सांस्कृतिक रूप से एक होकर ही हम पाश्चात्य संस्कृति के अतिक्रमण को रोक सकते हैं.
० योगेश भट्ट ०
नई दिल्ली, सार्क देशों के पत्रकार संगठन ‘सार्क जर्नलिस्ट फोरम’ के एक प्रतिनिधिमंडल ने भारतीय जन संचार संस्थान का दौरा किया. भारतीय जन संचार संस्थान के महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी ने नेपाल, भूटान, श्रीलंका, बांग्लादेश आदि देशों से आये ऐसे तीस से अधिक प्रतिनिधियों का स्मृति चिन्ह देकर अभिनंदन किया. इस अवसर पर आईआईएमसी के प्रो. गोविंद सिंह, डीन-अकादमिक, डॉ. मीता उज्जैन, पाठ्यक्रम निदेशक-विज्ञापन एवं जनसंपर्क विभाग, सह आचार्य डॉ. पवन कौंडल, पुस्तकालय अध्यक्ष डॉ. प्रतिभा शर्मा व विभिन्न विभागों के प्रतिनिधि भी इस अवसर पर उपस्थित थे.प्रो. द्विवेदी ने कहा कि जब ‘एक एशिया’ बनेगा, तभी इस क्षेत्र की शांति, अखंडता, विकास, समृद्धि को बढ़ावा मिलेगा. उन्होंने कहा कि हम सबका एक ही इतिहास है और आज भी हम सब एक जैसी संस्कृति, खानपान, रहन-सहन साझा करते हैं. यही हमारी ताकत है. सांस्कृतिक रूप से एक होकर ही हम पाश्चात्य संस्कृति के अतिक्रमण को रोक सकते हैं. स्वामी विवेकानंद ने एक सदी पहले ही पश्चिमी देशों को कह दिया था कि 20वीं सदी आपकी होगी, लेकिन 21वीं सदी भारत की होगी. अब 21वीं सदी है और उनकी बातें सच होती नजर आ रही हैं. प्रो. द्विवेदी ने सार्क जर्नलिस्ट फोरम का आह्वान करते हुए कहा कि पत्रकार होने के नाते एक एशिया के इस विचार को साकार करना हम सबकी जिम्मेदारी है, जो क्षेत्र के विकास, शांति और अखंडता की जरूरत है.
एसजेएफ के अध्यक्ष राजू लामा ने बताया कि आज वह संस्थान में आकर बहुत गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं. उन्होंने स्वीकार किया कि उन्हें भारत के बहुत सारे राजनेताओं और स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में जानकारी थी, लेकिन यह पहली बार है, जब उन्हें भारत के पहले हिंदी समाचार-पत्र ‘उदंत मार्तंड’ के संस्थापक संपादक पंडित युगल किशोर शुक्ल के योगदान के बारे में पता चला. लामा ने कहा कि वह और एसजेएफ, शुक्ल जी के पत्रकारिता में अविस्मरणीय योगदान के लिए उन्हें अपनी आदरांजलि अर्पित करते हैं.
कार्यक्रम का संचालन अधिष्ठाता-छात्र कल्याण प्रो. प्रमोद कुमार ने किया और धन्यवाद ज्ञापन सहायक कुल सचिव ऋतेश पाठक ने किया. इससे पूर्व प्रतिनिधिमंडल ने आईआईएमसी के विभिन्न विभागों का दौरा किया. वह ‘अपना रेडियो’ के उद्देश्यों और कार्यशैली से बेहद प्रभावित हुए. उन्हें सर्वाधिक प्रसन्नता संस्थान के पुस्तकालय में आकर हुई, जहॉं उन्हें पहली बार एक साथ इतनी बड़ी संख्या में जनसंचार विषय पर आधारित पुस्तकें देखने को मिलीं.
नई दिल्ली, सार्क देशों के पत्रकार संगठन ‘सार्क जर्नलिस्ट फोरम’ के एक प्रतिनिधिमंडल ने भारतीय जन संचार संस्थान का दौरा किया. भारतीय जन संचार संस्थान के महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी ने नेपाल, भूटान, श्रीलंका, बांग्लादेश आदि देशों से आये ऐसे तीस से अधिक प्रतिनिधियों का स्मृति चिन्ह देकर अभिनंदन किया. इस अवसर पर आईआईएमसी के प्रो. गोविंद सिंह, डीन-अकादमिक, डॉ. मीता उज्जैन, पाठ्यक्रम निदेशक-विज्ञापन एवं जनसंपर्क विभाग, सह आचार्य डॉ. पवन कौंडल, पुस्तकालय अध्यक्ष डॉ. प्रतिभा शर्मा व विभिन्न विभागों के प्रतिनिधि भी इस अवसर पर उपस्थित थे.प्रो. द्विवेदी ने कहा कि जब ‘एक एशिया’ बनेगा, तभी इस क्षेत्र की शांति, अखंडता, विकास, समृद्धि को बढ़ावा मिलेगा. उन्होंने कहा कि हम सबका एक ही इतिहास है और आज भी हम सब एक जैसी संस्कृति, खानपान, रहन-सहन साझा करते हैं. यही हमारी ताकत है. सांस्कृतिक रूप से एक होकर ही हम पाश्चात्य संस्कृति के अतिक्रमण को रोक सकते हैं. स्वामी विवेकानंद ने एक सदी पहले ही पश्चिमी देशों को कह दिया था कि 20वीं सदी आपकी होगी, लेकिन 21वीं सदी भारत की होगी. अब 21वीं सदी है और उनकी बातें सच होती नजर आ रही हैं. प्रो. द्विवेदी ने सार्क जर्नलिस्ट फोरम का आह्वान करते हुए कहा कि पत्रकार होने के नाते एक एशिया के इस विचार को साकार करना हम सबकी जिम्मेदारी है, जो क्षेत्र के विकास, शांति और अखंडता की जरूरत है.
एसजेएफ के अध्यक्ष राजू लामा ने बताया कि आज वह संस्थान में आकर बहुत गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं. उन्होंने स्वीकार किया कि उन्हें भारत के बहुत सारे राजनेताओं और स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में जानकारी थी, लेकिन यह पहली बार है, जब उन्हें भारत के पहले हिंदी समाचार-पत्र ‘उदंत मार्तंड’ के संस्थापक संपादक पंडित युगल किशोर शुक्ल के योगदान के बारे में पता चला. लामा ने कहा कि वह और एसजेएफ, शुक्ल जी के पत्रकारिता में अविस्मरणीय योगदान के लिए उन्हें अपनी आदरांजलि अर्पित करते हैं.
कार्यक्रम का संचालन अधिष्ठाता-छात्र कल्याण प्रो. प्रमोद कुमार ने किया और धन्यवाद ज्ञापन सहायक कुल सचिव ऋतेश पाठक ने किया. इससे पूर्व प्रतिनिधिमंडल ने आईआईएमसी के विभिन्न विभागों का दौरा किया. वह ‘अपना रेडियो’ के उद्देश्यों और कार्यशैली से बेहद प्रभावित हुए. उन्हें सर्वाधिक प्रसन्नता संस्थान के पुस्तकालय में आकर हुई, जहॉं उन्हें पहली बार एक साथ इतनी बड़ी संख्या में जनसंचार विषय पर आधारित पुस्तकें देखने को मिलीं.
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