लोक सभा में "डिप्टी स्पीकर" का पद चार बर्षो से खाली
० विनोद तकियावाला ०
नयी दिल्ली - विश्व के सबसे बडे लोकतंत्र में संसदीय शासन प्रणाली अपनाई गई है।जिसमें संसद व संविधान सर्वोंच्च है।इस प्रणाली के अर्न्तगत संसद जिसमे लोक सभा-राज्य सभा का प्रावधान है।लोक सभा में जनता के चुने हुए प्रतिनिधि होते है।लोक सभा के कार्यवाही सुचारू रूप से चले इसके हमारे संविधान में वर्णित किया गया है। इसके अनुसार लोक सभा स्पीकर/डिप्टी स्पीकर का उल्लेख किया गया है।हालाकि डिफ्ट्री स्पीकर के पद के लिए अनिवार्य नही है। केद्र की भाजपा सरकार पुरानी परमपरा को दर किनार कर अपने हिसाब से रंग रोगन कर नया इतिहास
रचकर स्वर्णाक्षर अपनी छवि अंकित करना चाहती है।ऐसे में दबी जुबान से काना पुसी होना स्वभाविक है।कुछ ऐसी ही तस्वीर जनता के समक्ष आई है।तभी तो जनता के मन कुछ सवाल उठने लगे हैं कि क्या भारतीय जनता पार्टी लोकसभा की कार्यवाही अपने हिसाब से चलाना चाहती है? विगत दिनो हिंडनबर्ग रिसर्च रिपोर्ट के बाद जिस तरह की गहमा गहमी संसद के दोनों सदन में दिखी,उसे देखते हुए अगर कांग्रेस का डिप्टी स्पीकर चेयर पर होता तो इस तरह का पक्ष - विपक्ष मेक्या दृश्य देखने को मिलता.. क्या केंद्र की सता के सिंघासन पर आसीन भाजपा को इस तरह की आशंका भी सता रही है? तभी कॉंग्रेश के नेता मलिकाजून खडगें व राहुल गांधी के भाषण के कई हिस्से को संसद के कार्यवाही से हटा दिए गए,अगर उस समय चेयर पर कोई और होता तो क्या ऐसा फैसला नहीं होता?
सर्वविदित है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चार साल का कार्यकाल पूरा करने वाले हैं एवं अगले वर्ष 2024 में नई लोकसभा के चुनाव होने वाली है।केंद्र मे भाजपा सरकार के दुसरे कार्यकाल में मात्र एक साल से कुछ ही ज्यादा का समय बचा है,लेकिन अभी तक मोदी सरकार लोकसभा का डिप्टी स्पीकर नहीं बना पाई। राजनीतिज्ञ मामले के जानकार का कहना है कि एक ऐसी राजनीति पार्टी जो 30 साल बाद पूर्ण बहुमत से 2014 में सत्ता में आई और जनता ने पुनः जिसे दूसरी बार 2019 में प्रचंड बहुमत दिया!लोकसभा में बहुमत का जादुई आंकड़ा 273 हैऔर भारतीय जनता पार्टी को अकेले 303 सीटें मिलीं।इसके बावजूद डिप्टी स्पीकर न बना पाना हैरान करने वाला है। आखिरकार भाजपा की सरकार व भाजपाईयो को किस बात का डर सता रही है।इसी मसले पर सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका डाली गई है जिसकी सुनवाई के दौरान कोर्ट ने दो हफ्तों में मोदी सरकार से जवाब मांगा है।लोकसभा के डिप्टी स्पीकर का जिक्र संविधान के अनुच्छेद 93 में है।वहीं राज्यों में विधानसभा के डिप्टी स्पीकर का जिक्र अनुच्छेद 178 में है।सिर्फ केन्द्र मे मोदी सरकार ही नहीं बल्कि राजस्थान,उत्तर प्रदेश,मध्य प्रदेश,उत्तराखंड,मणिपुर और झारखंड की राज्य सरकारों ने भी विधानसभा के डिप्टी स्पीकर नहीं बनाए हैं।याद रहे कि राजस्थान और झारखंड को छोड़ बाकी जगहों में बीजेपी ही सत्ता पर काबिज है।
पी वी नरसिंह राव को जो 1991 में प्रधानमंत्री बने। ये दसवीं लोकसभा थी।तभी से एक नई परंपरा ने जन्म लिया।सत्तारूढ़ पार्टी ने डिप्टी स्पीकर का पद विपक्षी पार्टी को देने की सकारात्मक परंपरा शुरू की।इससे पहले जिस पार्टी की सरकार उसी के पास दोनों पद होते थे।पहली बार 1991 में भाजपा के एस मल्लिकार्जुनैया डिप्टी स्पीकर बनाए गए थे।कांग्रेस अगर चाहती तो मना कर सकती थी।लोकसभा में कांग्रेस के 252 सदस्य थे और भाजपा के सिर्फ 121 सदस्य11वीं लोकसभा चुनाव में अटल बिहारी वाजपेयी सिर्फ 13 दिनों तक पीएम रह सके इसलिए नियुक्ति की नौबत ही नहीं आई।बिना चुनाव हुए संयुक्त मोर्चा की सरकार एक जून 1996 को बनती है।एचडी देवगौड़ा पी एम बनते हैं।लालू प्रसाद यादव के विद्रोह और जनता दल में टूट के बाद इंद्र कुमार गुजराल नया पीएम बनते हैं।
नयी दिल्ली - विश्व के सबसे बडे लोकतंत्र में संसदीय शासन प्रणाली अपनाई गई है।जिसमें संसद व संविधान सर्वोंच्च है।इस प्रणाली के अर्न्तगत संसद जिसमे लोक सभा-राज्य सभा का प्रावधान है।लोक सभा में जनता के चुने हुए प्रतिनिधि होते है।लोक सभा के कार्यवाही सुचारू रूप से चले इसके हमारे संविधान में वर्णित किया गया है। इसके अनुसार लोक सभा स्पीकर/डिप्टी स्पीकर का उल्लेख किया गया है।हालाकि डिफ्ट्री स्पीकर के पद के लिए अनिवार्य नही है। केद्र की भाजपा सरकार पुरानी परमपरा को दर किनार कर अपने हिसाब से रंग रोगन कर नया इतिहास
रचकर स्वर्णाक्षर अपनी छवि अंकित करना चाहती है।ऐसे में दबी जुबान से काना पुसी होना स्वभाविक है।कुछ ऐसी ही तस्वीर जनता के समक्ष आई है।तभी तो जनता के मन कुछ सवाल उठने लगे हैं कि क्या भारतीय जनता पार्टी लोकसभा की कार्यवाही अपने हिसाब से चलाना चाहती है? विगत दिनो हिंडनबर्ग रिसर्च रिपोर्ट के बाद जिस तरह की गहमा गहमी संसद के दोनों सदन में दिखी,उसे देखते हुए अगर कांग्रेस का डिप्टी स्पीकर चेयर पर होता तो इस तरह का पक्ष - विपक्ष मेक्या दृश्य देखने को मिलता.. क्या केंद्र की सता के सिंघासन पर आसीन भाजपा को इस तरह की आशंका भी सता रही है? तभी कॉंग्रेश के नेता मलिकाजून खडगें व राहुल गांधी के भाषण के कई हिस्से को संसद के कार्यवाही से हटा दिए गए,अगर उस समय चेयर पर कोई और होता तो क्या ऐसा फैसला नहीं होता?
ये सवाल सिर्फ मेरे नहीं हैं। बल्कि देश के जागरूक जनता के मन में भी शक -शंका उठना स्वाभाविक है। तभी तो सुप्रीम कोर्ट में डिप्टी स्पीकर का मुद्दा जा चुका है।आये दिनो देश का सर्वोच्च न्यायलय मोदी सरकार से खफा है।दिल्ली नगर निगम के चुनाव सम्पन्न हुए महीने बीत जाने के बाद काफी ड्रामा हो के वाद दिल्ली को मेयर और डिप्ट्री मेयर मिल गया है। लैकिन दिल्ली नगर निगम के सदन में स्टेडिंग कमिटि के सदस्यो के चुनाव जो घटना घटी है और मामला उच्च न्यायलय में पहुँच गई। इसके पूर्व सर्वोच्च न्यायालय को यह कहना पड़ा कि क्यूं बार न्यायलय को हस्तक्षेप करना पड़ता है।इससे पहले कोलीजियम सिस्टम पर सरकार व सर्वोच्य न्यायलय तनातनी समाने आई थी।
सर्वविदित है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चार साल का कार्यकाल पूरा करने वाले हैं एवं अगले वर्ष 2024 में नई लोकसभा के चुनाव होने वाली है।केंद्र मे भाजपा सरकार के दुसरे कार्यकाल में मात्र एक साल से कुछ ही ज्यादा का समय बचा है,लेकिन अभी तक मोदी सरकार लोकसभा का डिप्टी स्पीकर नहीं बना पाई। राजनीतिज्ञ मामले के जानकार का कहना है कि एक ऐसी राजनीति पार्टी जो 30 साल बाद पूर्ण बहुमत से 2014 में सत्ता में आई और जनता ने पुनः जिसे दूसरी बार 2019 में प्रचंड बहुमत दिया!लोकसभा में बहुमत का जादुई आंकड़ा 273 हैऔर भारतीय जनता पार्टी को अकेले 303 सीटें मिलीं।इसके बावजूद डिप्टी स्पीकर न बना पाना हैरान करने वाला है। आखिरकार भाजपा की सरकार व भाजपाईयो को किस बात का डर सता रही है।इसी मसले पर सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका डाली गई है जिसकी सुनवाई के दौरान कोर्ट ने दो हफ्तों में मोदी सरकार से जवाब मांगा है।लोकसभा के डिप्टी स्पीकर का जिक्र संविधान के अनुच्छेद 93 में है।वहीं राज्यों में विधानसभा के डिप्टी स्पीकर का जिक्र अनुच्छेद 178 में है।सिर्फ केन्द्र मे मोदी सरकार ही नहीं बल्कि राजस्थान,उत्तर प्रदेश,मध्य प्रदेश,उत्तराखंड,मणिपुर और झारखंड की राज्य सरकारों ने भी विधानसभा के डिप्टी स्पीकर नहीं बनाए हैं।याद रहे कि राजस्थान और झारखंड को छोड़ बाकी जगहों में बीजेपी ही सत्ता पर काबिज है।
पी वी नरसिंह राव को जो 1991 में प्रधानमंत्री बने। ये दसवीं लोकसभा थी।तभी से एक नई परंपरा ने जन्म लिया।सत्तारूढ़ पार्टी ने डिप्टी स्पीकर का पद विपक्षी पार्टी को देने की सकारात्मक परंपरा शुरू की।इससे पहले जिस पार्टी की सरकार उसी के पास दोनों पद होते थे।पहली बार 1991 में भाजपा के एस मल्लिकार्जुनैया डिप्टी स्पीकर बनाए गए थे।कांग्रेस अगर चाहती तो मना कर सकती थी।लोकसभा में कांग्रेस के 252 सदस्य थे और भाजपा के सिर्फ 121 सदस्य11वीं लोकसभा चुनाव में अटल बिहारी वाजपेयी सिर्फ 13 दिनों तक पीएम रह सके इसलिए नियुक्ति की नौबत ही नहीं आई।बिना चुनाव हुए संयुक्त मोर्चा की सरकार एक जून 1996 को बनती है।एचडी देवगौड़ा पी एम बनते हैं।लालू प्रसाद यादव के विद्रोह और जनता दल में टूट के बाद इंद्र कुमार गुजराल नया पीएम बनते हैं।
लेकिन इस दौरान कांग्रेस के पी ए संगमा लोकसभा अध्यक्ष बने रहे व भाजपा के सूरज भान उपाध्यक्ष।सूरज भान की गिनती हरियाणा में बीजेपी के बड़े नेताओं में होती थी।संयुक्त मोर्चा को 332 लोकसभा सदस्यों का समर्थन प्राप्त था।मतलब भाजपा को ये पद देने की कोई बाध्यता नहीं थी। फिर भी परंपरा निबाही गई।जब अटल बिहारी बाजपेयी ने 1998 में 13 महीनों वाली सरकार बनाई तो एनडीए के घटक तेलुगु देशम पार्टी को लोकसभा अध्यक्ष का पद मिला। जीएमसी बालयोगी इस पद पर काबिज हुए।लेकिन डिप्टी स्पीकर का पद कांग्रेस के धाकड़ नेता पी एम सईद को दिया गया जो 1964 से 2004 तक लक्षद्वीप से सांसद रहे। हालांकि तब भी 270 दिनों की देरी हुई थी।इसके बाद त्रिशंकु सदन से जनता तौबा करती है।1999 में अटलजी की अगुआई में एनडीए को पूर्ण बहुमत मिलता है और आजादी के बाद पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार अपना टर्म पूरा करती है। ये बात गौर करने वाली है कि इस दौरान अटलजी पीएम सईद को ही डिप्टी स्पीकर बनाए रखते हैं।
अब जरा याद कीजिए उस 1991 के उस दिन को जब केन्द्र में कॉंग्रेस पार्टी की सरकार बनी व पीवी नरसिंह राव प्रधानमंत्री बने।ये दसवीं लोकसभा थी।तभी से भारतीय लोक तंत्र में एक नई परंपरा ने जन्म लिया। सत्तारूढ़ पार्टी ने डिप्टी स्पीकर का पद विपक्षी पार्टी को देने की सकारात्मक राजनीति की स्वस्थ्य परंपरा शुरू की।इससे पहले जिस पार्टी की सरकार होती थी उन्ही के पास दोनों पद होते थे। लेकिन पहली बार 1991 में भाजपा के एस मल्लिकार्जुनैया को डिप्टी स्पीकर बनाए गए।देश की सबसे बड़ी पंचायत में बहुमत से हासिल सत्ता के दंभ के दूर विपक्ष की भूमिका बनाए रखने में इस परंपरा के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता।सन 2004 में शाइनिंग इंडिया कैम्पन की आग में बीजेपी झुलस गई।मनमोहन सिंह की अगुआई में यूपीए सरकार बनती है।लोक सभा मे तत्कालीन अध्यक्ष के पद पर सोमनाथ चटर्जी बनाए जाते हैं।स्वतंत्र लोकतंत्र की परम्परा को ध्यान में रखते हुए उप सभापति अर्थात डिप्ट्री स्कीपर का पद एनडीए के घटक अकाली दल के नेता चरणजीत सिंह अटवल को दिया जाता है।
अब जरा याद कीजिए उस 1991 के उस दिन को जब केन्द्र में कॉंग्रेस पार्टी की सरकार बनी व पीवी नरसिंह राव प्रधानमंत्री बने।ये दसवीं लोकसभा थी।तभी से भारतीय लोक तंत्र में एक नई परंपरा ने जन्म लिया। सत्तारूढ़ पार्टी ने डिप्टी स्पीकर का पद विपक्षी पार्टी को देने की सकारात्मक राजनीति की स्वस्थ्य परंपरा शुरू की।इससे पहले जिस पार्टी की सरकार होती थी उन्ही के पास दोनों पद होते थे। लेकिन पहली बार 1991 में भाजपा के एस मल्लिकार्जुनैया को डिप्टी स्पीकर बनाए गए।देश की सबसे बड़ी पंचायत में बहुमत से हासिल सत्ता के दंभ के दूर विपक्ष की भूमिका बनाए रखने में इस परंपरा के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता।सन 2004 में शाइनिंग इंडिया कैम्पन की आग में बीजेपी झुलस गई।मनमोहन सिंह की अगुआई में यूपीए सरकार बनती है।लोक सभा मे तत्कालीन अध्यक्ष के पद पर सोमनाथ चटर्जी बनाए जाते हैं।स्वतंत्र लोकतंत्र की परम्परा को ध्यान में रखते हुए उप सभापति अर्थात डिप्ट्री स्कीपर का पद एनडीए के घटक अकाली दल के नेता चरणजीत सिंह अटवल को दिया जाता है।
मनमोहन सिंह ने अपनी दुसरे कार्य काल में भी ये स्वस्थ परंपरा को बखुबी निभाते हुए अपनी विपक्षी भाजपा के आदिवासी कदावर नेता करिया मुंडा डिप्टी स्पीकर बनाए बनाया हैं।सन 2014 मे भारतीय लोकतंत्र में बदलाव की ब्यार बहती है और पूर्ण बहुमत से भाजपा की कमल खिलता है।व मोदी के नेतृत्व में भाजपा सरकार बनाती है।लोक सभा मे मीरा कुमार की अध्यक्ष कार्यकाल की समाप्ति के बाद भाजपा की सुमित्रा महाजन लोकसभा की अध्यक्ष बनती हैं व विपक्ष कांग्रेस पार्टी के एम थंबीदुरई डिप्टी स्पीकर के रूप मनोनित किया गया।पुनः 2019 मे भारतीय लोकतंत्र के जनता जर्नादन के आर्शीवाद से पीएम मोदी 17वीं लोकसभा में अपनी सरकार बनाती है ।भारतीय लोकतंत्र के इस परम्परा पर विराम चिन्ह लगाते हुए।लोक सभा के अध्यक्ष के रूप मेंओम बिरला
अध्यक्ष बनाये गये लेकिन मोदी सरकार के द्वारा अपनी दुसरे शासन के अन्तिम वर्ष में भी नो डिप्टी स्पीकर के पद पर आसीन किया है। आप को बता दे कि इतना महत्वपूर्ण संवैधानिक डिप्टी स्पीकर का पद 24 मई,2019 से रिक्त है। जैसा कि अभी सरकारी विभागों में लाखों पद खाली हैं।नई भर्ती की प्रक्रिया को ठण्डे बस्ते में डाल रखा है।उसी परम्परा पर अपनी मौन स्वीकृति दे कर भाजपा की केंद्र की सरकार नेपी वी नरसिंह राव ने शानदार परंपरा की शुरुआत की विराम लगा दिया है! सर्व विदित रहे कि भारतीय
संविधान के अनुच्छेद 93 में डिप्टी स्पीकर (उप सभापति) के चयन,उनकी जिम्मेदारियों और अधिकारों का जिक्र है।आए हम इसे 10 बिन्दुबार आसानी से समझा जा सकता है।(1)लोक्रअध्यक्ष के चुनाव के ठीक बाद डिप्टी स्पीकर का चयन लोकसभा सदस्य करते हैं।(2)लोक सभा के अध्यक्ष द्वारा डिप्टी स्पीकर के चुनाव की तारीख तय करते हैं।यहां ये जानना अंहम है कि लोक सभा अध्यक्ष के चुनाव की तारीख राष्ट्रपति तय करते हैं।लेकिन डिप्टी स्पीकर के चुनाव का ऐलान तत्कालीन अध्यक्ष ओम बिरला कर सकते हैं।(3)स्पीकर और डिप्टी स्पीकर पद की शुरुआत सन 1919 के गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट के तहत हुई(4)स्पीकर का चुनाव नई लोकसभा की बैठक के तीसरे दिन होता है। पहले दो दिनों तक नव निर्वाचित सदस्यो की शपथ की प्रक्रिया चलती है।उसके बाद डिप्टी स्पीकर का चुनाव अगले सत्र में होने की परंपरा रही है।हालांकि वैधानिक अनिवार्यता नहीं है।(5)अगले सत्र से ज्यादा की देरी नहीं की जाती है जो मौजूदा हालात में दिखाई दे रही है।
(6)लोकसभा डिप्टी स्पीकर का चुनाव प्रॉसीजर एंड कंडक्ट ऑफ बिजनस के रूल नंबर आठ के तहत होता है।(7)एक बार चुने जाने के बाद लोकसभा की अवधि खत्म होने तक वो पद पर बने रहते है।(8)संविधान के अनुच्छेद 95 के मुताबिक स्पीकर का पद खाली रहने पर सारे अधिकार डिप्टी स्पीकर के पास आ जाते हैं।(9)अध्यक्ष की गैर मौजूदगी में भी ये ताकत डिप्टी स्पीकर के पास आ जाती है।
(10)स्पीकर की अनुपस्थिति में संयुक्त सत्र की अध्यक्षता डिप्ट्री स्पीकर करते हैं।पी वी नरसिंह राव के द्वारा नई शुरुआत की गई 'विपक्ष के नेता डिप्टी स्पीकर होते थे।भाजपा की सरकार इस परंपरा को क्यों भूल गई।क्या भारतीय राजनीति क्षितिज आज भाजपा का महासूर्य चमक रहा है।उसका अस्त कभी नही होनी वाली है।भारतीय राजनीति की सता पर हमेशा ही अपना एक छत्र सम्राज्य स्थापित रहेगा।
संविधान के अनुच्छेद 93 में डिप्टी स्पीकर (उप सभापति) के चयन,उनकी जिम्मेदारियों और अधिकारों का जिक्र है।आए हम इसे 10 बिन्दुबार आसानी से समझा जा सकता है।(1)लोक्रअध्यक्ष के चुनाव के ठीक बाद डिप्टी स्पीकर का चयन लोकसभा सदस्य करते हैं।(2)लोक सभा के अध्यक्ष द्वारा डिप्टी स्पीकर के चुनाव की तारीख तय करते हैं।यहां ये जानना अंहम है कि लोक सभा अध्यक्ष के चुनाव की तारीख राष्ट्रपति तय करते हैं।लेकिन डिप्टी स्पीकर के चुनाव का ऐलान तत्कालीन अध्यक्ष ओम बिरला कर सकते हैं।(3)स्पीकर और डिप्टी स्पीकर पद की शुरुआत सन 1919 के गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट के तहत हुई(4)स्पीकर का चुनाव नई लोकसभा की बैठक के तीसरे दिन होता है। पहले दो दिनों तक नव निर्वाचित सदस्यो की शपथ की प्रक्रिया चलती है।उसके बाद डिप्टी स्पीकर का चुनाव अगले सत्र में होने की परंपरा रही है।हालांकि वैधानिक अनिवार्यता नहीं है।(5)अगले सत्र से ज्यादा की देरी नहीं की जाती है जो मौजूदा हालात में दिखाई दे रही है।
(6)लोकसभा डिप्टी स्पीकर का चुनाव प्रॉसीजर एंड कंडक्ट ऑफ बिजनस के रूल नंबर आठ के तहत होता है।(7)एक बार चुने जाने के बाद लोकसभा की अवधि खत्म होने तक वो पद पर बने रहते है।(8)संविधान के अनुच्छेद 95 के मुताबिक स्पीकर का पद खाली रहने पर सारे अधिकार डिप्टी स्पीकर के पास आ जाते हैं।(9)अध्यक्ष की गैर मौजूदगी में भी ये ताकत डिप्टी स्पीकर के पास आ जाती है।
(10)स्पीकर की अनुपस्थिति में संयुक्त सत्र की अध्यक्षता डिप्ट्री स्पीकर करते हैं।पी वी नरसिंह राव के द्वारा नई शुरुआत की गई 'विपक्ष के नेता डिप्टी स्पीकर होते थे।भाजपा की सरकार इस परंपरा को क्यों भूल गई।क्या भारतीय राजनीति क्षितिज आज भाजपा का महासूर्य चमक रहा है।उसका अस्त कभी नही होनी वाली है।भारतीय राजनीति की सता पर हमेशा ही अपना एक छत्र सम्राज्य स्थापित रहेगा।
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