मोहन फाउंडेशन जयपुर की मुहिम गौरवी ने आयोजित किया ऑर्गन डोनेशन टॉक शो
जयपुर, गौरवी ने ऑर्गन डोनेशन, टिश्यू डोनेशन, ट्रांसप्लांटेशन और उसकी जुड़ी जानकारियां और भ्रांतियों पर केंद्रित किया गया कार्यक्रम 'गेट ऑर्गन-नाइज़्ड' का आयोजन किया गया। शहर के मानसरोवर स्थित मंगलम प्लस मेडिसिटी हॉस्पिटल में आयोजित हुए इस सेशन में जयपुर के कई ऑर्गन डोनेटर्स, ऑर्गन रिसिपटेंट, सोशल एक्टिविस्ट और सोशलाइट्स मौजूद रहे। सेशन में स्पीकर्स के तौर पर मोहन फाउंडेशन जयपुर सिटीजन फोरम (एमएफजीसीएफ) की प्रॉजेक्ट डायरेक्टर डॉ अनीता हाडा, मेंबर एमएफजीसीएफ और जयपुर रोटरी पर्ल प्रेजिडेंट रेनू उबा और किडनी ट्रांसप्लांट रिसिपटेंट, इंडिया बुक ऑफ़ रिकार्ड्स होल्डर, एम्बेसडर ऑर्गन इंडिया आशीष सांगवान मौजूद रहे।
4 साल पहले अपेंडिक्स सर्जरी के दौरान मुझे महसूस हुआ कि शरीर में हर ऑर्गन की क्या अहमियत है। मेरे जीवन में कोई बदलाव नहीं आया मगर जिनकी बॉडी में कोई महत्वपूर्ण अंग काम ना करे या निकाल दिया जाए तो उन्हें कितनी परेशानियों का सामना करना पड़ता है । ये समझते हुए ही मैंने अंगदान और उससे जुडी जानकारी को लोगों तक पहुंचाने की कोशिश में लग गई। ये कहना था 16 वर्षीय जयश्री पेड़ीवाल इंटरनेशनल स्कूल की छात्रा, सोशल एक्टिविस्ट और एनजीओ आवर फॉर विज़न की फाउंडर गौरवी कौशिक का।
टॉक के दौरान डोनर और रिसेप्टेन्ट के जीवन में आए बदलावों के बारे में डोनर अनीता हाडा ने बताया कि मैंने और मेरे परिवार ने वो दर्द महसूस किया है जब मेरे बेटे आशीष के नए जीवन के लिए हम हर जद्दोजहद कर रहे थे। इस बीच जब मेरी किडनी और मेरे बेटे की किडनी मैच हुई तब सिर्फ मेरे बेटे को ही नहीं हमारे पूरे परिवार को नया जीवनदान मिला था। हमारे समाज में फैली भ्रांतियां हमे इस महादान से रोकती रही है। मगर अब ज़रूरी है हम शिक्षा का हाथ थामते देते हुए इस का महत्व समझे। एक ऑर्गन सिर्फ़ एक जीवन नहीं मरते हुए पूरे परिवार को नया जीवन देता है। मैं मानती हूं कि मृत शरीर अपने साथ धरती से मिट्टी भी नहीं ले जा सकता, अपने जीवन भर की कमाई पूंजी भी यहीं छोड़ जाता है तो ये शरीर तो सबसे पहले पराया है इसे अपने परिवार, अपने समाज और अपने आने वाली पीडियों को भेट के तौर पर दान करनी चाहिए।
टॉक के दौरान डोनर और रिसेप्टेन्ट के जीवन में आए बदलावों के बारे में डोनर अनीता हाडा ने बताया कि मैंने और मेरे परिवार ने वो दर्द महसूस किया है जब मेरे बेटे आशीष के नए जीवन के लिए हम हर जद्दोजहद कर रहे थे। इस बीच जब मेरी किडनी और मेरे बेटे की किडनी मैच हुई तब सिर्फ मेरे बेटे को ही नहीं हमारे पूरे परिवार को नया जीवनदान मिला था। हमारे समाज में फैली भ्रांतियां हमे इस महादान से रोकती रही है। मगर अब ज़रूरी है हम शिक्षा का हाथ थामते देते हुए इस का महत्व समझे। एक ऑर्गन सिर्फ़ एक जीवन नहीं मरते हुए पूरे परिवार को नया जीवन देता है। मैं मानती हूं कि मृत शरीर अपने साथ धरती से मिट्टी भी नहीं ले जा सकता, अपने जीवन भर की कमाई पूंजी भी यहीं छोड़ जाता है तो ये शरीर तो सबसे पहले पराया है इसे अपने परिवार, अपने समाज और अपने आने वाली पीडियों को भेट के तौर पर दान करनी चाहिए।
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