लक्ष्य मेरा है छू लूं मैं नीलगगन का छोर
सुषमा भंडारी
आशा और निराशा के
हिंडोले पर झूलूं
उत्साह और विश्वास के दम पे
मैं लक्ष्य को छू लूं
पवन साहस भरूं परों में
निकलूं पंख पसार
लक्ष्य का बाधक न कोई
जीत मिले या हार
कर्म ध्येय हो निश्चित मेरा
हो खुशियों की डोर
उम्मीदों के पंख लिये मैं
उडती नभ की ओर
मंजिल पाना दृढ़ निश्चय हो
बाधायें निर्मूल
नैया हो जब सत्य की भव में
शांत रहें सब कूल
यक्ष प्रश्न के हल भी मिलते
कोशिश से सब मिलता
उद्यम की दहलीज पे हरदम
सुन्दर उपवन खिलता
खुशियों की कोयल गाये और
झूमे मन का मोर
उम्मीदों के पंख लिये मैं उडती नभ की ओर
जीवन सफल उसी दिन मेरा
जब ना मानूं हार
सही दिशा में चलती जाउँ
हो जाउंगी पार
सत्यकर्म और सत्यवचन ही
जीवन का आधार
ना ही कोई दुख हो जग में
ना कोई लाचार
जब ये स्वप्न आँख में तैरें
हो जाउँ भाव - विभोर
उम्मीदों के पंख लिये मैं उडती नभ की ओर
लक्ष्य मेरा है छू लूं मैं नील - गगन का छोर
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( आदमी )
गौरैया जब
बना रही थी
मेहनत और प्यार
के तिनकों से
सुन्दर घर
तभी आदमी
ने सीख लिया था
उसे तोडने का हुनर
गौरैया अब भी भटक रही है-----------
जब नदी निश्छल अल्हड़-सी
बह रही थी लहरों का रूप ले
कल कल स्वर लहरी - सी
तभी आदमी ने सीख लिया था
बवंडर हो जाने का तरीका
समन्दर में मिल जाने की चाह में
नदी सूखने लगी है----------
फलदार वृक्ष जब
झूम रहे थे
देख रहा था आदमी
सीख लिया तोड़ना उसने
कच्चे- पक्के फल
बदल दी विज्ञान की आड में
इनकी नस्ल
पेड़ हो गये हैं आश्रित आदमी के
भूल गये अपना
असली वजूद।।।।
पृथ्वी को हरा भरा देख
मुकुराता लहराता देख
आदमी ने शुरु किया इन्हे काटना
तोड़ना ,मरोडना, और चूसना
प्रदुषित करना
पृथ्वी की आंखें डबडबा रही हैं
प्रतिपल--------
हे ! मानव बहुत अधिक
सक्षम हो गये हो तुम
इस से अधिक नहीं होना
देखो !
गुहार कर रही है ये प्रकृति
आओ बचाएँ इस को
आओ बचायें
खुद को -----------
सुषमा भंडारी
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