कविता // भ्रूणहत्या                          



जुली सहाय


जाने कैसे  मार डाली जाती है लड़कियाँ गर्भ में ही,
भले ही पूजी जाती होगी देवी
दुर्गा ,लक्ष्मी ,सरस्वती घर-घर मे, पर सच है
देवी को पूजे जाने वाले घर मे भी मार डाली जाती है लड़कियाँ


अपनी काया में काँटा भी चुभे तो दर्द ही दर्द होता है၊
पर सेांचो ,गर्भ में अपनी ओर आते औज़ारों को देख
कैसे डर से काँप जाती होंगी लड़कियाँ၊


जब मुझको डर सताए जाकर छुप जाती हूँ၊
कोठरी में,और बन्द करती हूँ किवाड़, पर सोचो
गर्भ में कहाँ छिप पाती होंगी लड़कियाँ,और सहज ही
मारी जाती होंगी लड़कियाँ ,पर क्या  अपने ही अंगो 
को खोकर सहज हो पाती होंगी लड़कियाँ                                                                                                            या अपने ही नज़रो में पश्चताप में जीती होंगी लड़कियाँ।।


 


 


 


 


टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

उर्दू अकादमी दिल्ली के उर्दू साक्षरता केंद्रों की बहाली के लिए आभार

स्वास्थ्य कल्याण होम्योपैथी व योगा कॉलेजों के दीक्षांत में मिली डिग्रियां

"मुंशी प्रेमचंद के कथा -साहित्य का नारी -विमर्श"

वाणी का डिक्टेटर – कबीर