कला और संस्कृति के संरक्षण का उदाहरण है “थेवा”
० योगेश भट्ट ०
नई दिल्ली। सोने की महीन चादरों को रंगीन कांच पर जोड़कर छोटे उपकरणों की मदद से सोने पर डिजाइन तैयार करने का नाम है “थेवा”। जो कि भारत में सदियों से प्रचलित है। इस कला में अब राजस्थान राज्य के मात्र 12 परिवार लगे हुए हैं। इस हुनर पर आधारित चलचित्र “थेवा” का प्रदर्शन किया गया। निर्देशिका शिवानी पांडेय द्वारा निर्देंशित चलचित्र ”थेवा“ में उन गुमनाम नायकों को दिखाया है जो रहस्यमय तरीके से निर्मित कला को जीवित रखे हुए हैं। इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र ऐसे ही कला और संस्कृति के संरक्षण और संवर्धन के लिए चलचित्र तैयार करता रहा है।निर्देंशक शिवानी पांडेय ने फिल्म के निर्मित होने की कहानी को दर्शकों के साथ साझा किया। दर्शकों ने भी निर्देंशक से फिल्म से जुड़े प्रश्नों को किया। लेखिका मालविका जोशी ने फिल्म की तारीफ करते हुए कहा कि अनोखी कला के बारे में दिखाया गया है। उन्होंने कहा कि ऐसी फिल्मों के कारण ही कला और संस्कृति का संरक्षण किया जा सकता है। सेंसर बोर्ड के पूर्व सदस्य अतुल गंगवार ने कहा कि ऐसे चलचित्र ही हमारी संस्कृति और कला को जीवंत बनाए हुए हैं।
इससे अन्य राज्यों की संस्कृति को भी चलचित्र के माध्यमों से जनता के सामने लाने का प्रयास किया जाना चाहिए। जिससे हमारे देश की विभिन्न राज्यों की कलाओं और संस्कृति की जानकारी अंतरर्राष्ट्रीय स्तर पर भी हो सके। फिल्म स्क्रीनिंग के दौरान किसान नेता नरेश सिरोही, नियंत्रक अनुराग पुनेठा, उप नियंत्रक श्रुति नागपाल, उमेश पाठक आदि मौजूद रहे।
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