प्रशासनिक अधिकारी पद से सेवानिवृत्त वरिष्ठ कवयित्री सरोज शर्मा  ने और शिक्षिका मोनिका शर्मा ने की और दूसरी पुस्तक 'हाशिये  के उस पार' की समीक्षा सुविख्यात कवयित्री एवं शिक्षिका डॉ बीना राघव ने प्रस्तुत की। सभी समीक्षकों  ने 'परिदृश्य चिंतन के' पुस्तक के लिए लेखिका को बधाई एवं शुभकामनाएँ समर्पित करते हुए उसे हर आयु वर्ग के लिए अत्यंत उपयोगी बताया। सुरेखा जी ने पुस्तक का बारीकी से समीक्षात्मक विश्लेषण प्रस्तुत करते हुए कहा कि लेखिका ने इन निबंधों में अपना हृदय खोल कर रख दिया है। ये निबंध पाठकों के जीवन के 'तमस' को 'आलोक' में बदलने का मंत्र देने वाले सिद्ध होंगे।



उन्होंने इन निबंधों को ध्यान समाधि की तरह जीवन की हर समस्या का समाधान देने वाला बताया।उन्होंने कहा कि  इस पुस्तक में जहाँ लेखिका की सूक्ष्म, गम्भीर ,पैनी जीवन दृष्टि का परिचय मिलता है, वहीं इसमें व्यक्त  उनके विचार उनकी सरलता, विनम्रता और सहज उपलब्ध व्यक्तित्व का भी परिचय देते हैं।  श्रीमती सरोज शर्मा जी ने पुस्तक के आवरण की प्रशंसा करते हुए कहा कि आवरण को देख उन्हें शरीर के वे सात चक्र  अनायास  स्मरण हो आए जो मनुष्य को उर्ध्वगामी  बनाते हैं। उन्होंने कहा कि पुस्तक के निबंध हर वर्ग के व्यक्ति को विशेषतया  युवा वर्ग की  इच्छाशक्ति दृढ़ कर यह विश्वास देते है कि 'तुम कर सकते  हो'। यह पुस्तक आत्मावलोकन पर बल देते हुए कोरी शिक्षा ही नहीं देती वरन व्यावहारिक समाधान भी देती है। सरोज शर्मा जी ने श्री सुमति कुमार जैन की भेजी हुई समीक्षा का भी वाचन  किया, जिसमें उन्होंने इस पुस्तक को समाजोपयोगी, सर्वजन हिताय और कल्याणकारी बताते हुए यह कहा यह चिंताओं का 'कोहरा' हटाने में कारगर साबित होगी ।



शिक्षिका मोनिका शर्मा ने अपनी समीक्षा में इसे जीवन के उलझे धागों को सुलझाने में सहायक बताते हुए कहा कि इस पुस्तक के निबंध मिट्टी और संस्कारों से जुड़ने की प्रेरणा देते हुए प्रकृति के प्रत्येक कण से प्रेम करना सिखाते हैं। उन्होंने पुस्तक को विद्यालय,विश्वविद्यालय और महाविद्यालयों  की शिक्षा में शामिल करने के लिए बहुत उपयोगी बताते हुए कहा कि यह पुस्तक नीव का पत्थर साबित होगी। उन्होंने पुस्तक के कुछ काव्यमय उद्धरण भी अपने मोहक अंदाज में प्रस्तुत किए।
सुविख्यात  कवयित्री एवं शिक्षिका डॉ बीना राघव ने लेखिका डाॅक्टर मुक्ता  की दूसरी पुस्तक 'हाशिये के उस पार' पुस्तक के लिए हृदय से बधाई  और साधुवाद देते हुए  समीक्षा की । यह लघुकथा संग्रह है।  उन्होंने इन लघुकथाओं को संक्षिप्त और  सारगर्भित बताते हुए कहा कि ये लघु कथाएँ 'हाशिए के उस पार' खड़े व्यक्ति की पीड़ा को दर्शाती हैं और समाधान भी प्रस्तुत करती हैं। इनमें विषय वैविध्य  है। संक्षिप्त और सारगर्भित ये लघु कथाएँ अपने आप  में भावों का पूरा सागर समेटे हुए हैं। बीना  ने पुस्तक की एक लघुकथा का वाचन भी किया। लेखिका डॉ मुक्ता ने 'परिदृश्य चिंतन के' पुस्तक पर अपना वक्तव्य प्रस्तुत किया। लेखिका डॉ मुक्ता ने बताया कि जब आर्थिक मंदी के दौर में कॉर्पोरेट क्षेत्र से निकाले गए युवा निराश हो आत्महत्या की ओर बढ़ रहे थे तो 2009 में उन्होंने 'चिंता नहीं चिंतन' पुस्तक लिख युवा वर्ग को उत्साहित करने का जो प्रयास किया था 'परिदृश्य चिंतन के' उसी कड़ी में उनका दूसरा प्रयास है।इस अवसर पर राज वर्मा व श्रीमती सुखवर्षा पाठक की उपस्तिथि भी उल्लेखनीय रही।  



यह पुस्तक 43 निबंधों का संग्रह है। युवाओं को सकारात्मक सोच प्रदान कर इसके निबंध उन्हें चिंता, तनाव अवसाद से मुक्त कर उद्देश्य प्राप्ति के लिए अग्रसर करते हैं। लेखिका ने अपने निबंध में अतीत को 'अंधकूप' माना है और कहा कि भविष्य को तराशने और संवारने के लिए अतीत के अंधकूप से निकलना अति आवश्यक है। लेखिका ने चिंता को निकृष्ट और चिंतन को सर्वश्रेष्ठ बताते हुए व्यक्ति को अंतर्मन की शक्तियों ,प्रतिभा और एकाग्रता से अन्य विकल्प ढूँढ रास्ते बदलने की प्रेरणा दी है।रास्ते बदलो, सिद्धांत नहीं क्योंकि उनके अनुसार सिद्धांत संजीवनी और कवच बन मनुष्य की रक्षा करते  हैं। भौतिक सुखों के पीछे न भागते हुए हमें जीवन मूल्यों को सर्वोपरि रखते हुए सत्यम शिवम सुंदरम को जीवन में चरितार्थ करने का प्रयास करना चाहिए। परिवर्तन प्रकृति का नियम है। जीवन को उत्सव मानते हुए दृढ़ निश्चय, आत्मविश्वास, सकारात्मक सोच को उन्होंने सफलता के विभिन्न सोपान बताया है।


अशोक दिवाकर जी ने डॉक्टर मुक्ता  को सार्थक और राह दिखाने वाली लेखिका  कहकर संबोधित करते हुए उनकी पुस्तक के लिए उन्हें बहुत सी बधाई और शुभकामनाएँ  प्रेषित की। उन्होंने कहा कि यह पुस्तक लोगों को निराशा के अंधकार से बाहर निकालने में सहायक होगी और लेखिका के स्वास्थ्य की प्रार्थना करते हुए उन्होंने कहा कि डॉ मुक्ता हमारे बीच प्रेरणा पुंज बनकर आई है और इसी तरह आगे भी वे अपने सशक्त लेखन के द्वारा समाज  को रोशन करती रहेंगी। 
सविता चड्ढा जी ने 'पुस्तक परिदृश्य चिंतन के' को 'लाइट हाउसं (प्रकाश गृह) कहा और यह आशा व्यक्त की कि यह वाचन  कैसेट के रूप में भी उपलब्ध होनी चाहिए। उन्होंने अपने जीवन के उदाहरणों के द्वारा भी पुस्तक के निबंधों की सार्थकता को पुष्ट किया और कहा कि लेखिका ने अन्य लोगों के उद्धरणों को  भी निर्देशित किया है। लेखकों, खिलाड़ियों, भगवान महावीर, सिकंदर आचार्य महाप्रज्ञ और उन चिंतकों के विचारों का सारांश और उनके कथन को भी अपनी पुस्तक में पूरी तरह से आत्मसात किया है ।
डॉ अमरनाथ अमर जी ने 'परिदृश्य चिंतन के' पुस्तक को सरल, सहज, उदात्त, अनुकरणीय समीचीन, प्रासंगिक और प्रेरक बताया। उन्होंने कहा कि इस पुस्तक को निश्चित रूप से पाठ्यक्रम में सम्मिलित होना चाहिए क्योंकि यह प्रगति की, रोशनी की और जीवन को रोशन करने की कला सिखाते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि लेखिका ने जिस चिंतन की बात की है,उस  चिंतन से हम ' स्व' से 'सर्व' की ओर अग्रसर होते हैं।


डाक्टर मुकेश गम्भीर ने  लेखिका और अपने  पारिवारिक संबंध की चर्चा करते हुए कहा कि पुस्तक पढ़ने पर इस पुस्तक ने मुझे उद्वेलित कर दिया। यूनान के एक प्रसिद्ध कथन की चर्चा करते हुए उन्होंने  विश्वास व्यक्त किया कि पुस्तक पढ़ने के बाद बच्चे में निश्चित रूप से अद्वितीय बनने की शक्ति आ जाएगी। उनका कहना था कि लेखिका के लेखन में उनका अनुभव टपकता है। लेखिका ने अपनी पुस्तक में  विद्यार्थी काल के अनुभव को, भिवानी के राजनैतिक वातावरण को, अध्यापन के अनुभवों को निचोड़ कर रख दिया है और पाठक उस अमृत का पान करके जागृत हो जाएगा। बुध और अष्टावक्र के उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि  इस पुस्तक के निबंध उनके उपदेशों की तरह पाठक को जागृत और दृष्टा बनाएंगे। समाज में हर बीज के अंदर संभावना और क्षमता होती है ।बहुत से बीज पनप नहीं पाते और उसका कारण है कि इस प्रकार की पुस्तकें बहुत कम लोग लिखते हैं। लेखिका को समाज उपयोगी पुस्तक लिखने के लिए बधाई देते हुए उन्होंने इस पुस्तक को वजूद से साक्षात्कार का मेल कराने वाली मधुशाला बताया।


अंत में साहित्य अकादमी के निदेशक पूरणमल गौड़ ने लेखिका डॉ मुक्ता जी को बधाई देते हुए उन्हें अपना प्रेरणास्रोत बताया। उन्होंने कहा कि उन्होंने केवल पुस्तकों को ही जीवन में अपना मित्र बनाया। वे स्वेट  मार्टिन की पुस्तकें पढ़ते थे और यदि उन्हें यह पुस्तक पहले ही मिल जाती तो पता नहीं वे क्या बन जाते। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि इस पुस्तक को  पढ़ने से विद्यार्थी में जीवन मूल्य आएँगें और वे सजग होकर उन्नत शिखर पर पहुँचेंगे। उन्होंने इसके साथ ही यह भी आशा व्यक्त की कि लेखिका भविष्य में देश भक्ति और राष्ट्र भाव को जागृत करने वाले भावों पर भी एक पुस्तक इसी प्रकार की लिखे।


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