समाज में लिंग आधारित रूढ़िवादिता और लैंगिक आधार पर भूमिकाओं के संदर्भ में आयोजित कार्यशाला
० संवाददाता द्वारा ०
जयपुर। यूएनएफपीए तथा हरिदेव जोशी पत्रकारिता और जनसंचार विश्वविद्यालय (एचजेयू) के संयुक्त तत्वावधान एवं लोक संवाद संस्थान के सहयोग से आयोजित दो दिवसीय कार्यशाला का आज समापन हुआ. इस अवसर पर पॉपुलेशन फर्स्ट की निदेशक डॉ. एएल शारदा ने कहा कि महिलाओं के प्रति लैंगिक संवेदना और समानता के बारे में धारणाएँ बना कर पुरुष वर्ग के समाज में नेतृत्व करने की प्रकृति चिंताजनक है. इससे महिलाओं के मन पर भी गलत असर पड़ता है
डॉ. एएल शारदा ने चार महीने तक चलने वाले प्रोजेक्ट के लिए चयनित पत्रकारिता के 35 छात्रों के साथ लैंगिक संवेदना से संबंधित सामाजिक मानदंडों, भाषा, मूल्यों और व्यवहार के बारे में भी बात की और सकारात्मक और नकारात्मक टीवी विज्ञापनों के माध्यम से सोशल नॉर्म्स के बारे में समझाया. कार्यशाला में यूएनएफपीए की सलाहकार त्रिशा पारीक ने मानवाधिकारों और मीडिया द्वारा मानवाधिकारों से जुड़े विषयों की रिपोर्टिंग के बारे में बात की और छात्रों की जिज्ञासा और प्रश्नों के उत्तर दिए.
मीडिया विशेषज्ञ प्रो. हिमांशू व्यास ने छात्रों को बताया कि कैसे तस्वीरें जेंडर अवधारणाओं को प्रभावित करती हैं और फोटो स्टोरी के माध्यम से कैसे बिना लिखे अपनी बात कही जा सकती है. यूएनएफपीए की जेंडर सलाहकार अंतरा ने भी लैंगिक संवेदना पर अपने विचार व्यक्त किए. इस दौरान एचजेयू की कुलपति प्रो. सुधि राजीव भी उपस्थित रहीं और उन्होंने युवा प्रतिभागियों का मनोबल बढ़ाया.
जयपुर। यूएनएफपीए तथा हरिदेव जोशी पत्रकारिता और जनसंचार विश्वविद्यालय (एचजेयू) के संयुक्त तत्वावधान एवं लोक संवाद संस्थान के सहयोग से आयोजित दो दिवसीय कार्यशाला का आज समापन हुआ. इस अवसर पर पॉपुलेशन फर्स्ट की निदेशक डॉ. एएल शारदा ने कहा कि महिलाओं के प्रति लैंगिक संवेदना और समानता के बारे में धारणाएँ बना कर पुरुष वर्ग के समाज में नेतृत्व करने की प्रकृति चिंताजनक है. इससे महिलाओं के मन पर भी गलत असर पड़ता है
और वो खुद को कमतर समझने लगती हैं. उदाहरण के तौर पर लड़की हूँ, कार ठीक से नहीं चला सकती, या लड़की गाड़ी चला रही है, दूर रहो नहीं तो टक्कर मार देगी, ड्रायवर की नौकरी लड़कियों के लिए नहीं होती. उन्होंने कहा कि अबला, बेचारी जैसे शब्दों और महिलाओं के शरीर से जुड़े अपशब्दों (गालियों) पर रोक लगाना जरूरी है. साथ ही जेंडर अवधारणाएं कैसे बनती हैं और उन्हें कैसे तोड़ा जाए, इस बारे में भी छात्रों को समझाया.
डॉ. एएल शारदा ने चार महीने तक चलने वाले प्रोजेक्ट के लिए चयनित पत्रकारिता के 35 छात्रों के साथ लैंगिक संवेदना से संबंधित सामाजिक मानदंडों, भाषा, मूल्यों और व्यवहार के बारे में भी बात की और सकारात्मक और नकारात्मक टीवी विज्ञापनों के माध्यम से सोशल नॉर्म्स के बारे में समझाया. कार्यशाला में यूएनएफपीए की सलाहकार त्रिशा पारीक ने मानवाधिकारों और मीडिया द्वारा मानवाधिकारों से जुड़े विषयों की रिपोर्टिंग के बारे में बात की और छात्रों की जिज्ञासा और प्रश्नों के उत्तर दिए.
मीडिया विशेषज्ञ प्रो. हिमांशू व्यास ने छात्रों को बताया कि कैसे तस्वीरें जेंडर अवधारणाओं को प्रभावित करती हैं और फोटो स्टोरी के माध्यम से कैसे बिना लिखे अपनी बात कही जा सकती है. यूएनएफपीए की जेंडर सलाहकार अंतरा ने भी लैंगिक संवेदना पर अपने विचार व्यक्त किए. इस दौरान एचजेयू की कुलपति प्रो. सुधि राजीव भी उपस्थित रहीं और उन्होंने युवा प्रतिभागियों का मनोबल बढ़ाया.
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