कविता // आओ फिर से दीप जलाएं



विजय सिंह बिष्ट


आओ फिर से दीप जलाएं,
धरती पर राम राज उतारें,
राम मंदिर को भव्य बनाएं।
पुरुषोत्तम सा करें आचरण,
आओ मंगल गीतों को गाएं।
आओ फिर से दीप जलाएं।


आओ मन से दीप जलाएं,
भागे कलुष हर जन मन से,
प्रीति रीति के गुण अपनाएं।
दुःख दाद्रिय न हो जग में,
ऐसे विकास की ज्योत जलाएं।
आओ मिलकर दीप जलाएं।


सब नर करें परस्पर प्रीती
विश्व बंधुत्व का संदेश दिलाएं,
राम राज की हो परिकल्पना
द्वेषभाव कहिं रह न जाए।
आओ मिलकर दीप जलाएं।।


सब धर्मों  की हो जय जयकार,
सबकी पताका फहराएं,
कलुषतम हर प्रकाश भर मनों में,
ऐसे शुद्ध मन से दीप जलाएं।
आओ राम नाम का दीप जलाएं।


श्रेष्ठ राष्ट्र की हो मन में धारणा,
विश्व पटल पर ध्वजा लहराएं,
सुख शान्ति समृद्धि लेकर आए,
राम नाम का मन में दीप जलाएं।
        


टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

"मुंशी प्रेमचंद के कथा -साहित्य का नारी -विमर्श"

गांधी जी का भारतीय साहित्य पर प्रभाव "

पीआईबी,सीबीसी व बीआईएस ने मनाया महिला दिवस

कंपनी सचिव संस्थान के जयपुर चैप्टर ने की अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर संगोष्ठी

स्त्री रोग निदान हेतु मल्टी स्पेशियलिटी सृष्टि हॉस्पीटल का हुआ उद्घाटन