"शक्ति अराधना के लिए नवरात्र अनुष्ठान" 


सुरेखा शर्मा लेखिका /समीक्षक 
  
     देवि  प्रपन्नार्तिहरे प्रसीद प्रसीद  मातर्जगतो अखिलस्य
    प्रसीद विश्वेश्वरी पाहि विश्वं  त्वमीश्वरी देवि चराचरस्य।                                                                                                             भारतवर्ष को धर्म प्रधान देश होने के साथ-साथ त्योहारों का देश भी कहें तो कोई अतिशयोक्ति नही होगी । हर मास कोई न कोई पर्व- त्योहार मनाया जाता है । ये त्योहार जनमानस में नई स्फूर्ति व उमंग का संचार करते हैं । हम यह भी जानते हैं कि भारतीय संस्कृति पर पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव तीव्र गति से पड़ता जा रहा है, फिर भी जन साधारण अपनी प्राचीन गौरवमयी संस्कृति में आस्था रखता है । अभी भारतीय संस्कृति के बीज नष्ट नहीं हुए हैं।इसलिए हमारे जीवन में व्रत-उपवास, तीज त्योहार, पूजा-पाठ  विशेष महत्व रखते हैं। विशेषत: हिन्दू धर्म में तो व्रत -अनुष्ठानों का विशेष स्थान है और नवरात्र अनुष्ठान भी नौ दिनों के व्रत से सम्पन्न होता है।



          प्रतिपदा से  नवमी तक के नौ दिन नवरात्र कहलाते हैं।ये वर्ष में दो बार आते हैं ।एक चैत्र मास में दूसरे आश्विन मास में जिन्हें हम 'शारदीय नवरात्र' भी कहते हैं। गृहस्थों के लिए   दोनों नवरात्रों में पूजन करने से उनका शारीरिक, मानसिक ,बौद्धिक आर्थिक  व सामाजिक विकास होता है ।इसलिए गृहस्थ जीवन में नवरात्र संवर्द्धन और शक्ति संपन्न करते  हैं। नवरात्र में व्रत-उपवास के साथ- साथ दुर्गा पूजा का   विधान है । जगह-जगह पर माँ दुर्गा की विशाल प्रतिमाएं विधि- विधान से स्थापित की जाती हैं।
      या देवि सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता ।
     नमस्तस्यै नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नमः।।
                यह भी सर्वविदित है कि बिना शक्ति के कोई भी कार्य  ठीक प्रकार से संपन्न नही हो सकता । शक्ति के बिना तो शिव भी शव बन जाते हैं ।ईश्वरीय शक्ति का प्रतिरूप देखकर ही उसकी पूजा अर्चना के लिए भारतीय समाज में नवरात्र  महोत्सव बहुत ही श्रद्धा भाव से मनाया जाता है। यह नौ देवियों की शक्तियों से संयुक्त है।इसकी एक -एक तिथि को एक-एक शक्ति के रूप में पूजन का विधान है ।साधकों की भाषा में यही दुर्गा के नौ स्वरूप हैं---जिनसे यह शक्ति समस्त विश्व में व्याप्त है। वह आद्य शक्ति महामाया त्रिदेव की भांति महाकाली,महालक्ष्मी और महासरस्वती रूपत्रय संपन्न है ।मार्कण्डेय पुराणानुसार इनके नाम ---शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कन्दमाता,कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिधात्री हैं।
          ॐ जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी ।
              दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोस्तुते ।। नवरात्रों में देवी उपासक इन्हीं नौ रूपों की पूजा -अर्चना आध्यात्मिक, मानसिक और शारीरिक शक्ति का संचय करने के उद्देश्य से करते हैं।
                     वैसे तो पौराणिक साहित्य में वर्ष में चार बार नवरात्रों का उल्लेख मिलता है जो क्रमशः चैत्र, आषाढ़,आश्विन  तथा माघ शुक्ल पक्ष  में आयोजित होते हैं,लेकिन इनमें से दो को गुप्त नवरात्र कहा जाता है । पर    चैत्र और आश्विन के नवरात्र ही विशेष रूप से मनाने का प्रावधान मिलता   हैं।  चैत्र व आश्विन में ही नवरात्र क्यों ? यह प्रश्न भी विचारणीय है ।
    इसका भी एक वैज्ञानिक कारण है ।ऋतु विज्ञान के अनुसार ये दोनों ही मास सर्दी व गर्मी के संधि मास हैं।वैसे तो भारत में छह ऋतुएं क्रमानुसार आती हैं , पर गणना सर्दी व गर्मी की ही होती है।सर्दी ऋतु का पदार्पण आश्विन मास में होता है और गर्मी का चैत्र से।जैसे ही नई ऋतु का प्रारंभ होता है तो इस भौतिक जगत में हलचल सी पैदा हो जाती है। आकाश व वायुमंडल में भी परिवर्तन आना स्वाभाविक है ।,अतः ऋतु परिवर्तन का प्रभाव स्वास्थ्य पर भी इसीलिए पड़ता है ।चैत्र मास में जब गरमी  प्रारंभ होती है तो सर्दी के कारण शरीर में जो रक्त का जमाव हो गया था वह गर्म हो जाता है।शरीर में वात , कफ, पित्त पर भी प्रभाव पड़ता है ।इसी कारण अधिकतर  शरद ऋतु को अधिक भयावह बताया जाता  है।यदि सरदी अच्छी त बीत जाए तो वर्षभर स्वस्थ रहने की आशा की जा सकती है। इसलिए विद्वानों ने  इन्हीं मासों में शरीर को पूर्णतः स्वस्थ रखने के लिए नौ दिन तक विशेष व्रत रखने का उल्लेख किया है ।
              घरों में भगवती की अराधना की जाती है। जौ बोए जाते हैं,घट स्थापना की जाती है।पूजा के लिए पुष्पों की आवश्यकता होती है,जिन्हें लाने के लिए  प्रातःकाल उठकर बाग बगीचें में जाते हैं ,जो स्वास्थ्य के लिए अत्यंत उपयोगी है ।घर में एक कोने माँ भगवती का मंडप सजाया जाता है ।जिसके सामने  शुद्ध घृत की अखंड ज्योति व सुगंधित धूप-अगरबत्ती  जलने से  घर का वातावरण सुगंधमय हो जाता है और हवा इस समय होने वाले सभी कीट-पतंगे, मच्छर मक्खी व किटाणु नष्ट हो जाते हैं। जिससे परिवार के सभी सदस्यों का स्वास्थ्य ठीक रहता  है,  इसमें कोई संदेह नहीं।इस प्रकार जहां नवरात्रों का विधिवत् अनुष्ठान शारीरिक शक्ति को बढ़ाता है,वहीं मानसिक शक्ति में भी वृद्धि करता है।
            इन नौ दिनों में दुर्गा सप्तशती,देवी भागवत, रामचरितमानस, रामायण करते हैं जो सुप्त आत्माओं में प्राणों का संचार करते हैं।ऋतु परिवर्तन से नए रक्त का प्रवाह होता है तथा मादक दिन भी होते हैं,पर विषय -वासनाओं की ओर ध्यान न देकर अपने मन को शक्ति पूजा में लगाना चाहिए ।शास्त्रानुसार नौ दिन तक फलाहार करते हुए ब्रह्मचर्य का पालन कर अपने जीवन को शक्तिशाली बनाना  चाहिए ।
                  चैत्र और आश्विन दोनों महीने कृषि प्रधान हैं जो भारतीयों के जीवन में  विशेष महत्व रखते हैं।चैत्र में आषाढ़ी फसलें गेंहूं , सरसों व चने और आश्विन में धान आदि तैयार होकर घर आने लगते हैं। अब स्वाभाविक है इन अवसरों पर घर में कोई न कोई अनुष्ठान व यज्ञ तो होना ही चाहिए, जो हम नवरात्रों के माध्यम से करते हैं।नए अन्न से सर्वप्रथम उस विश्व के जन्म दाता को भोग लगाकर अपने मन में सात्विक भावों को जन्म देते हैं ।
                     दुर्गा सप्तशती के अनुसार दैत्यराज महिषासुर जब त्रिदेव से भी पराजित नहीं हुआ तब सभी देवताओं  के सम्मिलित तेज और शक्ति से देवी दुर्गा प्रकट हुई ।सभी देवी-देवताओं ने उन्हें अस्त्र-शस्त्र  से सुसज्जित किया ।जिसमें महेश ने अपना त्रिशूल, विष्णु ने चक्र, काल ने कलवार,विश्वकर्मा ने फ़रसा,वरूण देव ने अपना पाश, ब्रह्मा ने वेद तथा हिमालय ने सवारी के लिए सिंह प्रदान किया ।इसके अतिरिक्त समुद्र ने रत्नजड़ित हार, कभी न खराब होने वाले दिव्य  वस्त्र, कुंडल, कंगन, नुपुर एवं अंगूठियां भेंट की ।इन सभी अलंकारों को धारण कर माँ दुर्गा ने महाशक्तिशाली तथा अत्याचारी असुर महिषासुर के साथ अनवरत नौ दिन तक युद्ध कर उसका वध किया। इसीलिए  शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा कुष्मांडा, स्कन्दमाता , कात्यायनी, कालरात्रि और  महागौरी के रूप में नौ शक्ति रूपों की अराधना व उपासना कर जीवन में शक्तिशाली व आनन्दमय का वरदान पाकर कृत-कृत्य हो धन्य हो जाता है और अपना जीवन  सफल मानता है। वसंंत आदि छह ऋतुओं में दुर्गा के तीनों रूपों को  पूजने के लिए अठारह दिन  निश्चित हैं। इसलिए नौ दिन  वासंती नवरात्र और नौ दिन शारदीय नवरात्रों में निश्चित हैं।यही नौ संख्या  । दूसरे नौ का वाचक शब्द 'नव' भी है । नव का अर्थ है- नया अर्थात् नया संवत्सर। नव संवत्सर की शुभकामनाएँ।



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