फिर चला गहलोत का जादू CM गहलोत के साथ ही चुनावी रणनीति बनाएंगे पायलट

० आशा पटेल ० 
जयपुर ।  कांग्रेस प्रेसिडेंट खड़गे के निवास बैठक में खड़गे,राहुल,वेणु गोपाल, अशोक गहलोत के साथ रंधावा व सचिन पायलट की चर्चा पूर्ण हो चुकी है।  इस बैठक में एक बार फिर से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का जादू चला। सचिन पायलट,मुख्यमंत्री गहलोत के सानिध्य में ही कांग्रेस में रहकर आगामी विधानसभा चुनाव की रणनीति बनाएंगे।
 राष्ट्रीय अध्यक्ष खड़गे,वेणुगोपाल,रंधावा ओर राहुल गांधी के साथ पहले से ही गहलोत ने अपनी रणनीति खुलकर बता दी थी। जिसमें साफ कहा गया था कि यदि सचिन पायलट पार्टी छोड़कर जाते हैं तो,कांग्रेस को अधिक नुकसान नहीं पहुंचा पाएंगे। वहीं, आलाकमान को पायलट की शर्तें मानने की भी इसलिए जरूरत नहीं कि यदि शर्तें मानते है,तो भविष्य में सचिन की तरह अन्य दूसरे विधायक भी खुलकर विरोध करेंगे ओर किसी भी राज्य की कांग्रेस सरकार स्थिर नहीं रह पाएगी।

मुख्यमंत्री गहलोत,पायलट से काफी पहले ही खड़गे के निवास पहुंच चुके थे। उन्होंने आगामी चुनाव की रणनीति बताते हुए राष्ट्रीय अध्यक्ष खड़गे,राहुल गांधी,के सी वेणु गोपाल व पार्टी प्रभारी रंधावा को बताया कि सचिन कि मांग चुनाव हित मे नहीं है। पेपर लीक मामले में किसी भी राज्य में आजतक मुआवजा नहीं दिया गया। यदि ये परम्परा कांग्रेस पार्टी शुरू करती है,तो,आम जनता में गलत संदेश जाएगा। वहीं, दूसरी ओर परीक्षाएं पूरी नहीं हो सकेगी,अपितु परीक्षार्थी पेपर लीक माफिया को पनपने देंगे। जिससे अरबों रुपयों का बोझ राज्य सरकार पर पड़ेगा।

 गहलोत ने साफ तौर पर हाई कमान को बताता कि राजस्थान की राजनीति में पहले से लेकर वर्तमान तक ब्राह्मण,वैश्य व राजपूत के साथ जाट समुदाय से प्रभावित रही है। यहां,मारवाड़ हो या शेखावाटी,ढूंढाड़ हो या अन्य एरिया, स्वर्ण समुदाय के साथ जाट समुदाय कांग्रेस के साथ हमेशा रहा है। ऐसे में विधायक सचिन पायलट की प्रदेशाध्यक्ष पद से जाट समुदाय के वरिष्ठ नेता गोविन्द सिंह डोटासरा को हटाकर उप मुख्यमंत्री बनाने की मांग नहीं मान सकते। चूंकि,जाट समुदाय पहले से ही थोड़ा बहुत कांग्रेस से नाराज़ चल रहा था।

जिसे बहुत मुश्किल से संतुष्ट किया गया है। इसलिए,प्रदेशाध्यक्ष पद पर जाट समुदाय के डोटासरा को ही बने रहने देना है। पायलट व अन्य समर्थकों की खुलेआम बगावत ने राजस्थान ही नहीं, वरन्, पूरे देश मे पार्टी को काफी नुकसान पहुंचाया है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण हाल ही में कर्नाटक में हुए विधानसभा चुनाव में सामने आ चुका है। जब,कांग्रेस के चुनाव जीतते ही, डी के शिव कुमार ने योग्यता नहीं होते हुए भी कुछ समर्थकों के साथ मुख्यमंत्री बनने के लिए बगावत कर दी थी। जिससे काफी परेशानी हुई। बाद में हाई कमान के निर्देश पर ही वे संतुष्ट हुए।

 पायलट के पास कांग्रेस पार्टी या व्यक्तिगत स्तर पर मुख्यमंत्री गहलोत के विरोध की  लंबी रणनीति नहीं बनाई हुई है।  पायलट के लंबे समय से विरोध करने के कारण उनके समर्थक विधायक भी अब चुनाव को देखते हुए टिकट कटने की आशंका से घबराने लगे है। इसलिए, सचिन पायलट,अधिक समय तक गहलोत का विरोध नहीं कर पाएंगे ओर विरोध से पीछे हटना पड़ेगा ।

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