वर्तमान काल में वेबिनार की आवश्यकता और स्व अनुशासन
सुधाकर पाठक
विगत तीन माह से भारतीय समाज में ‘वेबिनार’ शब्द खूब प्रचलित हो रहा है। जितनी तेजी से इसकी लोकप्रियता बढ़ रही है उसे देखते हुए यह तो तय है कि आने वाले समय में यह हमारे सामाजिक, सांस्कृतिक, वैचारिक, शैक्षणिक, राजनैतिक जीवन को बहुत प्रमुखता से प्रभावित करने वाला हैI आज विभिन्न सामाजिक संजाल, ब्लॉग, ऑनलाइन पत्रिकाओं आदि डिजिटल माध्यमों में लोग ‘वेबिनार’ शब्द को पढ़ते-समझते आ रहे हैं। इससे पहले कभी यह शब्द इस रूप में हमारे दैनिक जीवन के आम उपयोग में नहीं था इसलिए इस नये शब्द को लेकर कौतुहल होना स्वाभाविक हैI
वास्तव में ‘वेबिनार’ है क्या? शाब्दिक अर्थ में कहें तो ‘वेबिनार’ वेब और सेमिनार दो शब्दों को जोड़कर बना है। वेबिनार ठीक सेमिनार की तरह ही होता है। विभिन्न वेब एप्लिकेशन और इंटरनेट के माध्यम से किये जाने वाले ऑनलाइन सेमिनार को वेबिनार कहा जाता है। वेबिनार एक ऑनलाइन सेमिनार है जो विडियो कॉन्फ़्रेंसिंग सॉफ्टवेर का उपयोग करके एक प्रस्तुति को दुनिया में कहीं से भी वास्तविक समय की बातचीत में बदल देता हैI सेमिनार एक ऑफलाइन माध्यम है, जहाँ एक सभागार में मंच, माइक, पोडियम, बैनर, व्यवस्थित कुर्सियाँ आदि की व्यवस्था होती है। सामान्यतः उस मंच पर एक बैनर लगा होता है जिसमें होने वाली सेमिनार का विवरण लिखा होता है I वेबिनार में इन सब चीजों की व्यवस्था नहीं होती है। वेबिनार में आयोजक, वक्ता एवं प्रतिभागी अपने-अपने मोबाइल, कम्प्युटर या लैपटॉप के माध्यम से अपने घर, कार्यालय, पुस्तकालय या जहाँ कहीं भी बैठने की समुचित और सुविधाजनक व्यवस्था होती है, वहाँ से वेब, सॉफ्टवेयर और इंटरनेट के माध्यम से, आयोजक द्वारा पूर्व निर्धारित आई.डी. और पासवर्ड से इन ऑनलाइन सेमिनारों में सम्मिलित होते हैं।
आज की परिस्थिति में वेबिनार हमारे जीवन का एक अभिन्न हिस्सा बनता जा रहा है। जिस तरह से आज तकनीकी क्षेत्र में नए-नए प्रयोग हो रहे हैं और वे हमारे दैनिक जीवन को प्रभावित कर रहे हैं, उसके आधार पर कहा जा सकता है कि हमारे जीवन में ये नई तकनीकें आने वाले समय में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका में होंगींI
चीन के वुहान प्रान्त से शुरू हुए कोरोना विषाणु के संक्रमण ने बहुत तेजी से पूरे विश्व को अपने चपेटे में ले लिया है। इस वायरस का संक्रमण बहुत तेजी से फैल रहा है और अब तक इससे कई लाखों लोगों की जान जा चुकी है। लाखों लोग जो संक्रमित पाये गए हैं, वे विभिन्न अस्पतालों के एकांत वार्ड (आइसोलेशन वार्ड) में उपचार की प्रक्रिया में हैं। विश्व के तमाम वैज्ञानिक एवं मेडिकल क्षेत्र के विशेषज्ञ इस विषाणु से बचने के लिए टीका को खोजने में दिन-रात लगे हुए हैं। इस विषाणु के प्रकोप को देखते हुए विश्व के सभी देशों ने हाल तक तालाबंदी को अपनाए रखा है। इस वैश्विक महामारी ने विश्व अर्थव्यवस्था, उड्डयन सेवा, खाद्य संगठन, शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यटन, मनोरंजन, यातायात, सामाजिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियों आदि को बुरी तरह प्रभावित किया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यू. एच. ओ.) के ताजा आंकड़ों के मुताबिक कोरोना विषाणु का संक्रमण 87 देशों तक पहुँच गया है और उसके अनुसार अब हमें इसके साथ ही रहने की आदत डालनी होगी।
कुल संक्रमण के मामलों के हिसाब से भारत विश्व के चार शीर्ष देशों में शामिल हो चुका है। भारत में कोरोना विषाणु से संक्रमण का पहला मामला 30 जनवरी 2020 को सामने आया थाI दक्षिण भारतीय राज्य केरल की एक 20 वर्षीय युवती जो वुहान के एक विश्वविद्यालय में मेडिकल की छात्रा थीं, में संक्रमण का पहला मामला पाया गया था। उसके बाद भारत में इसका संक्रमण बहुत तेजी से फैला। इस महामारी के प्रकोप को रोकने के लिए देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्र को संबोधित करते हुए 24 मार्च, 2020 को 21 दिनों का सम्पूर्ण तालाबंदी का आदेश दिया। अब तक कोरोना विषाणु के संक्रमण को रोकने का एकमात्र समाधान सामाजिक दूरी बनाए रखना और सफाई पर ध्यान देना ही है। प्रथम चरण की तालाबंदी के बाद भी संक्रमण का फैलना थमा नहीं। नये मामले और बढ़ने लगे तथा मरने वालों की संख्या भी लगातार बढ़ती गयी। द्वितीय चरण में सरकार द्वारा तालाबंदी की अवधि 3 मई तक 19 दिनों के लिए बढ़ा दी गयी। इसी तरह तीसरी बार इस अवधि को 17 मई तक बढ़ा दिया गया। सरकारी निर्देशों, प्रतिबंधों और सुरक्षा नियमों के पालन के बावजूद भी इस वैश्विक महामारी का प्रकोप लगातार बढ़ता रहा है। कोरोना विषाणु के संक्रमण को रोकने के लिए कोई भी टीका ना आने और इसमें लगातार बढ़ोतरी को देखते हुए चौथे चरण की तालाबंदी की घोषणा की गयी जिसमें इस अवधि को 31 मई तक के लिए बढ़ा दिया गया है।
इस तरह भारत में अब तक तालाबंदी के पाँच चरण पूरे हो चुके हैं। इस बीच सभी शैक्षणिक संस्थानों, सरकारी व निजी संस्थानों, कार्यालयों, पुस्तकालयों, औद्योगिक क्षेत्रों, मन्दिर एवं अन्य धार्मिक सभाएं, परिवहन, मनोरंजन के क्षेत्र, होटल, खाद्य सेवा, विभिन्न छोटे व्यवसाय सभी की गतिविधियों पर पाबंदी लगाई गयी हैI यद्यपि अग्नि, सुरक्षा संयत्र, राशन की दुकानें, हॉस्पिटल, जरूरी सेवाओं व आपदा सेवाओं को चालू रखा गया। एक लम्बे अंतराल तक इस तरह से सभी कारोबार, व्यवसाय, शिक्षा, मनोरंजन एवं सामाजिक गतिविधियों के रुकने से जनता में इसका नकारात्मक असर हुआ है। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। अपने घरों की परिधि में इस तरह कैद होने से उसका रचनात्मक, भावनात्मक, सामाजिक, सांस्कृतिक व्यवहार पर विपरीत प्रभाव पड़ा है। समाज के हर वर्ग के लोगों में चिन्ता व्याप्त होने लगी है कि इस तरह बार-बार की तालाबंदी से सामाजिक कार्य कैसे आगे बढ़ेंगे? इसी बीच सरकार ने बच्चों की पढ़ाई को जारी रखने के लिए सभी विद्यालयों को ऑनलाइन शिक्षा के निर्देश दिये। इसी पद्धति का अनुसरण करते हुए कुछ बुद्धिजीवियों एवं विद्वतजनों ने तकनीक का सहारा लिया और इसी तरह की तकनीक के इसी प्रयोग के रूप में वेबिनार का प्रचलन सामने आया। आज इस तालाबंदी के दौरान वेबिनार के माध्यम से लोग आपस में जुड़ पा रहे हैं।
इस महामारी के चलते एक लम्बे समय से आम नागरिक घुटन भरे वातावरण में जीने को विवश हैI आगे क्या स्थिति होगी अथवा आने वाले समय में लोगों का जीवन यापन कैसे चलेगा? देश की अर्थव्यवस्था का हाल क्या होगा? सामाजिक एवं राजनीतिक ढाँचा कैसा होगा? न्याय प्रणाली की अवधारणा क्या होगी तथा इसे कैसे व्यवस्थित किया जाएगा? शिक्षा एवं प्रशासन को कैसे सुचारू रखा जाएगा? आदि प्रश्नों के उधेड़बुन में समाज उलझा हुआ है। देश में पहले से ही व्याप्त गरीबी, अशिक्षा, भुखमरी एवं बेरोजगारी की समस्याओं को इस महामारी ने और भी चुनौतीपूर्ण बना दिया। विभिन्न महानगरों से अपने पैतृक एवं मूल निवास की ओर भारी तादाद में मजदूरों के पलायन ने एक बार फिर लोगों के चेतना को उद्धेलित कर दिया है। इसने समाज को इस यथार्थ से अवगत कराया कि आने वाला समय त्रासदियों से भरा हुआ है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद देश की दशा और दिशा जिस स्थिति से गुजर रही थी, समय ने एक बार फिर से देश की जनता को विगत की ओर झाँकने को मजबूर कर दिया है। किसी को कुछ सूझ नहीं रहा है। चारों ओर सब कुछ ठप्प होने से नया कुछ उत्पादन ही नहीं हो पा रहा है।
नये चलचित्रों का निर्माण, नई पुस्तकों का प्रकाशन, नये शैक्षिक सत्र का आरंभ आदि सब लगभग रुका हुआ हैI अगर नया साहित्य कुछ लिखा भी जा रहा है तो उसका प्रकाशन नहीं हो पा रहा है। नये विचारों, नई सोच तथा रचनात्मकता एवं सृजनात्मक कार्य रुक-से गए हैं। लम्बे समय तक अपने घरों की परिधि तक सीमित होकर खुद को व्यस्त रखना लोगों के वश में नहीं है, इससे उनमें नकारात्मक भाव जन्म ले रहे हैं। अभिव्यक्ति के प्रचलित माध्यम बंद होने से लोग उकता गए है, ऊब चुके हैं। शुरुआत में कुछ लोगों ने इस अवधि में अपने कुछ पुराने अधूरे काम पूरे किये। किसी ने लेखन में, गायन में, चित्रकला में, पेंटिंग में, सामाजिक सेवाओं तथा अन्य रचनात्मक कार्यों में कुछ समय के लिए खुद को व्यस्त रखा लेकिन इसके बाद आगे क्या क्या करें? जहाँ नैराश्य से भरी इस उबाऊ तालाबंदी ने लोगों की मनस्थिति और मनोवैज्ञानिक पक्ष को कुंठित किया वहीं वेबिनार के बढ़ते प्रचलन ने समाज के बौद्धिक वर्ग, शैक्षिक संगठनों, साहित्यकारों, पत्रकारों, बुद्धिजीवियों, पाठकों, प्रकाशन विभागों, मीडिया कर्मियों, स्वास्थ्य कर्मियों, विचारकों, राजनीतिज्ञों, शिक्षाविदों, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं साहित्यिक संगठनों तथा समाज सुधारकों को समकालीन परिस्थितियों पर, देश की आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं विभिन्न राष्ट्रीय महत्त्व के मुद्दों पर अपने मत/अभिमत, विचार एवं अभिव्यक्ति संप्रेषित करने का माध्यम उपलब्ध कराया है। अधोगति की ओर जाती हमारी वैचारिक, बौद्धिक, सामाजिक चेतना को वेबिनार ने एक नया मार्ग दिया है।
इस तालाबंदी में समाज और राष्ट्र को आपस में जोड़े रखने तथा तकनीक के सहारे नयी कल्पनाओं को पुनर्जागृत करने के लिए वेबिनार का कोई अन्य विकल्प नहीं दिखता। आज जिन हालातों से देश गुजर रहा है, उसे देखते हुए वेबिनार की आवश्यकता और भी मजबूत हो जाती है। यहाँ तक की सरकार भी प्रशासनिक आदेशों, दिशा-निर्देश, उच्चाधिकारियों से सम्पर्क स्थापित करने के लिए इनका उपयोग कर रही है ।
विदेशों में खासकर दूरस्थ प्रशिक्षण, लाइव बैठकों, प्रदर्शनी के लिए वेबिनार का प्रयोग बहुत पहले से होता आ रहा है। ऐसा नहीं है कि भारत में इसका प्रयोग बिलकुल पहली बार हो रहा हैI इससे पहले भी बड़ी-बड़ी कम्पनियाँ और औद्योगिक इकाइयाँ अपनी बैठकों आदि का आयोजन इसके अलग रूप में विडियो कॉन्फ़्रेंसिंग के माध्यम से करतीं रहीं हैं I भारत में यह हाल की तालाबंदी के बीच एक अलग प्रकार से अनुप्रयोग में आया है और इसकी लोकप्रियता इस तालाबंदी के अवधि में बढ़ी है। वेबिनार के बढ़ते प्रचलन ने भारतीय प्रबुद्ध वर्ग में एक नयी समझ एवं चेतना का विकास किया है कि इस तरह से भी संगोष्ठियों एवं परिचर्चाओं को आयोजित किया जा सकता है। इसने भारतीय परिप्रेक्ष्य में शैक्षिक, साहित्यिक, सामाजिक गतिविधियों में एक नयी परंपरा की शुरुआत की है। वेबिनार के लिए हाल प्रचलित सॉफ्टवेयर प्रदत्त सेवाओं में मुख्य रूप से गूगल मीट, जूम एप, फेसबुक लाइव, यू ट्यूब लाइव, स्काइप लाइव, गो टू वेबिनार, एनी मीटिंग आदि का उपयोग किया जाता है।
आज के समय की मांग के अनुरूप अब वेबिनार हमारे जीवन का एक अभिन्न अंग बनता जा रहा है। विचारों के आदान-प्रदान की बात हो या किसी मुद्दे पर अपने तर्क को प्रस्तुत करना हो, आज भारतीय समाज वेबिनार पर निर्भर होता जा रहा है। किन्तु यहाँ एक बात ध्यान रखने की है कि माध्यम भले कोई भी हो, व्यक्ति को अपना आदर्श व्यवहार, शिष्टाचार, संस्कार एवं स्व-अनुशासन को दरकिनार कभी नहीं करना चाहिए। सामान्यतय: वेबिनार में इन चीजों का अभाव अखरता है, खासकर गैर सरकारी आयोजनों में। यहाँ प्रतिभागियों को अपने व्यवहार में स्वयं एक अनुशासन बनाये रखने की जरूरत है। वेबिनार को लेकर आम धारणा यह बनी हुई है कि कहीं पर भी बैठकर, कहीं से भी इसमें आसानी से जुड़ा जा सकता है और यह सच भी हैI
लेकिन इसका मतलब यह बिलकुल नहीं है कि प्रतिभागी बिस्तर, किचन, डाइनिंग टेबल, व्यायाम कक्ष, छत आदि जगहों में जैसे मर्जी बैठे-खड़े, अन्य गैरजरूरी कार्य करते हुए इन आयोजनों में सम्मिलित हों। जिस तरह से हम विभिन्न संगोष्ठियों, सेमिनारों एवं परिचर्चाओं में शालीनता से उपस्थित होते रहे हैं, ठीक उसी तरह वेबिनार में भी प्रतिभागियों को भद्र, सभ्य एवं अनुशासित व्यवहार की अपेक्षा रहती है। जो गरिमा एवं गंभीरता सेमिनार में होती है वही वेबिनार पर भी लागू होती है। ऐसे आयोजनों के समय भले ही हम अपने घरों में हों, लैपटॉप या कंप्यूटर के सामने बैठे हों, किन्तु अपनी पोशाक, उठने-बैठने का ढंग, देखने-सुनने-बोलने के हावभाव आदि में भद्रता एवं शालीनता दिखनी चाहिये। हम जिस वेबिनार का हिस्सा होते हैं वहाँ उपस्थित वक्ता, आयोजक तथा अन्य प्रतिभागी आपके पहनावे, बैठने के ढंग, आपकी शारीरिक भाषा (बॉडी लैंग्वेज) आदि के द्वारा आपके चरित्र एवं व्यक्तित्व का भी मूल्यांकन कर रहे होते है। यदि हम यह मान लेते हैं कि ऑनलाइन में इतना तो चलता है या इससे कुछ फर्क नहीं पड़ने वाला तो हम बहुत बड़ी चूक कर रहे हैं।
हमारे व्यक्तित्व निर्माण में तथा भावी योजनाओं के सम्बंध में इसके हमें नकारात्मक असर भुगतने पड़ सकते हैं। वेबिनार हमें कई सुविधाएँ उपलब्ध कराता है, जैसे हम जब चाहें अपने वीडियो या ऑडियो को बंद कर सकते हैं, स्वयं को बड़ी स्क्रीन के माध्यम से केंद्र में लाकर अपना पक्ष रख सकते हैं, किन्तु यहाँ भी हमें स्व अनुशासन का पालन करना चाहिए। जब वक्ता या विशेषज्ञ बोल रहें हों तो अपने ऑडियो को बंद कर देना चाहिए और वीडियो को खोल देना चाहिए। कई वेबिनारों में यह देखने को मिलता है कि जब वक्ता या विषय विशेषज्ञ बोल रहे होते हैं तो प्रतिभागियों की ओर से बोलने या घर के अन्य सदस्यों से बातचीत की आवाजें आती रहतीं हैं। इसी तरह कई बार वे अपने वीडियो विकल्प को भी बंद कर देते हैं जिससे वक्ता को यह नहीं मालूम होता कि उसके लैपटॉप या कंप्यूटर के स्क्रीन पर जो 60 से 100 प्रतिभागियों की उपस्थिति दिख रही है, असल में वे उसकी बात को सुन भी रहे हैं कि नहीं। उपस्थित प्रतिभागी अपनी-अपनी जगहों पर बैठें भी हैं या उठकर अन्य कामों में लग गए हैं। एक वक्ता या विशेषज्ञ के लिए इसका बहुत बड़ा मनोवैज्ञानिक असर होता है। अतः हम जब भी किसी वेबिनार में सम्मिलित हों तो हमें इन छोटी-छोटी लेकिन महत्वपूर्ण बातों का अवश्य ध्यान रखना चाहिए।
विभिन्न सॉफ्टवेयर या वेब एप्लीकेशन हमें तकनीकी ज्ञान तो दे सकतीं है किन्तु स्व अनुशासन का पालन करना हमारी अपनी नैतिक जिम्मेदारी है। आने वाला समय वेबिनार एवं अन्य तकनीकों के सहारे ही चलेगा इसलिए ऐसे में हमें सामाजिक एवं तकनीकी अनुशासनों पर भी ध्यान देना ही होगा। हमारा व्यवहार ही हमारे व्यक्तित्व का दर्पण है, इसलिए इन तकनीकों के प्रयोग में हमें हमेशा ध्यान रखना होगा कि एक ‘तीसरी आँख’ भी है जो हमेशा हम पर नज़र बनाये हुए हैI हमें इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि हमारे इस व्यवहार का संज्ञान न केवल इस आयोजन में सम्मलित लोगों द्वारा लिया जा रहा है बल्कि इसकी रिकॉर्डिंग सोशल मीडिया व अन्य माध्यमों से समाज के बड़े वर्ग के पास बाद में भी न केवल पहुंचेगी बल्कि सुरक्षित भी रहेगीI इस रिकॉर्डिंग से समय-समय पर आपके व्यक्तिव का मूल्यांकन भी होगा और यह सुरक्षित रिकॉर्डिंग न केवल हमारे अपने देश में बल्कि विश्व में कभी भी, कहीं भी देखी-सुनी जा सकेगीI
लेखक-सुधाकर पाठक हिन्दी भाषा के समर्थक, प्रचारक और भारतीय भाषाओँ के संरक्षण के पक्षधर हैंI हिन्दी भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए आपके द्वारा किये जा रहे कार्योँ को रेखांकित करके हुए दिल्ली सरकार की हिन्दी अकादमी के द्वारा आपको वर्ष 2018-19 के ‘विशेष योगदान सम्मान’ से सम्मानित किया गया है I आप 11वें विश्व हिन्दी सम्मलेन, मॉरिशस के लिए विदेश मंत्रालय के सरकारी प्रतिनिधि मंडल में सम्मलित थे और वर्ष 2015-16 में हिन्दी अकादमी, दिल्ली के सलाहकार समिति के सदस्य भी रहे हैं I भारतीय भाषाओँ के के प्रचार-प्रसार एवं संवर्धन के लिए राष्ट्रीय स्तर पर कार्य करने वाली संस्था ‘हिन्दुस्तानी भाषा अकादमी’ के आप संस्थापक अध्यक्ष हैं I आपके संपादन में यह संस्था एक त्रैमासिक पत्रिका ‘हिन्दुस्तानी भाषा भारती’ का प्रकाशन करती है I भारतीय भाषाओँ के शिक्षकों के संगठन ‘शिक्षक प्रकोष्ठ’ के आप संचालक भी हैं I
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