मीडिया की हिंदी और हिंदी का मीडिया' में जो एक चीज समान है, वह है भाषा
नई दिल्ली । "भाषाओं के माध्यम से ही देश का विकास संभव है। आज भारत में अंग्रेजी को प्रतिभा का पर्याय मान लिया गया है। अगर हम ऐसे शीर्ष 20 देशों की बात करें, जिनका सकल घरेलू उत्पाद और विकास दर सबसे ज्यादा है, तो आपको जानकर हैरानी होगी कि इन 20 में से 16 देशों में अंग्रेजी नहीं, बल्कि उनकी मातृभाषा में पढ़ाई होती है।" यह विचार केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा के अध्यक्ष प्रो. अनिल जोशी ने हिंदी पखवाड़े के अवसर पर भारतीय जन संचार संस्थान द्वारा 'मीडिया की हिंदी और हिंदी का मीडिया' विषय पर आयोजित संगोष्ठी के दौरान व्यक्त किए। कार्यक्रम की अध्यक्षता आईआईएमसी के महानिदेशक प्रो. (डॉ.) संजय द्विवेदी ने की। इस अवसर पर नवोदय टाइम्स के संपादक अकु श्रीवास्तव, श्री गुरु तेग बहादुर खालसा कॉलेज की प्रोफेसर स्मिता मिश्र एवं पीजीडीएवी कॉलेज के प्रो. हरीश अरोड़ा भी उपस्थित रहे।
पीजीडीएवी कॉलेज के प्रो. हरीश अरोड़ा ने कहा कि किसी भी राष्ट्र की पहचान का प्रतिमान भाषा भी होती है। हिंदी को जानने वाले आज संपूर्ण विश्व में हैं। भाषा सांस्कृतिक परिदृश्य से निकलकर सामने आती है। जब हम किसी भाषा को स्थिरता प्रदान कर देते हैं, तो वह जड़ हो जाती है। उन्होंने कहा कि हिंदी भाषा में जिस तरह बदलाव होते चले आ रहे हैं, उसी तरह मीडिया में भी बदलाव हो रहे हैं। वर्तमान में सोशल मीडिया की भाषा प्रिंट और टीवी की भाषा से बिल्कुल अलग है, लेकिन इसने हिंदी को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने में अहम भूमिका निभाई है।
कार्यक्रम में विषय प्रवर्तन संस्थान के डीन अकादमिक प्रो. (डॉ.) गोविंद सिंह ने किया। मंच संचालन डॉ. पवन कौंडल ने किया एवं धन्यवाद ज्ञापन डॉ. प्रतिभा शर्मा ने दिया। संगोष्ठी में भारतीय जन संचार संस्थान के प्राध्यापकों, अधिकारियों एवं कर्मचारियों ने हिस्सा लिया। इस अवसर पर हिंदी पखवाड़े के दौरान संस्थान द्वारा आयोजित विभिन्न प्रतियोगिताओं के विजेताओं को प्रमाण पत्र वितरित किए गए। संगोष्ठी के दौरान संस्थान द्वारा प्रकाशित त्रैमासिक पत्रिका 'राजभाषा विमर्श' के नए अंक का लोकार्पण भी किया गया।
संगोष्ठी के मुख्य अतिथि के रूप में विचार व्यक्त करते हुए प्रो. जोशी ने कहा कि एक दशक पहले देश में सर्वाधिक पढ़े जाने वाले अखबार अंग्रेजी के थे, लेकिन आज ये स्थान हिंदी को मिला हुआ है। देश में रोजगार का सबसे बड़ा क्षेत्र हिंदी मीडिया है। फिर आखिर हमें हिंदी मीडिया या मीडिया की हिंदी पर चर्चा करने की आवश्यकता क्यों पड़ रही है। उन्होंने कहा कि हिंदी मीडिया को मौलिक चिंतन की आवश्यकता है। हिंदी को रोजगार से जोड़ते हुए भाषा संबंधी रुकावट को पार करना आवश्यक है। प्रो. जोशी के अनुसार एक वक्त था जब भारतीय भाषाओं में प्रतिस्पर्धा की भावना थी, लेकिन वर्तमान शिक्षा नीति इसे बदलने का काम कर रही है। उन्होंने कहा कि आज भी इंटरनेट पर अधिकांश जानकारी अंग्रेजी में ही उपलब्ध है। इस दिशा में अनुवाद बेहद महत्वपूर्ण हो सकता है। हिंदी को राजभाषा, संपर्क भाषा, राष्ट्रभाषा और विश्व भाषा बनाने में अनुवाद का महत्वपूर्ण योगदान है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए आईआईएमसी के महानिदेशक प्रो. (डॉ.) संजय द्विवेदी ने कहा कि माताएं और भाषाएं अपने बच्चों से सम्मानित होती हैं। भारत में जितनी भी भारतीय भाषाएं हैं, वे सभी राष्ट्र भाषाएं हैं, लेकिन हिंदी संपर्क भाषा और राजभाषा है। उन्होंने कहा कि पिछले वर्ष आईआईएमसी ने अपने पुस्तकालय का नाम पं. युगल किशोर शुक्ल के नाम पर रखा। यह हमारे लिए बड़े गर्व का विषय है कि हिंदी पत्रकारिता के प्रवर्तक पं. युगल किशोर शुक्ल के नाम पर यह देश का पहला स्मारक है। प्रो. द्विवेदी के अनुसार हिंदी और भारतीय भाषाओं का यह स्वर्णिम युग है। हिंदी सभी को साथ लेकर चलने वाली भाषा है। प्रत्येक व्यक्ति को अपने घर में मातृभाषा का ही इस्तेमाल करना चाहिए।
संगोष्ठी को मुख्य वक्ता के तौर पर संबोधित करते हुए नवोदय टाइम्स के संपादक श्री अकु श्रीवास्तव ने कहा कि अगर हमें भाषा को बचाना है, तो पहले संस्कृति को बचाना होगा। बच्चों को भाषा के संस्कार देने होंगे। उन्होंने कहा कि मीडिया में हिंदी की चिंताएं अधिकतर क्षेत्रीय हैं। ये चिंता दिल्ली की ज्यादा है, लेकिन मध्य प्रदेश या राजस्थान की ये चिंता नहीं है। हम हिंदी के नए शब्द गढ़ना भूल रहे हैं, ये हमारी सबसे बड़ी चुनौती है। इसके लिए सभी को मिलकर प्रयास करने होंगे।
श्री गुरु तेग बहादुर खालसा कॉलेज की प्रो. स्मिता मिश्र ने कहा कि 'मीडिया की हिंदी और हिंदी का मीडिया' में जो एक चीज समान है, वह है भाषा। गणेश शंकर विद्यार्थी ने कहा था कि अगर देश आजाद हो भी जाए, तो भी भाषा गुलाम हो सकती है, लेकिन अगर भाषा आजाद रहेगी, तो देश कभी गुलाम नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि यूनीकोड के आने से हुई भाषाई क्रांति ने भाषा की दीवारों को तोड़ दिया है और उपभोक्ता को अपनी भाषा में कंटेंट बनाने की सुविधा उपलब्ध कराई है। पहले समाचार पत्र लेखकों से अप्रकाशित आलेख मांगते थे, लेकिन अब वही अखबार ब्लॉग या सोशल मीडिया पर प्रकाशित लेखों को प्रकाशित कर रहे हैं।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए आईआईएमसी के महानिदेशक प्रो. (डॉ.) संजय द्विवेदी ने कहा कि माताएं और भाषाएं अपने बच्चों से सम्मानित होती हैं। भारत में जितनी भी भारतीय भाषाएं हैं, वे सभी राष्ट्र भाषाएं हैं, लेकिन हिंदी संपर्क भाषा और राजभाषा है। उन्होंने कहा कि पिछले वर्ष आईआईएमसी ने अपने पुस्तकालय का नाम पं. युगल किशोर शुक्ल के नाम पर रखा। यह हमारे लिए बड़े गर्व का विषय है कि हिंदी पत्रकारिता के प्रवर्तक पं. युगल किशोर शुक्ल के नाम पर यह देश का पहला स्मारक है। प्रो. द्विवेदी के अनुसार हिंदी और भारतीय भाषाओं का यह स्वर्णिम युग है। हिंदी सभी को साथ लेकर चलने वाली भाषा है। प्रत्येक व्यक्ति को अपने घर में मातृभाषा का ही इस्तेमाल करना चाहिए।
संगोष्ठी को मुख्य वक्ता के तौर पर संबोधित करते हुए नवोदय टाइम्स के संपादक श्री अकु श्रीवास्तव ने कहा कि अगर हमें भाषा को बचाना है, तो पहले संस्कृति को बचाना होगा। बच्चों को भाषा के संस्कार देने होंगे। उन्होंने कहा कि मीडिया में हिंदी की चिंताएं अधिकतर क्षेत्रीय हैं। ये चिंता दिल्ली की ज्यादा है, लेकिन मध्य प्रदेश या राजस्थान की ये चिंता नहीं है। हम हिंदी के नए शब्द गढ़ना भूल रहे हैं, ये हमारी सबसे बड़ी चुनौती है। इसके लिए सभी को मिलकर प्रयास करने होंगे।
श्री गुरु तेग बहादुर खालसा कॉलेज की प्रो. स्मिता मिश्र ने कहा कि 'मीडिया की हिंदी और हिंदी का मीडिया' में जो एक चीज समान है, वह है भाषा। गणेश शंकर विद्यार्थी ने कहा था कि अगर देश आजाद हो भी जाए, तो भी भाषा गुलाम हो सकती है, लेकिन अगर भाषा आजाद रहेगी, तो देश कभी गुलाम नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि यूनीकोड के आने से हुई भाषाई क्रांति ने भाषा की दीवारों को तोड़ दिया है और उपभोक्ता को अपनी भाषा में कंटेंट बनाने की सुविधा उपलब्ध कराई है। पहले समाचार पत्र लेखकों से अप्रकाशित आलेख मांगते थे, लेकिन अब वही अखबार ब्लॉग या सोशल मीडिया पर प्रकाशित लेखों को प्रकाशित कर रहे हैं।
पीजीडीएवी कॉलेज के प्रो. हरीश अरोड़ा ने कहा कि किसी भी राष्ट्र की पहचान का प्रतिमान भाषा भी होती है। हिंदी को जानने वाले आज संपूर्ण विश्व में हैं। भाषा सांस्कृतिक परिदृश्य से निकलकर सामने आती है। जब हम किसी भाषा को स्थिरता प्रदान कर देते हैं, तो वह जड़ हो जाती है। उन्होंने कहा कि हिंदी भाषा में जिस तरह बदलाव होते चले आ रहे हैं, उसी तरह मीडिया में भी बदलाव हो रहे हैं। वर्तमान में सोशल मीडिया की भाषा प्रिंट और टीवी की भाषा से बिल्कुल अलग है, लेकिन इसने हिंदी को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने में अहम भूमिका निभाई है।
कार्यक्रम में विषय प्रवर्तन संस्थान के डीन अकादमिक प्रो. (डॉ.) गोविंद सिंह ने किया। मंच संचालन डॉ. पवन कौंडल ने किया एवं धन्यवाद ज्ञापन डॉ. प्रतिभा शर्मा ने दिया। संगोष्ठी में भारतीय जन संचार संस्थान के प्राध्यापकों, अधिकारियों एवं कर्मचारियों ने हिस्सा लिया। इस अवसर पर हिंदी पखवाड़े के दौरान संस्थान द्वारा आयोजित विभिन्न प्रतियोगिताओं के विजेताओं को प्रमाण पत्र वितरित किए गए। संगोष्ठी के दौरान संस्थान द्वारा प्रकाशित त्रैमासिक पत्रिका 'राजभाषा विमर्श' के नए अंक का लोकार्पण भी किया गया।
टिप्पणियाँ