गढ़वाली-कुमाउनी भाषाओं की संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल व कठोर भू-कानून के लिए ज्ञापन।
नई दिल्ली- उत्तराखण्ड लोक-भाषा साहित्य मंच, दिल्ली द्वारा गढ़वाली-कुमाउनी भाषाओं को संविधान आठवीं अनुसूची में शामिल करने हेतु लगातार प्रयास कर रहा है इसलिए मंच की मांग है कि उत्तराखण्ड विधानसभा से प्रस्ताव पारित करके केंद्र सरकार को भेजा जाये। ज्ञापन देने वाले साहित्यकारों में मंच के संयोजक सर्वश्री दिनेश ध्यानी, बृजमोहन शर्मा वेदवाल, गिरधारी सिंह रावत, उमेश चन्द्र बंदूनी, प्रतिबिम्ब बर्थवाल, अनिल पन्त आदि थे।
उत्तराखण्ड के स्थानिक आयुक्त मिश्रा के माध्यम से उत्तराखण्ड सरकार को दिल्ली एनसीआर राज्य आंदोलनकारियों के चयन हेतु, कठोर भू कानून तथा उत्तराखण्ड लोक-भाषा साहित्य मंच, दिल्ली द्वारा गढ़वाली-कुमाउनी भाषाओं को संविधान आठवीं अनुसूची में शामिल करने हेतु उत्तराखण्ड विधानसभा से प्रस्ताव पारित करके केंद्र सरकार को भेजने लिए ज्ञापन सौंपा गया। u ज्ञातव्य हो कि दिल्ली एनसीआर में रह रहे उत्तराखण्ड राज्य आंदोलनकारियों का आरोप है कि अभी तक उनका सही से चिन्हीकरण सही से नहीं हो पाया है। इसलिए बहुत से आन्दोलनकारी अभी भी इस सूची के बाहर हैं। वहीं उत्तराखण्ड में सीमान्त राज्य होने के बावजूद जमीन की खरीद फरोख्त पर कोई ठोस नीति न होने के कारण भू-माफिया उत्तराखण्ड में जमीन की लूट में शामिल हो गया है
जिससे स्थानीय लोगों की रक्षा, सुरक्षा पर गंभीर खतरा उत्पन्न हो गया है। इसलिए उत्तराखण्ड सरकार से कठोर भू-कानून की मांग है।राज्य आंदोलनकारियों के पुनः चिन्हीकरण हेतु सर्वश्री अनिल पंत ,मनमोहन सिंह, हरीश लखेड़ा, रामेश्वर गोस्वामी, रविंद्र चौहान, पदम सिंह बिष्ट, हरीश कुकरेती, मोहन चन्द्र जोशी, रवीन्द्र सिंह चौहान ने कठोर भू-कानून हेतु ज्ञापन सौंपा। उत्तराखण्ड सरकार के स्थानिक आयुक्त श्री अजय मिश्रा ने उक्त ज्ञापनों को अपनी सस्तुति बाद उत्तराखण्ड सरकार को प्रेषित कर दिया गया है। अब देखना है उत्तराखण्ड सरकार इस बारे में क्या फैसला लेती है।
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