उत्तर प्रदेश में कोरोना का बढ़ता प्रकोप
लखनऊ - देश में कोरोना संक्रमितों की संख्या में बढ़ौतरी के साथ ही उत्तजर प्रदेश में भी संक्रमितों की संख्या में लगातार इज़ाफा हुआ है। शुक्रवार 19 जून तक प्रदेश में कुल संक्रमितों की संख्या 16594 थी जबकि 488 लोगों की मौत चुकी थी। सरकार ने जिस सक्रियता का परिचय एक खास समूह में संक्रमण ढूंढ निकालने में दिखाई थी यदि वही तत्परता जांच में तेज़ी लाकर सभी संक्रमितों को बाकी आबादी से अलग करने में प्रदर्शित की होती तो आज का दृश्य कुछ बदला हुआ हो सकता था।
मार्च शुरू से मई के अंत तक उत्तर प्रदेश में कुल संक्रमितों की संख्या 8 हज़ार के कम थी जबकि जून के पहले 20 दिनों में यह संख्या दोगुनी से अधिक हो गई। 31 मई को कोरोना से मरने वालों की कुल संख्या 213 थी लेकिन अगले 19 दिनों में यह संख्या 488 पहुंच गई।
लगभग 23 करोड़ आबादी वाले उत्तर प्रदेश में लखनऊ‚ कानपुर‚ नोएडा‚ गाजि़याबाद‚ मेरठ‚ मुरादाबाद‚ फिरोज़ाबाद‚ सहारनपुर‚ मुज़फ्फरनगर‚ शामली आदि जनपदों के शहरी इलाके सबसे अधिक प्रभावित हैं। यह शहरी आबदियां लगभग दिल्ली की शहरी आबादी के बराबर हो जाती हैं। लेकिन दिल्ली के मुकाबले में कोरोना जांच की सुविधा आधी से भी कम है। उसमें भी निजी अस्पतालों को हिस्सा अलग है। संक्रमण दूसरे छोटी शहरी आबादी वाले जनपदों और यहां तक कि ग्रामीण क्षेत्रों में भी फैला हुआ है। जबकि इनमें कोरोना संक्रमण की जांच और इलाज की सुविधा बहुत कम है।
संक्रमितों की संख्या में तेज़ी का एक कारण पहले की तुलना में अधिक जांच का होना भी है। संक्रमितों की संख्या में बढ़ौतरी में शुरू में जांच की कमी के योगदान से भी इनकार नहीं किया जा सकता। जांच में कमी का मतलब होता है संक्रमितों को संक्रमण फैलाने के लिए खुला छोड़ देना।
इस लिहाज़ से जांच की मौजूदा बढ़ी हुई दर भी अपर्याप्त है और बरसात के कारण हवा में आर्द्रता की मात्रा बढ़ने से संक्रमण की आशंका पहले से कहीं अधिक हो जाती है। मौजूदा हालात को देखते हुए तत्काल उचित कदम नहीं उठाए गए तो स्थिति काफी विकट हो सकती है।
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