भारतीय क्लासिक्स, कला और संस्कृति का एक शक्तिशाली शास्त्रीय प्रयोग

० योगेश भट्ट ० 
नई दिल्ली। 
डॉ. गणेश ने आज के सांस्कृतिक विरासत के घटते परिदृश्य के दौर में भारतीय विद्या के हजारों अनुरागियों को प्रशिक्षित भी किया है। भारतीय संस्कृति के प्रखर एवं जीवंत विश्वकोष डॉ. गणेश और उनकी उभरती हुई प्रतिभाशाली टीम अपने अष्टावधान तथा शतावधान के माध्यमों से अपनी प्रस्तुति देंगे। इस तरह का भारतीय सभ्यता और संस्कृति की विरासत से जुडी महत्वपूर्ण प्रस्तुतियाँ विश्व के सामने लाना समय की मांग है। 

एआईसीटीई ऑडिटोरियम, वसंत कुंज में आयोजित होने वाले कार्यक्रम के विषय में केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, दिल्ली के कुलपति प्रोफेसर श्रीनिवास वरखेड़ी ने बहुलब्धप्रतिष्ठत अष्टावधानी डॉ आर. गणेश के विषय में कहा कि उनकी प्रतिभा और व्यक्तित्व अद्भुत और अलौकिक है। प्रो. वरखेडी ने यह भी कहा कि डॉ गणेश और उनकी प्रतिभा सम्पन्न गण भारतीय कला, संस्कृति, क्लासिक्स, सौंदर्यशास्त्र, योगविद्या तथा आध्यात्मिकता के विषयों को विश्वस्तर पर प्रचार प्रसार में जुटे हैं। साथ ही साथ उन्होने यह भी कहा कि डॉ आर. गणेश भारतीय नृत्य, संगीत, संस्कृति और कलाओं की आध्यात्मिकता के वैश्वक ध्वज फहरा रहे हैं।

 प्रो. दीप्ति त्रिपाठी, अध्यक्ष, आईएएसएस, तथा डॉ. सच्चिदानंद जोशी, सदस्य सचिव, आईजीएनसीए, दिल्ली दोनों मुख्य अतिथि के रूप में कार्यक्रम को सुशोभित करेंगे। यह कार्यक्रम में प्रो. श्रीनिवास वरखेड़ी, कुलपति केंद्रीय विश्वविद्यालय, दिल्ली तथा तथा प्रो. गंटी एस मूर्ति, राष्ट्रीय समन्वयक, आईकेएस डिवीजन, एआईसीटीई, शिक्षा मंत्रालय के सानिध्य में सम्पन्न होंगे।

 डॉ. गणेश ने लगभग 1300 अष्टावधानों (08 विद्वानों की भागीदारी के साथ) के साथ-साथ पांच शतावधानों (100 विद्वानों और कवियों के साथ) का प्रदर्शन किया है। यह स्पष्ट है कि अष्टावधान साहित्य-अवधान का एक उपसमुच्चय है, जो एक शास्त्रीय कविता और तात्कालिक छंद में निहित एक भारतीय मंत्रमुग्ध प्रदर्शन कला है, इसमें आठ प्रश्नकर्ता (प्राचक) शामिल होते हैं जो एक कलाकार (अवधानी) को रचनाशीलता की चुनौती देते हैं। अवधान का प्राथमिक अर्थ गहन और शक्तिशाली एकाग्रता है,

 और एक अवधानी भारतीय विद्या का वह शास्त्रपुरुष है जिसके पास एक आलौकिक शक्ति है। शास्त्रपुरुष (कलाकार) किसी कलम और कागज की सहायता के बिना ही इन समूह में पूछे गये प्रश्नों का उत्तर तत्क्षण छंद में रचना कर देता है। अष्टावधान चार क्रमों में आगे बढ़ता है। कलाकार प्रत्येक क्रम में पद्य के एक पाद की रचना करता है; वह घटना के अंत में पूरी कविता को स्मरण करता है और उसका अर्थ भी बताता है

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