आर्थिक गतिविधियों की प्रक्रिया को धीमा करेगा फंड और श्रम की कमी

भारत भर के नए और चल रहे प्रोजेक्ट्स का सबसे बड़ा ऑनलाइन डेटाबेस, प्रोजेक्ट्स टुडे ने प्रोजेक्ट जगत के विशेषज्ञों का एक सर्वेक्षण किया है. ये सर्वेक्षण वर्तमान स्थिति पर उनके विचार और पोस्ट कोरोना दौर में संभावित परियोजनाओं में निवेश परिदृश्य के बारे में जानने के लिए किया गया है. पूरे भारत के प्रोजेक्ट जगत के करीब 233 लीडर्स (प्रमोटर, आर्किटेक्ट, सलाहकार और ठेकेदार) ने इस सर्वेक्षण में भाग लिया.



अधिकांश प्रतिभागियों ने इस बात पर सहमति व्यक्त की कि वर्तमान लॉकडाउन में दवाइयों और स्वास्थ्य सेवा के अलावा, अन्य सभी क्षेत्र प्रभावित हो रहे हैं और लॉकडाउन हटने के बाद इन इकाइयों को कामकाज फिर से शुरू करने में कुछ समय लगेगा.60 दिनों के राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन ने पूरी अर्थव्यवस्था को प्रभावित किया है. निर्माता, उपभोक्ता और सरकार इस बात को ले कर अनिश्चित हैं कि महामारी कब धीमी होगी और कब कारखाने और कार्यालय काम करना शुरू करेंगे. भारत ने सबसे लंबा और अभूतपूर्व लॉकडाउन देखा है. देश उन लाखों मजदूरों का रिवर्स माइग्रेशन भी देख रहा है, जो भूख, वायरस संक्रमण और अनिश्चित भविष्य से डर रहे हैं.


सर्वेक्षण के अनुसार, प्रमोटरों के लिए अपने रुके हुए प्रोजेक्ट को शुरू करने के रास्ते में आने वाली मुख्य समस्याएं उचित ब्याज पर पर्याप्त धनराशि प्राप्त करना, अपने गांव वापस जा चुके मजदूरों के बराबर कौशल वाले श्रम को तलाशना, प्रोजेक्ट साइट पर आवश्यक कच्चे माल और मशीनरी की खरीद हैं. राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन ने आपूर्ति श्रृंखला नेटवर्क को बुरी तरह से प्रभावित किया है. उसे ठीक होने में थोड़ा समय लगेगा. प्रोजेक्ट्स जगत के तीन महत्वपूर्ण घटक - आर्किटेक्ट्स, कंसल्टेंट्स और कॉन्ट्रैक्टर्स ने कहा कि उनकी तात्कालिक प्राथमिकता चल रही परियोजनाओं को पूरा करना और अपने वर्तमान ग्राहकों को साथ बनाए रखने की कोशिश करना है.


सर्वेक्षण प्रतिभागियों को उम्मीद है कि "वर्क फ्रॉम होम" संस्कृति पोस्टकोविड-19 युग में भी जारी रहेगी. इसलिए, वे दीर्घकाल में बड़े घरों की मांग में वृद्धि देखते हैं. दूसरी तरफ, उन्हें लगता है कि कमर्शियल ऑफिसेज की मांग में कुछ बदलाव आएगा. बड़ी कंपनियां अपने कार्यालयों को कई हिस्सों में बांटेंगी. वे एक केंद्रीकृत कार्यालय के बजाय कई कार्यालय स्थापित करना चाहेंगी, ताकि कर्मचारियों के आने-जाने का समय घटे और नए मानदंडों वाले कार्य संस्कृति को अपनाया जा सके.


जहां तक ​​भारत के समक्ष चुनौतियों और अवसर का सवाल है, तो 27.9 प्रतिशत प्रतिभागियों ने कहा कि भारत को कोई फायदा नहीं होने वाला है, क्योंकि देश को मौजूदा आर्थिक स्थिति से बाहर आने में कम से कम तीन साल लगेंगे. इसके अलावा, उन्होंने कहा कि भारत के पास चीन जैसा उच्च-स्तरीय बुनियादी ढाँचा, उदार श्रम कानून और उद्योग अनुकूल (इंडस्ट्री फ्रेंडली) नीतियां नहीं हैं. सकारात्मक पक्ष ये है कि 69 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कहा कि भारत के पास कोविड-19 दौर में कम से कम फार्मास्यूटिकल्स, चिकित्सा उपकरण, ऑटोमोबाइल, कपड़ा जैसे क्षेत्रों में विजेता के रूप में उभरने का अवसर है.


अर्थव्यवस्था को फिर से बूट करने के लिए भारत सरकार ने राजकोषीय और मौद्रिक उपायों के तहत, 20,00,000 करोड़ रुपये का आर्थिक प्रोत्साहन दिया है. इसने कृषि, खनन, बिजली वितरण, स्वास्थ्य और शिक्षा क्षेत्रों में कुछ नए सुधारों का भी प्रस्ताव रखा है. भारत ने लंबे समय से लंबित श्रम सुधारों को जल्द लाने का आश्वासन भी दिया है. ये सभी उपाय मौजूदा आर्थिक नुकसान को कितना कम करेंगे और भारत एक बार फिर से विकास की राह पर ला पाएंगे, यह घरेलू मांग में सुधार और इन उपायों के समय रहते प्रभावी कार्यान्वयन पर निर्भर करेगा.


प्रोजेक्ट्स टुडे के अनुसार, 130 रेड ज़ोन जिलों में 108 प्रोजेक्ट्स में निवेश है. 31 मार्च 2020 तक, कुल 29,255 प्रोजेक्ट्स थीं, जिसमें 51,07,831 करोड़ रुपये का निवेश हुआ है. इसमें से 21,11,985 करोड़ रुपये की 8,917 प्रोजेक्ट्स कार्यान्वयन के विभिन्न चरणों में थीं, लेकिन वर्तमान में देशव्यापी तालाबंदी के कारण रुकी हुई हैं. इस तरह के निवेश का लगभग 62.9 प्रतिशत सरकारी एजेंसियों के पास है और शेष 37.1 प्रतिशत निजी कंपनियों के पास है.


हॉटस्पॉट जिलों में, मुंबई और मुंबई उपनगर में अकेले भारत के कुल अंडर-एक्ज़ीक्यूशन (चल रहे) प्रोजेक्ट्स का 12.5 प्रतिशत हिस्सा हैं. कोरोना संक्रमितों और इससे होने वाली मौतों की संख्या के मामले में भी मुंबई अग्रणी जिला है.


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