"इन गलियारों में" कहानियां मध्वयर्गीय समाज के ताने-बाने से बुनी गयी
सुरेखा शर्मा,समीक्षक / साहित्यकार
पुस्तक--इन गलियारों में - कहानी संग्रह
लेखिका - डा.मुक्ता
संस्करण-2016 पृष्ठ---136. मूल्य--350/-
प्रकाशक-सुन्दर साहित्य प्रकाशन (दिल्ली)
'इन गलियारों में' शीर्षक से कहानी संग्रह जो माननीय राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कृत है। संग्रह में डा.मुक्ता जी की 30 कहानियां संकलित हैं । डा.मुक्ता एक अनुभवी एवं सिद्धहस्त लेखिका हैं।अपने जीवन काल में अनेक पदों पर कार्य करते हुए साहित्य सृजन में भी अपना योगदान दिया है।इनकी कहानियां मध्वयर्गीय समाज के ताने- बाने से बुनी गयी हैं और परम्परागत सदियों से चलती आ रही रूढियों की विचारधारा पर इनकी लेखनी खूब चली है।
वास्तव में कहानी मूलत: हमारे परिवेश,हमारे जीवनानुभवों की ही अभिव्यक्ति होती है।हां यह अलग बात है कि लेखक इनको कैसे अभिव्यक्त करता है,अपने अनुभवों को अपनी लेखनी के माध्यम से कैसे रचना का रूप देता है।उसी रूप को दिखाता हुआ यह कहानी संग्रह समाज का आईना है।जिसमें हम अपने समाज का वह चेहरा देख सकते हैं जिसके मुखोटों से हमारा हर रोज सामना होता है। संग्रह की पहली कहानी 'अहसास' एक ऐसे व्यक्ति की कहानी है जो ईमानदार होते हुए भी बेईमान,चौर,डकैत जैसे शब्दों से नवाजा गया तो मां के आश्वासन पर कहता है,"मां! यह दुनिया उसी को झुककर सलाम करती है,जो शातिर है।आजकल सत्य का नहीं, झूठ का सम्मान होता है और जिसके पास दौलत है।मां,दौलत कभी इमानदारी से नही कमाई जा सकती।फिर भी मैं सत्य की राह नही छोडूंगा।" जबकि अंत में सत्य की ही जीत होती है।
'कहानी घर- घर की' शीर्षकानुकूल है।जिसमें स्त्री की स्थिति आज भी दयनीय है।चाहे स्त्री नौकरी-पेशा वाली हो या घर में रहने वाली पर उसकी स्थिति में सुधार नहीं आया।पुरुष वर्ग की प्रताड़ना की शिकार वह आज भी है।'बेमानी रिश्ते', 'मकसद' ,यही इल्तजा है, अजनबीपन का अहसास' 'मनन','अन्तर्द्वन्द्व' में एसे रिश्तों का ताना- बाना बुना गया है कि जब अपना स्वार्थ पूरा हो जाता है तो रिश्ते बेमानी लगने लगते हैं।अपने परायों -सा व्यवहार करते हैं और पराए अपने घर में बरगद-सा वृक्ष लगाकर सींचते हैं।अपने ही बेटे के घर में अजनबीपन का अहसास होता है और पराए लोग अपने घर में रखने को तैयार हैं।
कहानी 'वितृष्णा' समाज पर एक तमाचा है।जो 21वीं सदी में आने पर भी कुप्रथाओं का सहारा लेकर जी रहा है।अपने ही घर में अपने ही भाई के विवाह पर विधवा बहन को अपशगुनी कहकर शादी समारोह में उपस्थित नही होने दिया जाता।आज भी दकियानूसी विचारों को तिलांजलि नहीं दी जा रही।
डा.मुक्ता जी की अधिकांश कहानियां तरल संवेदना से परिपूर्ण हैं।इनके पात्र हमारे जाने-पहचाने,हमारे ही आस- पास रहने वाले सामान्य जीवन जीने वाले हैं।जिनका सामना हर रोज होता है।'सांझे पल' कहानी भी कुछ ऐसे ही दर्द से होकर गुजरती है।शिक्षित होने के बाद भी ससुराल में नायिका को उपेक्षा सहनी पड़ती है,लेकिन नायिका अपनी सकारात्मक सोच से अपना स्थान बना ही लेती है।कहानी का अंत सुखद है। "मुक्तिदाता" शीर्षक से कहानी नारी की मनोस्थिति का परिचय करवाती है।उसकी दृष्टि में नारी की स्वतन्त्रता के कितने भी नारे लगाए जाएं,पर आज भी वही ढ़ाक के तीन पात वाली स्थिति है।पहले अपनी मां की फिर स्वयं की दुर्दशा देखकर नायिका इतनी कठोर हृदय बन जाती है कि अपनी ही मासूम बेटी की हत्या करते हुए उसके हाथ नहीं कांपते,उसका हृदय भी नहीं पसीजता ।इससे बड़ी विड़म्बना क्या होगी कि ममता की देवी कहलाने वाली अपनी ही ममता का गला घोंटने पर विवश हो जाती है।यह बहुत ही गम्भीर विषय है जिस पर हमारे समाज को सोचने पर विवश करेगा ।सोच कर भी हृदय कांप जाता है।स्वयं को भुलावा देने के लिए अपराध बोध से ग्रस्त एक मां स्वयं को मुक्तिदाता समझती है, क्योंकि उसने अपनी बेटी को मुक्ति जो दे दी थी।जबकि यह उसकी भूल थी।
'उजास' कहानी उन विचारों पर छाई धुंध हटाने में सफल हुई है जो धुंध के परदे में ढंके रहते हैं।मां का भरपूर प्यार देने के बाद भी सौतेली मां के दर्जे के साथ- साथ एक नौकरानी से बदतर सलूक होना ,सड़क दुर्घटना होने पर यह कहकर इलाज ना करवाना कि " जितना पैसा इसके इलाज में लगाऊंगा इतने में तो दूसरी नयी दुल्हन खरीद लाउंगा।" कहानी पुरुष की विकृत मानसिकता को उजागर करती है।इसमें लड़की के माता-पिता भी सबसे बड़े अपराधी हैं जो पैसों के लालच में अपनी बेटियों को ऐसे लोगों को सौंपते हैं। संग्रह की कहानियां अनुभवों का यथार्थ चित्रण हैं।ये कहानियां नहीं,जीवन की सच्चाई उजागर करती हैं ।जिनका उद्देश्य मनोरंजन या उपदेश देना नहीं है, पाठकों के मानस पटल से कोहरे का आवरण हटाकर यथार्थ से परिचय करवाना है।
'बदनूमा दाग ' एक लड़की की अस्मत लुटने की हृदय विदारक व्यथा है।जिसको हमारी न्यायिक व्यवस्था भी कोर्ट के कटघरे में बार- बार उस पर प्रहार करती है।सबूतों के अभाव में न जाने कितने अपराधी छूट जाते हैं शमा,नियति औरत की,सिर्फ तुम्हारे लिए,नासूर,दलील,मनन,हकीकत कहानी पाठकों पर अपना प्रभाव छोड़ने में पूर्णत:सफल रही हैं।संग्रह की अंतिम कहानी 'सब्जबाग' एक ऐसी नारी की कहानी है जो भौतिक सुखों की चाह में अपना सब कुछ दांव पर लगाने से भी पीछे नहीं हटती। पर कहते हैं कि अनैतिकता की राह पर चलने वाले कभी सुखी नही रहते।ऐसा ही कहानी की नायिका के साथ हुआ।आखिरकार अपनी जान देकर उन सुखों का मोल चुकाना पड़ा,जिनके पीछे अपने गांव का सुखी संसार छोड़कर आई थी।
"इन गलियारों में" संग्रह में फूलों के साथ-साथ कांटे भी हैं,जो चुभन देते हैं यही यथार्थ सत्य है।जिस सहजता व सच्चाई से लेखिका ने कहानियों के माध्यम से समस्याओं से परिचित करवाया है वहीं पर समाधान के लिए भी पाठकों को झिंझोड़ा है तथा सामाजिक विसंगतियों और मध्यमवर्गीय परिवारों की यथार्थ दशा एवं स्थितियों से अवगत करवाने में पूर्णत:सफल हुई हैं।लेखिका के लेखन में परिपक्वता है।
कहानियों का कथ्य और शिल्प सुन्दर है।भाषा अत्यन्त सरल व सहज है।लेखिका क्लिष्ट शब्दों के प्रयोग से बची हैं जो संग्रह की सफलता का कारण है।"इन गलियारों में" संग्रह डा.मुक्ता जी की रचनात्मक साधना का प्रमाण है।संग्रह का सुधी पाठकों द्वारा स्वागत होगा।
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