सुविख्यात समालोचक डॉ. मैनेजर पांडेय की स्मृति सभा का आयोजन
नई दिल्ली। उन्होंने विचारों में जो जीवन जिया, जीवन में भी वही जिया। जो व्यक्ति नैतिकता को चुनता है वो ऋषि बन जाता है। उनके निधन से हिंदी को जो क्षति हुई है उसकी भरपाई करना मुश्किल है, उनके जाने के बाद हिंदी आलोचना अनाथ हो गयी है।शिखर बनने की चाह और पुरस्कार की चाह उन्होंने कभी नही पाली, वे हिन्दी के एक विलक्षण व्यक्ति थे। यह कहना था साहित्य अकादेमी में उपस्थित तमाम साहित्यकारों का जो सुविख्यात समालोचक डॉ. मैनेजर पांडेय की स्मृति सभा में उन्हें याद करने मौजूद थे। स्मृति सभा में प्रमुख साहित्यकारों के अलावा उनके सहकर्मी, विद्यार्थी, प्रकाशक और परिवारजन भी मौजूद थे। संचालन संजीव कुमार ने किया।हिंदी आलोचना के शिखर पुरुष मैनेजर पांडेय की स्मृति सभा का आयोजन राजकमल प्रकाशन द्वारा साहित्य अकादेमी के रविन्द्र भवन मे किया गया। गौरतलब है कि हिंदी के मूर्धन्य साहित्यालोचक डॉ. मैनेजर पांडेय का निधन 6 नवम्बर 2022 को दिल्ली में हुआ था। साहित्यकार अनामिका ने मैनेजर पांडेय को याद करते हुए कहा, “उन्होंने जो विचारों में जिया वह जीवन में भी जिया। वे चारों तरफ देखते थे। बाकी भाषाओं में क्या लिखा जा रहा है, क्या सोचा जा रहा है वे सब पर नजर बनाए रखते थे”।वरिष्ठ साहित्यकार विश्वनाथ त्रिपाठी ने कहा, “उनका जीवन काफी उथल-पुथल वाला रहा। आखिर ऐसा क्यों है कि उनका जाना आकस्मिक लगता है़ ? क्योंकि हम सभी जानते हैं कि पाण्डेय जी जब तक रहते, लिखते रहते। वे एक निर्भीक व्यक्ति थे और उनके व्यक्तित्व का एक अंग ऐसा भी था जो बहुत कोमल था”।
वरिष्ठ आलोचक पुरूषोतम अग्रवाल ने कहा, “मैं 17 साल उनका सहकर्मी रहा था और उससे पहले उनका विद्यार्थी भी रहा। एक छात्र और विद्यार्थी के बीच जो उचित दूरी होनी चाहिए थी वे हमेशा हमारे बीच रही”।
वरिष्ठ लेखिका मैत्रेयी पुष्पा ने कहा, “महिला लेखकों को मैनेजर पाण्डेय का भरोसा हमेशा रहता था। अगर स्त्री टूट जाती तो वो कैसे लिखती, वे टूटने नहीं देते थे मुझे। लेखन में उन्होंने ही उम्मीदें जगाईं।युवा लेखक और उनकी छात्रा रहीं सुदीप्ति ने कहा कि “इस वायुमंडल से मेरी आवाज उन तक जायेगी। मैं उनके स्नेह और उस आत्मीय व्यवहार को हर पल याद करुँगी। जीवन में उनकी कमी हमेशा खेलेगी” रेखा पांडेय ने उन्हें याद करते हुए कहा, “जो व्यक्ति नैतिकता को चुनता है वो ऋषि बन जाता है। उन्हें किसी चीज का मोह नही था, उन्हें सिर्फ किताबों से मोह था चाहे वे कितनी महँगी हो खरीद लेते थे”।अरुण कुमार ने कहा, “पाण्डेय जी का सबसे बड़ा योगदान इंस्टिट्यूटशन बिल्डिंग का रहा। ऐसे व्यक्ति बहुत कम होते हैं”। देवेन्द्र चौबे ने कहा, “जेएनयू में नामवर सिंह के बाद मैनेजर पांडेय न होते तो जेएनयू का हिंदी ढाँचा इतना मजबूत न होता”। रविभूषण ने कहा, “उनके निधन से हिंदी को जो क्षति हुई है उसकी भरपाई करना मुश्किल है, उनके जाने के बाद हिंदी आलोचना अनाथ हो गयी है”। ज्योतिष जोशी ने कहा, “उनका जीवन संघर्षपूर्ण रहा, विपरीत परिस्थितयों में उन्होंने अपने आप को खड़ा किया, उनका सम्पूर्ण जीवन त्रासदी का वृत्तांत था”। देवीशंकर नवीन ने कहा, “उनकी वैचारिकता पढ़कर मैंने बहुत कुछ सीखा, मुझे गर्व है कि मैं उस हिंदी में पढ़ता, लिखता और बोलता हूँ जिसमें नामवर सिंह और मैनेजर पांडेय लेखन और चिन्तन किया” ।रामस्वरूप किसान ने कहा, “मैनेजर पांडेय का मैं मुरीद था, उनसे न मिल पाना मेरा दुर्भाग्य रहा”। उनके छात्र रहे श्रीधरम ने कहा, “वे पहचान लेते थे कि कौन किस विषय पर काम कर सकता है, हम जैसे देहातियों को उन्होंने बहुत प्रोत्साहित किया था”। लेखक विनीत कुमार ने कहा, “मैं जब भी उन्हें याद करूँगा एक ऐसे प्रोफ़ेसर के रूप मवन याद करूंगा जिसकी रीढ़ हमेशा मौजूद और मजबूत रही।”। राजेन्द्र प्रसाद मिश्र ने कहा, ‘पांडेय जी हमारे अभिभावक के समान थे। हमें हमेशा उनसे प्रेरणा और प्रोत्साहन ही मिला। उनके छात्र आशीष पांडेय ने उन्हें याद करते हुए कहा “उनसे मिलने के बाद उम्मीदें जिन्दा रहती थीं” ।
वरिष्ठ आलोचक पुरूषोतम अग्रवाल ने कहा, “मैं 17 साल उनका सहकर्मी रहा था और उससे पहले उनका विद्यार्थी भी रहा। एक छात्र और विद्यार्थी के बीच जो उचित दूरी होनी चाहिए थी वे हमेशा हमारे बीच रही”।
वरिष्ठ लेखिका मैत्रेयी पुष्पा ने कहा, “महिला लेखकों को मैनेजर पाण्डेय का भरोसा हमेशा रहता था। अगर स्त्री टूट जाती तो वो कैसे लिखती, वे टूटने नहीं देते थे मुझे। लेखन में उन्होंने ही उम्मीदें जगाईं।युवा लेखक और उनकी छात्रा रहीं सुदीप्ति ने कहा कि “इस वायुमंडल से मेरी आवाज उन तक जायेगी। मैं उनके स्नेह और उस आत्मीय व्यवहार को हर पल याद करुँगी। जीवन में उनकी कमी हमेशा खेलेगी” रेखा पांडेय ने उन्हें याद करते हुए कहा, “जो व्यक्ति नैतिकता को चुनता है वो ऋषि बन जाता है। उन्हें किसी चीज का मोह नही था, उन्हें सिर्फ किताबों से मोह था चाहे वे कितनी महँगी हो खरीद लेते थे”।अरुण कुमार ने कहा, “पाण्डेय जी का सबसे बड़ा योगदान इंस्टिट्यूटशन बिल्डिंग का रहा। ऐसे व्यक्ति बहुत कम होते हैं”। देवेन्द्र चौबे ने कहा, “जेएनयू में नामवर सिंह के बाद मैनेजर पांडेय न होते तो जेएनयू का हिंदी ढाँचा इतना मजबूत न होता”। रविभूषण ने कहा, “उनके निधन से हिंदी को जो क्षति हुई है उसकी भरपाई करना मुश्किल है, उनके जाने के बाद हिंदी आलोचना अनाथ हो गयी है”। ज्योतिष जोशी ने कहा, “उनका जीवन संघर्षपूर्ण रहा, विपरीत परिस्थितयों में उन्होंने अपने आप को खड़ा किया, उनका सम्पूर्ण जीवन त्रासदी का वृत्तांत था”। देवीशंकर नवीन ने कहा, “उनकी वैचारिकता पढ़कर मैंने बहुत कुछ सीखा, मुझे गर्व है कि मैं उस हिंदी में पढ़ता, लिखता और बोलता हूँ जिसमें नामवर सिंह और मैनेजर पांडेय लेखन और चिन्तन किया” ।रामस्वरूप किसान ने कहा, “मैनेजर पांडेय का मैं मुरीद था, उनसे न मिल पाना मेरा दुर्भाग्य रहा”। उनके छात्र रहे श्रीधरम ने कहा, “वे पहचान लेते थे कि कौन किस विषय पर काम कर सकता है, हम जैसे देहातियों को उन्होंने बहुत प्रोत्साहित किया था”। लेखक विनीत कुमार ने कहा, “मैं जब भी उन्हें याद करूँगा एक ऐसे प्रोफ़ेसर के रूप मवन याद करूंगा जिसकी रीढ़ हमेशा मौजूद और मजबूत रही।”। राजेन्द्र प्रसाद मिश्र ने कहा, ‘पांडेय जी हमारे अभिभावक के समान थे। हमें हमेशा उनसे प्रेरणा और प्रोत्साहन ही मिला। उनके छात्र आशीष पांडेय ने उन्हें याद करते हुए कहा “उनसे मिलने के बाद उम्मीदें जिन्दा रहती थीं” ।
डॉ. चन्द्रा सदायत ने कहा, “शिखर बनने की चाह और पुरस्कार की चाह उन्होंने कभी नही पाली। वे मेरे लिए इनसाइक्लोपीडिया थे”।गोपाल प्रधान ने कहा, “जेएनयू सबको आकर्षित करता था, उसमें पाण्डेय जी का बहुत बड़ा योगदान था। जब तक मेरा जीवन रहेगा मुझे गर्व रहेगा कि मैं उनका शिष्य था”। उनकी छात्रा रहीं प्रज्ञा पाठक ने कहा, “उन्हें बनारस से बड़ा लगाव था, जो छात्र बनारस या बिहार से जेएनयू आते थे उनसे उनका बड़ा लगाव हुआ करता था। मुझे भी उनसे बहुत स्नेह मिला”। अनवर जमाल ने अपने सन्देश में कहा, “पाण्डेय जी जैसे अध्ययनशील व्यक्ति काफी कम देखे। मेरी नजर में वे बेहद सरल और संवेदनशील व्यक्ति थे”।
उर्मिलेश ने कहा, “वे मेरे शिशक ही नहीं पथ-प्रदर्शक भी रहे। वे ऐसे शिशक थे जिन्हें मैं कभी भुला नही सकता। उनका स्थान मेरे जीवन में बेहद महत्वपूर्ण है़”। सविता सिंह ने कहा, “वे हिन्दी के विलक्षण व्यक्ति थे। उनको याद करने की सबसे बड़ी पद्दति यही होगी कि उन्होंने जो लिखा, सोचा, कहा हम उसपर विचार करें। उनके विचारों को आगे बढ़ाएं। यही उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि होगी”। रामशरण जोशी ने कहा, “उनके साथ 45 वर्ष का संबंध रहा। वैसे वे साहित्य जगत के और मैं पत्रिकारिता क्षेत्र का था लेकिन हम दोनों ने हमेशा एक दूसरे के कार्य को सराहा”। गोबिंद प्रसाद ने कहा “सहकर्मी के तौर पर हमारा काफी लंबा साथ रहा। वे एक निर्भीक आलोचक के रूप में जाने जाएंगे।” नीलकंठ कुमार ने कहा, “जिस शिखर पर वे थे उस शिखर से उन्होंने अपने लिए कुछ नही किया”।
राजकमल प्रकाशन के प्रबंध निदेशक अशोक महेश्वरी ने कहा “मैनेजर पांडेय की तीखी और चुटीली आवाज दूर से ही उनकी उपस्थित बता देती थी। ठहाका और बात की शुरुआत ही ‘अरे ससुर' से होती और उनका यह अंदाज़ रिश्ते को औपचारिक बना देता था। मैं राजकमल प्रकाशन समूह की ओर से उन्हें श्रद्धापूर्वक याद करता हूँ और उन्हें सादर प्रणाम करता हूँ” ।
उर्मिलेश ने कहा, “वे मेरे शिशक ही नहीं पथ-प्रदर्शक भी रहे। वे ऐसे शिशक थे जिन्हें मैं कभी भुला नही सकता। उनका स्थान मेरे जीवन में बेहद महत्वपूर्ण है़”। सविता सिंह ने कहा, “वे हिन्दी के विलक्षण व्यक्ति थे। उनको याद करने की सबसे बड़ी पद्दति यही होगी कि उन्होंने जो लिखा, सोचा, कहा हम उसपर विचार करें। उनके विचारों को आगे बढ़ाएं। यही उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि होगी”। रामशरण जोशी ने कहा, “उनके साथ 45 वर्ष का संबंध रहा। वैसे वे साहित्य जगत के और मैं पत्रिकारिता क्षेत्र का था लेकिन हम दोनों ने हमेशा एक दूसरे के कार्य को सराहा”। गोबिंद प्रसाद ने कहा “सहकर्मी के तौर पर हमारा काफी लंबा साथ रहा। वे एक निर्भीक आलोचक के रूप में जाने जाएंगे।” नीलकंठ कुमार ने कहा, “जिस शिखर पर वे थे उस शिखर से उन्होंने अपने लिए कुछ नही किया”।
राजकमल प्रकाशन के प्रबंध निदेशक अशोक महेश्वरी ने कहा “मैनेजर पांडेय की तीखी और चुटीली आवाज दूर से ही उनकी उपस्थित बता देती थी। ठहाका और बात की शुरुआत ही ‘अरे ससुर' से होती और उनका यह अंदाज़ रिश्ते को औपचारिक बना देता था। मैं राजकमल प्रकाशन समूह की ओर से उन्हें श्रद्धापूर्वक याद करता हूँ और उन्हें सादर प्रणाम करता हूँ” ।
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