अहमद हुसैन और उस्ताद मो हुसैन व मूलचन्द लोढ़ा पद्मश्री से सम्मानित
० आशा पटेल ०
नई दिल्ली,राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने राजस्थान से कला के क्षेत्र में संयुक्त रूप से उस्ताद अहमद हुसैन और उस्ताद मो हुसैन और सामाजिक कार्य के क्षेत्र में मूलचन्द लोढ़ा को पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया। पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित उस्ताद अहमद हुसैन गजल गायिकी के प्रमुख कलाकार हैं। वह अपने भाई उस्ताद मोहम्मद हुसैन के साथ मिलकर अपनी गायिकी से संगीत प्रेमियों को मंत्रमुग्ध करते आ रहे हैं।
नई दिल्ली,राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने राजस्थान से कला के क्षेत्र में संयुक्त रूप से उस्ताद अहमद हुसैन और उस्ताद मो हुसैन और सामाजिक कार्य के क्षेत्र में मूलचन्द लोढ़ा को पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया। पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित उस्ताद अहमद हुसैन गजल गायिकी के प्रमुख कलाकार हैं। वह अपने भाई उस्ताद मोहम्मद हुसैन के साथ मिलकर अपनी गायिकी से संगीत प्रेमियों को मंत्रमुग्ध करते आ रहे हैं।
03 फरवरी, 1951 को जयपुर में जन्मे, उस्ताद अहमद हुसैन के पिता स्वर्गीय उस्ताद अफजल हुसैन अपने समय के प्रतिष्ठित संगीतकार थे। उन्होंने 1959 में आकाशवाणी जयपुर में बाल कलाकार के रूप में अपने संगीत करियर की शुरुआत की और कड़े अनुशासन से अपने संगीत कौशल को निखारा। उस्ताद अहमद हुसैन और उनके भाई उस्ताद मोहम्मद हुसैन साथ-साथ गाते हैं। उन्होंने सफलतापूर्वक अपनी एक अनूठी और खास शैली विकसित की है। पूरी तरह अलग आवाज होने के बावजूद, उन्होंने गायिकी में शानदार संगत की है। उन्होंने सुगम शास्त्रीय संगीत में अपनी संगीत रचनाएं तैयार करके संगीत की शुद्धता बरकरार रखी है।
उन्होंने सुंदर बोल और सुरीली आवाज के साथ युगल गायिकी से हर गजल प्रेमी के दिलो-दिमाग पर अमिट छाप छोड़ी है। अब तक उनकी गजलों के 80 एलबम जैसे गुलदस्ता, श्रद्धा भावना, नूर-ए-इस्लाम, एक ही सरूप (शबद कीर्तन), खयाले यार, हम खयाल और अन्य एलबम जारी हो चुके हैं। उन्होंने कैंसर रोगियों और दिव्यांगों तथा थैलेसीमिया रोगियों की सहायतार्थ आयोजित कार्यक्रमों में भी नि:शुल्क प्रस्तुतियां दी हैं। उस्ताद अहमद हुसैन ने दिल्ली में अमीर खुसरो फाउंडेशन द्वारा आयोजित रजत और स्वर्ण जयंती कार्यक्रम तथा दर्शक संस्था जयपुर और सृजन सांस्कृतिक संस्था द्वारा आयोजित कार्यक्रमों में भाग लिया है।
उन्होंने आकाशवाणी नई दिल्ली के संगीत ऑडिशन बोर्ड और राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर, सा रे गा मा, जी टीवी, आदाब अर्ज, सोनी टीवी, गजल सारा, ईटीवी उर्दू राजस्थान में निर्णायक की भूमिका भी निभाई है। उस्ताद अहमद हुसैन को कई पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है जिनमें राजस्थान के मुख्यमंत्री द्वारा राजस्थान संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार (1999-2000) और दिल्ली में भारत के महामहिम राष्ट्रपति द्वारा प्रदान किया गया संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार (2016-2017) शामिल हैं। उन्हें शहंशाह-ए-गजल, भजन सम्राट, रूहे गजल जैसी उपाधियों से भी अलंकृत किया गया है। उस्ताद मोहम्मद हुसैन गजल गायिकी के प्रमुख कलाकार हैं। वह अपने भाई उस्ताद अहमद हुसैन के साथ मिलकर अपनी गायिकी से संगीत प्रेमियों को मंत्रमुग्ध करते आ रहे
02 दिसंबर,1953 को जयपुर में जन्मे,उस्ताद मोहम्मद हुसैन के पिता स्वर्गीय उस्ताद अफजल हुसैन अपने समय के प्रतिष्ठित संगीतकार थे। उन्होंने 1959 में आकाशवाणी जयपुर में बाल कलाकार के रूप में अपने संगीत करियर की शुरुआत की औरकड़े अनुशासन से अपने संगीत कौशल को निखारा। उस्ताद मोहम्मद हुसैन और उनके भाई उस्ताद अहमद हुसैन साथ-साथ गाते हैं। उन्होंने सफलतापूर्वक अपनी एक अनूठी और खास शैली विकसित की है। पूरी तरह अलग आवाज होने के बावजूद, उन्होंने गायिकी में शानदार संगत की है। उन्होंने सुगम शास्त्रीय संगीत में अपनी संगीत रचनाएं तैयार करके संगीत की शुद्धता बरकरार रखी है।
उन्होंने सुंदर बोल और सुरीली आवाज के साथ युगल गायिकी से हर गजल प्रेमी के दिलो-दिमाग पर अमिट छाप छोड़ी है। अब तक उनकी गजलो के 80 एलबम जैसे गुलदस्ता, श्रद्धा भावना, नूर-ए-इस्लाम, एक ही सरूप (शबद कीर्तन), खयाले यार, हम खयाल और अन्य एलबम जारी हो चुके हैं। उन्होंने कैंसर रोगियों और दिव्यांगों तथा थैलेसीमिया रोगियों की सहायतार्थ आयोजित कार्यक्रमों में भी नि:शुल्क प्रस्तुतियां दी हैं। . उस्ताद मोहम्मद हुसैन ने दिल्ली में अमीर खुसरो फाउंडेशन द्वारा आयोजित रजत और स्वर्ण जयंती कार्यक्रम तथा दर्शक संस्था जयपुर और सृजन सांस्कृतिक संस्था द्वारा आयोजित कार्यक्रमों में भाग लिया है। उन्होंने आकाशवाणी नई दिल्ली के संगीत ऑडिशन बोर्ड और राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर, सा रे गा मा, जी टीवी,आदाब अर्ज, सोनी टीवी, गजल सारा, ईटीवी उर्दू राजस्थान में निर्णायक की भूमिका भी
निभाई है।
निभाई है।
उस्ताद मोहम्मद हुसैन को कई पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है जिनमें राजस्थान के मुख्यमंत्री द्वारा राजस्थान संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार (1999-2000) और दिल्ली में भारत के महामहिम राष्ट्रपति द्वारा प्रदान किया गया संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार (2016-2017) शामिल हैं। उन्हें शहंशाह-ए-गजल, भजन सम्राट, रूहेगजल जैसी उपाधियों से भी अलंकृत किया गया है।
मूलचन्द लोढ़ा राजस्थान के प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता हैं, जिन्होने अपना पूरा जीवन निर्धन और जनजातीय लोगों के कल्याण के प्रति समर्पित कर दिया है। 15 मार्च, 1948 को राजसमंद जिले के आमेत में जन्मे,श्री लोढ़ाने मुंबई से बी.ए., बी.एड. डिग्री प्राप्त की। छात्र जीवन से ही उनकी समाज, विशेषकर गरीब, निराश्रित और जरूरतमंद लोगों की सेवा के प्रतिरुचि थी । वह आरएसएस में शामिल हो गए और जिला प्रचारक के रूप में विभिन्न क्षेत्रों में इसकी गतिविधियों के विस्तार के लिए कार्य किया। उन्होंने आरएसएस के स्वयंसेवकों को जरूरतमंद लोगों की सेवा के लिए प्रेरित किया।
लोढ़ा डूंगरपुर और पाली जिलों की जनजातियों की स्थिति देखकर द्रवित हो गए। जब वह
पाली के जिला प्रचारक बनकर आए तब उन्होंने पाली जिले के गोरिया-भीमाना क्षेत्र के गरसिया जनजाति की बेहतरी के लिए कार्य किया। जब उस क्षेत्र में भयानक अकाल पड़ा, तब उन्होंने बड़ी मात्रा में खाद्य पदार्थ, दवाओं का वितरण, पशुओं के लिए कैंप, चारा केंद्र आदि गतिविधियों का आयोजन किया।. उनके सामाजिक कार्यों के सम्मानस्वरूप, आरएसएस ने लोढ़ा को 1990 में “सेवा भारती”, राजस्थान के सबसे बड़े स्वयंसेवी संगठन, का “प्रदेश संगठन मंत्री” बनाया। इस पद पर रहते हुए,
पाली के जिला प्रचारक बनकर आए तब उन्होंने पाली जिले के गोरिया-भीमाना क्षेत्र के गरसिया जनजाति की बेहतरी के लिए कार्य किया। जब उस क्षेत्र में भयानक अकाल पड़ा, तब उन्होंने बड़ी मात्रा में खाद्य पदार्थ, दवाओं का वितरण, पशुओं के लिए कैंप, चारा केंद्र आदि गतिविधियों का आयोजन किया।. उनके सामाजिक कार्यों के सम्मानस्वरूप, आरएसएस ने लोढ़ा को 1990 में “सेवा भारती”, राजस्थान के सबसे बड़े स्वयंसेवी संगठन, का “प्रदेश संगठन मंत्री” बनाया। इस पद पर रहते हुए,
लोढा ने आरएसएस के स्वयंसेवकों के लिए कई प्रशिक्षण कार्यशालाओं का आयोजन किया, जिसमें निर्धनों और पिछड़े लोगों की सेवा का प्रशिक्षण दिया गया। उन्होंने जनजातीय लोगोंकी सेवा के लिए वर्ष 2000 में डूंगरपुर जिले के एक छोटे से गांव मझोला में जागरण जन सेवा मण्डल की स्थापना की। बाद में, उन्होंने वागदारी को अपना कार्यस्थल बनाया, जहां राज्य सरकार ने उन्हें इस संस्था के लिए भूमि प्रदान की। उन्होंने भोजन, मुफ्त शिक्षा, आदि प्रदान करके गरीब और अनाथ बच्चों के लिए भी काम करना शुरू किया।
लोढ़ा ने वर्ष 2004 में वागदारी “आचार्य महाप्रज्ञ नेत्र चिकित्सालय” शुरू किया। 315 नेत्र चिकित्सा कैंपों के माध्यम से जनजातीयइलाकों के लगभग 1,25,000 मरीजों को लाभ हुआ है। 18000 से अधिक नेत्र ऑपरेशन सफलतापूर्वक किए गए हैं। उन्होंने वर्ष 2005 में निर्धन जनजातीय परिवारों के लिए विद्यालय शुरू किया। वर्ष 2008 में, उन्होंने छात्रों, मरीजों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के लिए भोजशाला की शुरुआत की। लोढ़ा 75 वर्ष की आयु में भी उत्साह, ऊर्जा और जज्बे के साथ निर्धन और जरूरतमंद लोगों की सेवा कर रहे हैं।
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