देश की जनता है बेहाल,इंडिया बनाम भारत एक चाल

० विनोद तकियावाला ० 
देश की राजधानी दिल्ली में आज कल एक ही चर्चा हो रही है। जी 20 सम्मेलन का। इस सम्मेलन में सम्मलित होने के लिए विदेशी मेहमान आ रहे है।दिल्ली को नव नेवली दुल्हन की सजाई गई है।सरकारी इमारते,सड़के,हवाई अड्डे,होटल,आदि की सजावट में पौधे,फूल के गमलें' 'फब्वारें ' रंग-बिरंगी रोशनी से सजावट की है। यहाँ के 17 पंच सितारा होटलों है,जो विदेशी मेहमानों की मेजबानी करने हेतु तत्पर है।आप को बता दे कि हमारी संस्कृति "अतिथि देवों भवः "अथार्त हमारे अतिथि हमारे लिए देवता तुल्य होता है।

अतिथि के स्वागत के लिए हम भारतीय हमेशा ही तैयार व तत्पर रहते है।फिलहाल यह मौका भारत को जी 20 सम्मेलन आयोजित करने का स्वर्णिम अवसर मिला है।इस सम्मेलन के सफल आयोजन के लिए प्रत्येक्र देशवासी अपने तन मन धन से लगे हुए थें।तभी एक घटना घटित होती है।जी -20 सम्मेलन के सम्मान में राष्ट्रपति भवन से अति विशिष्ट/विशिष्ट मेहमान को निमंत्रण पत्र भेजी गई है।इस निमंत्रण पत्र पर प्रेसीडेन्टआफ भारत लिखा था।
आप को बता दे कि इसके पहले राष्ट्रपति भवन से किसी तरह के पत्र या निमंत्रण पत्र पर प्रेसीडेन्ट ऑफ इंडिया लिखा जाता रहा है।राष्ट्रपति भवन के द्वारा जारी जी-20 सम्मेलन के निमंत्रण पत्र पर पर विरोधी राजनीतिक दलों नाग बार गुजरा है।आपको बता दे कि 2 सितम्बर को संघ प्रमुख नें अपने एक उद्वबोधन में अंग्रेजी के इण्डिया पर सवाल उठाते हुए देश का नाम इण्डिया के बजाय भारत कहने की अपील की थी।

सर्वविदित रहे केन्द्र की वर्तमान सरकार कई महत्वपूर्ण स्थानों/ योजनाओं/ऐतिहासिक सड़कों/ रेलवे स्टेशनों के नाम को बदल चुकी है।विपक्ष के नेताओं का कहना है कि यह सरकार काम करने के बजाय केवल नाम परिवर्तन कर अपना श्रेह लेना चाहती है।जमीनी हकीकत के मुद्दों से देश की जनता का ध्यान हटाने की केन्द्र सरकार की एक चाल मात्र हैअजी नाम में क्या रखा, जनता तो आप के द्वारा किये गए काम पर आप को पुनःदिल्ली दरबार में भेजेगी

इस पर विपक्षी दलों का कहना है कि जब सरकार के पास गंभीर मुद्दों पर कहने के लिए कुछ भी नहीं होता है।आप को डर होता है कि देश कहीं आपकी वर्तमान भूमिका पर देश की जनता सवाल खड़ा करना न शुरू कर दे।सो क्यूँ नही देश की जनता को अन्य बातों में उलझाया जाए।देश की जनता कहीं चीन पर सवाल न पूछने लगें,कहीं मणिपुर पर सवाल न पूछने लगें,कहीं महिला सुरक्षा व महिला पहलवानों को लेकर न पूछने लगें,कहीं ‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ के मसौदे पर सवाल न पूछने लगें और कहीं विशेष सत्र के औचित्य पर न खड़े किए जाने लगें,इसलिए सबको नाम की राजनीति में उलझा कर ध्रुवीकृत कर दें।

भाजपा व उनके गठबन्धन की यह पुरानी नीति है।सवाल कहीं स्वतंत्रता आंदोलन में इनके राजनीतिक पुरखों की भूमिका पर न खड़े हों,इसलिए कांग्रेस के ही नेताओं में से कुछ को अपना बताकर उनके बीच होने वाले स्वस्थ राजनीतिक विमर्श को राजनीतिक प्रतिद्वंदिता के रूप में प्रस्तुत कर उनमें जबरदस्ती की खेमेबाजी की जाए और एक दूसरे को राजनीतिक दुश्मन बताकर मामले को दूसरा रंग दिया जाए।केन्द्र की यह सरकार मानो गांधी और नेहरू विरोधियों के खिलाफ आजीवन दुरभि-संधियों के रचना विधान में ही लगे रहे।इनके पास समाज में नफरत फैलाने के अलावे और कोई काम नहीं था।

इसलिए उन्हें हिन्दू-मुस्लिम में उलझा दो। देश की जनता कहीं नागपुर मुख्यालय पर दशकों तक राष्ट्रीय ध्वज झंडा तिरंगा न फहराए जाने को मुद्दा न बना दें, इसलिए देश की जनता को अन्य ध्रुवीकृत करने वाले मुद्दों में उलझा दो। इनके वैचारिक पुरखों ने तिरंगे को लेकर क्या कहा,कहीं इस पर चर्चा न होने लगे इसलिए लोगों को उग्र राष्ट्रवाद में आंदोलित कर दो।आज फिर से भारत बनाम इंडिया किया जा रहा है। कोई कह रहा है कि इंडिया की जगह भारत कहना शुरू करो तो कोई कुछ कह रहा है।जी-20 सम्मेलन के आमंत्रण पत्र में पहली बार रिपब्लिक ऑफ इंडिया की जगह रिपब्लिक ऑफ भारत लिखा गया।स्थापित पदावली और चर्चित शब्दावली में बदलाव का औचित्य क्या है?

आप ‘भारत का गणतंत्र’ और ‘भारत का राष्ट्रपति’ भी कह सकते हैं,पर स्थापित संवैधानिक शब्दावली में हेर-फेर का औचित्य क्या है?आधा तीतर आधा बटेर? इंडिया और भारत दोनों में एक ही भाव है,एक ही गर्वबोध,फिर विभेदीकरण का औचित्य क्या? आप कुछ भी कहिये,कोई फर्क नहीं।भारत नाम हमेशा से हमारी पहचान रहा है,उससे किसी को क्या आपत्ति हो सकती है।पर इस नाम की राजनीति से क्या भारत की हकीकत बदल जाएगी?अगर अंग्रेजी शब्दों से दिक्कत है तो नवनिर्मित संसद का नाम ‘सेंट्रल विस्टा’ ही क्यों रखा गया?क्या यह ऋग्वेद से नाम उठाया गया है?और अगर इंडिया नाम से ही आप व आप की सरकार को आपत्ति है,तो फिर अभी चार साल पहले आप ही के द्वारा प्रचारित ‘मेक इन इंडिया

’,‘डिजिटल इंडिया ‘स्किल इंडिया’,‘स्टार्टअप इंडिया’और इन जैसे अन्य तमाम नामों का क्या?आखिर इन नामों के पीछे कौन सी विवशता थी? देश की जनता जानना चाहती है अगर इंडिया नाम से इतनी ही आपत्ति है तो अब क्या आप अपने उन वैचारिक पुरखों की किताबों में जहां-जहां उन्होंने इंडिया शब्द लिखा है,बदलने की संविधान में संशोधन या बदलाव करने का मन बना लिया है? क्या अब सावरकर की उस प्रसिद्ध किताब का नाम भी बदला जाएगा जो उन्होंने ‘द इंडियन वार ऑफ इंडिपेंडेंस 1857’ के नाम से लिखी थी?

देश का प्रत्येक नागरिक के मन आज अगनित सक' शंका से ग्रसित है।इसका जबाव वह केद्र की सरकार से चाहती है।अगर आप देश के नागरिक को जबाब नही देगें तो वह आप को जबाब देने का मन बना लिया है।वह दिन अब ज्यादा दुर नही है।यह पब्लिक है साहिब,सब जानती है।

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