सबसे 'पर्सनल' स्टोरी ही है सबसे 'ग्लोबल' : दुर्गेश सिंह
० योगेश भट्ट ०
नई दिल्ली । "आज दुनिया में ग्लोबल स्टोरी जैसा कोई कॉन्सेप्ट नहीं है। आपकी ‘पर्सनल’ स्टोरी ही ‘ग्लोबल’ स्टोरी बनती है। स्टोरीटेलिंग में दर्शकों को एंगेज करना सबसे महत्वपूर्ण है।" यह विचार वेब सीरीज 'गुल्लक' के लेखक दुर्गेश सिंह ने भारतीय जन संचार संस्थान द्वारा आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि कहानियां ही हमें बनाती हैं। हम सबकी कोई न कोई कहानी जरूर होती है। अगर अपनी कहानी हम नहीं कहेंगे, तो और कौन कहेगा। इस अवसर पर भारतीय जन संचार संस्थान के महानिदेशक संजय द्विवेदी, डीन (छात्र कल्याण) प्रो. प्रमोद कुमार, डीन (अकादमिक) प्रो. गोविंद सिंह, विज्ञापन एवं जनसंपर्क विभाग की पाठ्यक्रम निदेशक डॉ. मीता उज्जैन सहित सभी केंद्रों के संकाय सदस्य एवं विद्यार्थी उपस्थित रहे।
सिंह ने कहा कि सिनेमा या वेब सीरीज का अपना एक ग्रामर होता है, जिसे डिकोड करने की जरुरत होती है। स्क्रिप्ट राइटिंग एक तकनीकी मामला है। कहानी या उपन्यास की तरह इसे आप अपने लिए नहीं लिखते, बल्कि जनता के लिए लिखते हैं। उन्होंने बताया कि किसी भी कहानी में उसके किरदारों की बहुत बड़ी भूमिका होती है। हर सफल वेब सीरीज को सबसे ज्यादा उसके किरदारों की वजह से याद किया जाता है। सिंह के अनुसार यात्राएं हमें जीवन में नए-नए किरदारों से मिलाती हैं। इसलिए हमें यात्राएं जरूर करनी चाहिए।
नई दिल्ली । "आज दुनिया में ग्लोबल स्टोरी जैसा कोई कॉन्सेप्ट नहीं है। आपकी ‘पर्सनल’ स्टोरी ही ‘ग्लोबल’ स्टोरी बनती है। स्टोरीटेलिंग में दर्शकों को एंगेज करना सबसे महत्वपूर्ण है।" यह विचार वेब सीरीज 'गुल्लक' के लेखक दुर्गेश सिंह ने भारतीय जन संचार संस्थान द्वारा आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि कहानियां ही हमें बनाती हैं। हम सबकी कोई न कोई कहानी जरूर होती है। अगर अपनी कहानी हम नहीं कहेंगे, तो और कौन कहेगा। इस अवसर पर भारतीय जन संचार संस्थान के महानिदेशक संजय द्विवेदी, डीन (छात्र कल्याण) प्रो. प्रमोद कुमार, डीन (अकादमिक) प्रो. गोविंद सिंह, विज्ञापन एवं जनसंपर्क विभाग की पाठ्यक्रम निदेशक डॉ. मीता उज्जैन सहित सभी केंद्रों के संकाय सदस्य एवं विद्यार्थी उपस्थित रहे।
'छोटे शहरों की बड़ी कहानियां' विषय पर आयोजित व्याख्यान को संबोधित करते हुए दुर्गेश सिंह ने कहा कि पिछले बीस-तीस सालों में हम 'मास' की नहीं, बल्कि 'क्लास' की कहानियां सुनते आए हैं। 'गुल्लक' और 'पंचायत' जैसी सफलताएं इस बात का सबूत है कि अपनी कहानी कहने का यह बेहतरीन समय है। आज ओटीटी, इंस्टाग्राम, फेसबुक, यूट्यूब, ट्विटर हर जगह कहानियां कही जा रही हैं और इन कहानियों को हमारे-आपके जैसे लोग ही कह रहे हैं।
सिंह ने कहा कि सिनेमा या वेब सीरीज का अपना एक ग्रामर होता है, जिसे डिकोड करने की जरुरत होती है। स्क्रिप्ट राइटिंग एक तकनीकी मामला है। कहानी या उपन्यास की तरह इसे आप अपने लिए नहीं लिखते, बल्कि जनता के लिए लिखते हैं। उन्होंने बताया कि किसी भी कहानी में उसके किरदारों की बहुत बड़ी भूमिका होती है। हर सफल वेब सीरीज को सबसे ज्यादा उसके किरदारों की वजह से याद किया जाता है। सिंह के अनुसार यात्राएं हमें जीवन में नए-नए किरदारों से मिलाती हैं। इसलिए हमें यात्राएं जरूर करनी चाहिए।
इस अवसर पर आईआईएमसी के महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी ने कहा कि जिंदगी में हम सबके पास कहानियां हैं। हम सब अपनी कहानियों के हीरो हैं, पर हम खुद की कहानी नहीं कहते, क्योंकि हमें कहानी कहना नहीं आता। ये स्थिति तब है, जबकि हम कहानियों का देश रहे हैं। हम दुनिया को कहानियां देने वाले देश हैं। उन्होंने कहा कि अब हमने जमीन की ओर देखना छोड़ दिया है, अब हम आसमान की ओर देखते हैं। आसमान से, कहानियां नहीं निकलतीं। कहानियां जमीन पर मिलती हैं, छोटी-छोटी जगहों से निकलती हैं। हमें इस पर ध्यान देने की जरुरत है।
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