तीन पीढ़ियों तक याद रहेगा
विजय सिंह बिष्ट
आदिकाल से संसार में कई परिवर्तन हुए हैं।मोहन जोदड़ो हडप्पा की खुदाई भी दबने और दफन होने के प्रमाण दिलाते हैं। हीरो सीमा और नागासाकी की यादें भी हर वर्ष आती ही रहती हैं। किन्तु 2020 ई0 की आज की तीन पीढ़ियां इसे भुला नहीं पायेंगे।कोरोना की भंयकर बीमारी ने सारे विश्व को तहस नहस ही नहीं बेरोजगारी, कंगाली , घर से बेघर तथा अपनों से भी दूर कर दिया।आज मानव धर्म की दुहाई देने से भी हम कोसों दूर चले गए हैं। किसी की मौत पर शमशान में लकड़ी का धर्म ही निभा पा रहे हैं नहीं पुराने जमाने की तरह शोक-संवेदना ही प्रकट कर पा रहे हैं। मृतक के दर्शन भी परिवार को नसीब नहीं हैं।
दूसरी ओर शादी विवाह की तैयारियों का आलम भी बेरुखा ही नजर आया है अपने सगे-संबंधियों की उमंग तरंगों पर भी पानी फिरा हुआ लगता है।बीस से अधिक सम्मिलित नहीं हूंगे, फिर डरके मारे लोग जाना भी नहीं चाहते। गली गली बंद पड़ी हैं संक्रमण के कारण लोगों को घरों में बंद किया गया है, आने जाने वाले चौदह दिन के वनवास में विद्यालयों में रखे जा रहे हैं। नेताओं को खुली छूट मिली हुई है। चुनाव भी करवाने ही हैं। गरीबों की अपेक्षा नेताओं और धनीवर्ग में इसका प्रभाव अधिक है। सुविधाएं भी इन्हे ही हासिल हैं। पाकिस्तान चीन अपनी चाल चल रहा है।
सारे विश्व के लिए ये दोनों देश सिरदर्द बने पड़े हैं। उनके झांसे में नेपाल की सरकार भी राम की दुहाई देकर भारत से कटने की कगार पर खड़ा है। जहां अल्फन तूफान से बंगाल में जन हानि हुई, मुंबई का समुद्री तूफान और वर्तमान में बिहार का जल संकट भी भूला नहीं जायेगा। जहां कोरोना के मरीजों को रखा जाना है उन चिकित्सालयों में पानी भरा हुआ दिखाई दे रहा है। भूकंप के लगातार झटके भी डरावने ही हैं। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि सूरज की तपिश भी वातावरण के लिए हानिकारक साबित होगी यह भी तूफान का रूप लेगा। चंद्रग्रहण और सूर्य ग्रहण का लगातार होना भी दुर्भिक्ष माना गया है।
कानपुर का दुर्दांत हत्या काण्ड और पालघर में साधु-संतों की हत्या भी एक दुखांत ही है। कई लोग नौकरियां छोड़कर चले गए। उनके जमाधन का मिलना भी उन्हें दूभर लग रहा है क्योंकि छोड़ने के बाद कौन पहचानता है। जो लोग गांव पहुंच गए हैं। उनकी समस्या भी दयनीय है। घर टूटे हैं जमीन वर्षों से बंजर हैं। इस प्रकार यह साल फिर कभी न आए। जिसमें लोगों ने दुःख के सिवाय कुछ नहीं देखा।
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