संवेदनाओं व रिश्तों की भाव -भूमि पर लिखा उपन्यास "खट्टे मीठे से रिश्ते"



सुरेखा शर्मा ,समीक्षक 


उपन्यास  -- खट्टे मीठे से रिश्ते 
लेखिका - गरिमा संजय 
प्रकाशन - ज्ञान विज्ञान एजूकेयर
संस्करण - 2019, मूल्य 350/- पृष्ठ -184
              

''रिश्ते तो सचमुच धागे की तरह ही होते हैं,एक बार टूटे तो दोबारा कितना भी भूलाकर निभाने की कोशिश की जाए,मन में गाँठ तो पड़ ही जाती है।एक बार आई दरार कितनी भी क्यों न भरी जाए,उसके निशान हमेशा के लिए बने रहते हैं।"  ये कुछ अंश हैं उपन्यास खट्टे मीठे से रिश्ते ' से। 
         
वस्तुतः ''खट्टे मीठे से रिश्ते" उपन्यास    मानव जीवन के सम्पूर्ण रिश्तों में ही ही नहीं बल्कि समस्त समाज में व्याप्त बुराई जाति- पाति की समस्या का एक शब्द चित्र है।जिसमें मानव जीवन के यथार्थ का चित्रण है जो मानव मन को अनेक प्रकार से प्रभावित करता है ।जैसा कि शीर्षक से ही स्पष्ट हो जाता है कि इस उपन्यास की कथा का मूल बिंदु कुछ खट्टे, कुछ मीठे रिश्तों का संसार है।उपन्यास के नायक -नायिका की लंबी कहानी है ।उपन्यास की घटनाएँ और पात्रों की यात्रा प्रारंभ से अंत तक पाठक को अपने आप से बाँधे रखती है । जो पाठक को आगे  का पन्ना पलटने पर मजबूर  करती है।गरिमा संजय द्वारा रचित संदर्भित उपन्यास "खट्टे मीठे से रिश्ते " एक सीमित दायरे में सीमित पात्रों के साथ व्यापक दृष्टिकोण के साथ लिखा गया उपन्यास है।पूरे कथानक का ताना- बाना इस तरह बुना हुआ है कि घटनाओं में विवरणात्मक विस्तार  तो है ही अगर पाठक भी अपनी कल्पनाशीलता को थोड़ा सा भी प्रवाह देगा तो अधिक आनंद प्राप्त करेगा।


लेखिका चाहती है कि कहानी में तेजी व प्रवाह बना रहे और वह इसमें सफल भी हुई हैं । नायक -नायिका का द्वंद्व और शक्ति परीक्षण का विस्तार पाठकों को बाँधे रखता है मध्यमवर्गीय पारिवारिक परिवेश, समाज में जातिगत विषमता, जिन्दगी के उतार-चढ़ाव, सोच की संकीर्णता  के कारण रिश्तों की खींच तान  ,कस्बे के  जनजीवन पर आधुनिक युवा पीढ़ी का प्रभाव इन सभी में उपन्यास का नायक 'अविनाश ' जिसे परिस्थितियों ने धीर-गंभीर व आक्रोशित बना दिया ,उसके जीवन के विभिन्न पहलुओं को लेखिका ने बहुत ही सहजता से उभारा है । समसामयिक जनजीवन के प्रतिदिन बदलते यथार्थ का उन्होंने बेहद बारीकी से उपन्यास में विश्लेषण किया है । उपन्यास का वर्तमान स्वरूप सामाजिक परम्पराओं में बंधे हुए व्यक्ति के मन की गहराईयों की काल्पनिक खोज एवं सामाजिक परिस्थितियों से पैदा हुई जकड़न को उजागर करता है ।व्यक्ति का जीवन अनेक आयामों पर अनेक घटनाओं से प्रभावित होता है। व्यक्ति एक ही है उसके लिए विभिन्न विचारों,उसकी आवश्यकताओं,सामाजिक परम्पराओं, रीति-रिवाजों तथा स्वयं के मनोवेगों के उमड़ते भावों से अपने जीवन का मार्ग ढूंढ पाना सहज नही ।इसी मार्ग को खोजने की प्रक्रिया को उपन्यास में अभिव्यक्ति दी गई  है।


मध्यमवर्गीय परिवार का सामान्य सा दिखने वाला लड़का अविनाश अपने हमउम्र के  लड़कों की अपेक्षा  बहुत ही शांत दिमाग का और सुलझी मानसिकता वाला है। ऐसा भी नही कि उसमें आवेश और उत्तेजना की कोई कमी है।अगर जानबूझकर उसे आवेश दिलाया जाए और लगातार उसके धैर्य की परीक्षा ली जाए तो शांत  से शांत इनसान भी कब तक संयमित  रह सकता है ? ऐसा ही कुछ  हुआ है नायक के साथ । उसके जीवन में गौरी का  प्रवेश एक सुखद एहसास था लेकिन दोनों के परिवारों में हुए घमासान ने दोनों को अलग करने की ठान ली थी।यहीं से उपन्यास आरंभ होता है ।मानवीय कमजोरियों पर अपने विवेक एवं संयम के बल पर विजय प्राप्त करता अविनाश  धीर- गंभीर, सामाजिक उत्तरदायित्व, मर्यादा का बखूबी निर्वहन करने वाला व्यक्तित्व उभरकर सामने   आया है ।उपन्यास के नायक ने अपनी प्रेमिका के प्रति अपने आत्मिक प्रेम को अन्त तक बहुत ही ईमानदारी व मर्यादा  से निभाया है ।


उसकी मनःस्थिति समझ कर उसकी शक्ति, प्रतिभा व ऊर्जा को सकारात्मक दिशा देते हुए समाजोपयोगी बनाने में पूर्णतः सफल होता है उपन्यास । यह उपन्यास हिन्दी उपन्यासों की बहुत सी रूढ़ियों व परमपराओं को तोड़ता है ।इसमें घटनाएं होते हुए भी कोई घटना नहीं है।यह पाठक के सामने दुनिया के हर रिश्ते के दरवाजे खोलता है। यह अनिश्चितता,स्वप्नलोक , कल्पनाशीलता और यथार्थ के सागर के समान है जिसमें पाठक भी  गोते लगाकर  मोती ढूंढ ही लेता है। अपने कलेवर में छोटा होने पर भी  बड़े फलक का उपन्यास है । इसमें कोई अतिशयोक्ति नही कि जब रिश्ते मीठे होते हैं तो परिवार व समाज के लोग  तारीफों के पुल बाँधते नही थकते लेकिन जहां थोड़े से खट्टे हुए नहीं कि फिर तो वे पुल,  रेत की तरह भुरभुरा कर ऐसे गिराए जाते हैं कि नामोनिशान तक मिटाने में कोई कसर नही छोडी जाती जलेबियों की तरह रसीली और मीठी बातें अचानक करेले की तरह कड़वी लगने लगती हैं,मानों रिश्तों में डायबिटीज का रोग लग गया हो। ऐसा ही हुआ कुछ  गौरी और अविनाश के परिवारों के रिश्तों को । एक समय ऐसा भी था जब दोनों के परिवारों में घनिष्ठ मित्रता थी,लेकिन अब एक दूसरे के कट्टर दुश्मन बन चुके थे।चाशनी जैसी मिठास में पहले खटास आई उसके बाद धीरे-धीरे कड़वाहट दीमक की तरह लगी कि किसी को पता ही नही चला कि साफ सुथरे सुलझे विचारधारा के रिश्तों में दीमक ने कैसे प्रवेश कर लिया ।


जैसे प्यार का सैलाब दोनों परिवारों को नजदीक लाया था किसी को पता नही चला था उसी प्रकार द्वेष की आहट की दस्तक भी किसी को सुनाई नही दी।जिसके कारण दो परिवार एक दूसरे के शत्रु बन गए ।   प्यार और मित्रता को अपने पैर जमाने में कितने वर्ष लग गए इसका अनुमान लगाया जाए तो दो तीन दशक पीछे जाना पड़ेगा ।तब गौरी और अविनाश ने तो आँखे भी नहीं खोली थी अर्थात् अविनाश व गौरी की माताएँ बचपन की सहेलियां थी। लेकिन अब , मित्रता की नींव को हिला दिया था तीन बहन भाईयों ने अर्थात् ईर्ष्या-द्वेष ,स्वार्थ व नफरत ने। सम्पूर्ण उपन्यास का ताना- बाना शिक्षित परिवार की गौरी व व्यवसायिक परिवार के अविनाश के इर्द-गिर्द घूमता है ।उपन्यास का उद्देश्य था कि जीवन में जो रिश्ते एक बार बन गए तो ताउम्र उनमें मिठास बनी रहे।यहां केवल नायक नायिका के रिश्ते की ही बात नही बल्कि पारिवारिक व सामाजिक रिश्तों की भी बात की गई है।बचपन की मित्रता की दीवार पर जब प्रहार होता है तो  रिश्ते दरकते दिखाई देते उपन्यास की नायिका गौरी का अविनाश के घर में आना -जाना लगा रहता था ।बाल अठखेलियों के साथ कब दोनों के मन में प्यार का अंकुर प्रस्फुटित हुआ दोनों ही नही जान पाए। अविनाश की दोनों बहनों से भी गौरी की मित्रता थी।कविता व सोनल दोनों ही गौरी को पसंद करती हैं। इस भ्रम में गौरी व अविनाश जी रहे थे ।


उन्हें विश्वास था कि यदि घर के बड़े बुजुर्गो को उनके प्रेम विवाह से एतराज होगा तो दोनों बहनें साथ दे देंगी लेकिन हुआ इसका उल्टा ही । यही भ्रम उस समय टूटा जब कविता की शादी के अवसर पर परिवार के लोगों को आभास हो गया कि गौरी और अविनाश के बीच जरूर कुछ चल रहा है । कविता की शादी के बाद गौरी के मन की थाह लेने के लिए अविनाश की माँ ने गौरी के सामने किसी अन्य लड़की के गुणगान करके गौरी की झुकी आँखों से प्यार की भाषा को अनुभवी आँखों ने पढ़ लिया । दोनों परिवारों की सहमति से प्यार के रिश्ते पर मोहर भी लग गई थी।सगाई का दिन भी निश्चित हो गया। इतनी आसानी से प्रेम विवाह को स्वीकृति मिल जाएगी ऐसा तो अविनाश और गौरी ने स्वप्न भी नही सोचा था।उस समय यही लगा कि दोनों परिवारों की घनिष्ठ मित्रता का ही परिणाम है, पर यह भ्रम जल्दी ही टूट गया , सगाई के दिन से ही ।जहां अविनाश और गौरी अपने भावी जीवन के मधुर सपनों में खो गए वहीं दूसरी ओर अविनाश के  परिवार के लोगों ने  (पिता को छोड़कर )आलोचनात्मक रवैया अपना लिया और उपहारों के लेन -देन में खामियां निकाल कर अपने औछेपन का परिचय दे दिया ।जिस कारण रिश्तों  में कटुता का बीजारोपण शुरू हो गया ।


रिश्तों में राजनीति करने वाले लोग अपनी चाल ऐसे चलते हैं कि कि किसी को पता ही नही चलता । इसमें भी कोई अतिशयोक्ति नहीं कि दर्द देने वाला कोई बाहर का नहीं होता अपना ही होता है।यहां भी कुछ ऐसा ही हुआ ।अविनाश की बहनों ने  ननद होने की भूमिका निभाते- निभाते अपनी माँ को भी 'सासगिरी' की भूमिका निभाने में पारंगत कर दिया ।जिसका परिणाम अविनाश और गौरी के रिश्ते  को भुगतना पड़ा ।सामाजिक दृष्टि में दोनों का रिश्ता टूट गया । सगाई तोड़ दी गई और अविनाश की माँ ने नए रिश्ते की तलाश शुरू कर दी । बहनें और माँ का षड्यंत्र जो फोन पर रचा जाता था सफल हो गया अविनाश ने अपनी बुद्धिमता का परिचय देते हुए स्पष्ट शब्दों में अपनी माँ को  कह दिया , "देखिए माँ,आप लोग नहीं चाहते तो मैं गौरी से शादी नहीं करूंगा । "    "हाँ ये भी सही है कि चाहे मुझे ताउम्र  कुँवारा ही क्यों न बैठना पड़े ,मैं किसी और से भी  शादी नहीं करूंगा ।" दूसरी ओर गौरी ने अपनी अपनी पढ़ाई पूरी की व नौकरी  शुरू कर दी ।वह जानती थी कि उनके पवित्र व आत्मिक प्रेम में इतनी शक्ति है कि उसे कोई नहीं तोड़ सकता । दोनों जानते थे कि जो विष घोला गया है उसका असर जल्दी ही खत्म हो जाएगा ।हमें अपने प्यार को  निष्ठा पूर्वक निभाना चाहिए।


गौरी ने अविनाश को जानने के साथ-साथ जीवन में प्रेम की अनुभूति को भी जाना था ।अविनाश ही उसके प्रेम का पर्याय बन गया था ।  उनका प्रेम परिपक्वता लिए हुए था जिसका परिणाम ये हुआ कि उनके रिश्ते को पुनः अविनाश के परिवार ने स्वीकार किया । दोनों परिवार जान चुके थे कि रिश्ता हमने तोड़ा था, गौरी और अविनाश ने तो कभी अपना रिश्ता तोड़ा ही नहीं । प्रायः हमारे समाज में लेन- देन के चक्कर में कन्या और वर पक्ष के लोग अपने संबधों की कटुता का विष नव दंपति के जीवन में घोल देते हैं। परिवार व समाज में कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जिन्हें सहज और सुन्दर रिश्ते नहीं भाते क्योंकि उन्हें चटपटे रिश्ते चाहियें जिनमें हर रोज खनक होती हो। इन सभी का पर्दाफाश करने के लिए ही लेखिका ने अपनी लेखनी चलाई । जहां लेखिका द्वारा उपन्यास में  सामाजिक व पारिवारिक संबंधों में लुप्त हो रहीं भावनाओं,मान्यताओं  व संवेदनाओं को बखूबी उबारा वहीं दूसरी ओर आज के परिवेश के अनुसार परिवर्तन होने का भी संकेत दिया गया  है । उपन्यास  रिश्तों में उठे प्रश्नों व उनके उत्तरों को प्राप्त करने का प्रयास करते व रेखांकित करते पात्रों के इर्द-गिर्द घूमता है  जो शाश्वत को भी दर्शाने का काम करता है। अपने नाम को सार्थक करता ओर संकेत करता उपन्यास सुखान्त है।


पात्रों का वर्णन लेखिका ने पूरी तन्मयता से किया है ।कथाकार का मन स्वयं विषयवस्तु से एकाकार होकर चले तभी पाठक भी उससे एकाकार हो सकता है ।यही कृति का सच है ।उपन्यास प्रारंभ से ही कौतूहल बनाए रखता है ।जिससे पठनीयता का सिलसिला प्रणय-गाथा के उतार-चढ़ाव के साथ चलता चला जाता है । भाषा शैली रोचक व प्रवाहमयी है।सरल शब्दों व सरल भाषा के साथ उपन्यास के शीर्षक की सार्थकता सिद्ध होती है । साहित्यिक दृष्टि से देखा जाए तो आज उपन्यास बहुत कम लिखे जा रहे हैं।संजय गरिमा जी का यह तीसरा उपन्यास है।जो रिश्तों की खींच तान पर समस्या प्रधान उपन्यास अंत तक आते-आते समस्या निदान उपन्यास बन गया ।क्योंकि उलझे हुए रिश्तों की समस्या का समाधान हो गया । साहित्य जगत के नए  मान मूल्यों के बीच 'खट्टे मीठे से रिश्ते' उपन्यास रिश्तों और भावनाओं की नई दुनिया में ले जाता है । भीतर कितनी ही उलझी गुत्थियों को सुलझाया गया है ।


हिन्दी साहित्य जगत को समृद्ध करने वाली लेखिका गरिमा संजय द्वारा रचित उपन्यास आद्योपान्त पढ़कर लगा कि लेखनी से रिश्तों का सत्व बरस रहा है ।युवा वर्ग को दिशा देने में समर्थ है । गरिमा संजय की एहसास की कलम से लिखा गया है उपन्यास "खट्टे मीठे से रिश्ते ।"  मन के भावों के स्पर्श  से कुछ ऐसे ही बढ़ती है लेखिका अपने जीवन पथ पर । गरिमा संजय एक ऐसा नाम है जो यश और सम्मान की चाह से दूर अपनी साहित्य सर्जना को ही अपना कर्तव्य समझती हैं। भाषा की प्रवाहपूर्णता और गुण संपन्नता को देखते हुए कोई नही कह सकता कि यह उनका तीसरा उपन्यास है । प्रेम व रिश्तों के रस से सराबोर है उपन्यास ---"खट्टे मीठे से रिश्ते । " लेखिका को शुभकामनाएँ।हिन्दी उपन्यास साहित्य जगत को इसी तरह समृद्ध करती रहें।



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