राग मल्हार उत्सव में पिता-पुत्र की जोड़ी ने बॉंधा समा
जयपुर: जवाहर कला केंद्र में वायलिन की धुन सुनकर श्रोताओं ने रंगायान सभागार में आभासी बारिश का आनंद लिया। मौका था जेकेके की ओर से आयोजित राग मल्हार कार्यक्रम का। जयपुर के पं. कैलाश चंद्र मोठिया और उनके बेटे योगेश चंद्र मोठिया की जुगलबंदी ने वायलिन पर धुन छेड़कर मेघों का आह्वान किया।
पं. कैलाश मोठिया और योगेश चंद्र ने विदेशी वाद्य यंत्र वायलिन पर बखूबी भारतीय राग मल्हार बजायी। तबले पर परमेश्वर लाल कत्थक व पखावज पर डॉ. त्रिपुरारी सक्सेना ने संगत की। कार्यक्रम इंद्र देवता को प्रसन्न करने का यह बड़ा प्रयास रहा। राग मल्हारी आलाप से कार्यक्रम का आगाज हुआ। इसके बाद जोड़ आलाप, द्रुत गति में झाला, तीन ताल में विलंबित मसीतखानी गत, मध्यलय तीन ताल में विलंबित रजाखानी गत बजाई। पं. कैलाश मोठिया ने पं. विश्व मोहन भट्ट द्वारा रचित धुन (द मिटिंग बाई रिवर) पेश की तो श्रोता झूम उठे। इसके बाद उन्होंने राग दरबारी, वंदे मातरम् और अंत में राग भैरवी की प्रस्तुति दी।
रावणहत्थे से प्रेरित है वायलिन पं. कैलाश मोठिया ने बताया कि वायलिन की खोज भले ही जर्मनी में हुई हो लेकिन वह भारतीय वाद्य यंत्र रावणहत्थे से प्रेरित है। रावण ने रावणहस्त्रम नामक वाद्य यंत्र बनाया था जो बाद में रावणहत्था कहलाने लगा। वायलिन को दिया भारतीय रूप कैलाश मोठिया ने 10 वर्ष की मेहनत के बाद एक खास तरह का वायलिन 'कैलाश रंजनी बेला' तैयार किया है। उन्होंने बताया कि इसमें चार की जगह पॉंच मुख्य तार है वहीं चौदह तरप के तार है। कार्यक्रम के दौरान मोठिया के पुत्र योगेश ने कैलाश रंजनी बेला बजाकर श्रोताओं को इस विशिष्ठ वाद्य यंत्र को सुनने का अवसर प्रदान किया।
रावणहत्थे से प्रेरित है वायलिन पं. कैलाश मोठिया ने बताया कि वायलिन की खोज भले ही जर्मनी में हुई हो लेकिन वह भारतीय वाद्य यंत्र रावणहत्थे से प्रेरित है। रावण ने रावणहस्त्रम नामक वाद्य यंत्र बनाया था जो बाद में रावणहत्था कहलाने लगा। वायलिन को दिया भारतीय रूप कैलाश मोठिया ने 10 वर्ष की मेहनत के बाद एक खास तरह का वायलिन 'कैलाश रंजनी बेला' तैयार किया है। उन्होंने बताया कि इसमें चार की जगह पॉंच मुख्य तार है वहीं चौदह तरप के तार है। कार्यक्रम के दौरान मोठिया के पुत्र योगेश ने कैलाश रंजनी बेला बजाकर श्रोताओं को इस विशिष्ठ वाद्य यंत्र को सुनने का अवसर प्रदान किया।
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