राकेश शर्मा की 'स्मृतिरूपेण' का लोकार्पण

योगेश भट्ट 0
स्मृतियां हमारी संस्कारी ताकत हैं और बौद्धिक बल भी प्रदान करती है। राकेश शर्मा जैसे लेखक हमें समृद्ध करते हैं, क्योंकि वे आधुनिक समय का पाठ भी परंपरा की जमीन पर करते हैं। जो अपनी स्मृतियों से टूट जाता है, वह अपना सब कुछ खो देता है ।

इंदौर। आईआईएमसी के पूर्व महानिदेशक प्रो.संजय द्विवेदी का कहना है कि अपनी गौरवशाली परंपरा से भटककर हम एक अलग मार्ग पर चल पड़े, जिसके कारण विश्वगुरु भारत एक साधारण देश बन गया।

अब हमारी स्मृतियां ही हमारे खोए हुए बौद्धिक, आध्यात्मिक और आर्थिक वैभव को वापस दिला सकती हैं। इसके लिए 'विचारों की घर वापसी' जरूरी है। इंदौर स्थित श्री मध्य भारत हिंदी साहित्य समिति में आयोजित राकेश शर्मा की पुस्तक 'स्मृतिरूपेण' के लोकार्पण समारोह में संबोधित कर रहे थे।

विशेष अतिथि फगवाड़ा (पंजाब) से आए डॉ. अनिल पांडे ने कहा कि यह कृति 'स्मृति रूपेण' जड़ता में प्राण फूंकती है और संस्कृति तथा व्यावहारिकता को दृष्टि प्रदान करती है। डॉ.वसुधा गाडगिल ने कृति पर विस्तार से समीक्षात्मक विचार व्यक्त किए एवं कृति को साहित्य की धरोहर बताया ।

इस अवसर विशेष रूप से उपस्थित मध्यप्रदेश नीति आयोग के उपाध्यक्ष डॉ. सचिन चतुर्वेदी ने भी संबोधित किया तथा अपनी शुभकामनाएं व्यक्त की। कृतिकार राकेश शर्मा ने इस प्रकार के संस्मरण आधारित कृति लिखने पर अपने विचार व्यक्त किए तथा वीणा पत्रिका एवं अन्य साहित्यकारों जिनसे उन्हें प्रेरणा मिली उनके प्रति आभार व्यक्त किया।

स्वागत संबोधन समिति के प्रधानमंत्री अरविंद जवलेकर ने दिया कार्यक्रम का संचालन प्रचार मंत्री हरे राम बाजपेई ने किया तथा अंत में आभार साहित्यकार से प्रभु त्रिवेदी ने व्यक्त किया।

कार्यक्रम में निबंधकार नर्मदाप्रसाद उपाध्याय, कथाकार सूर्यकांत नागर, पत्रकार कृष्ण कुमार अष्ठाना, गोपाल माहेश्वरी, मुकेश तिवारी, अश्विन खरे, डा.पद्मा सिंह, डा.वंदना अग्निहोत्री, डा.पुष्पेंद्र दुबे, सदाशिव कौतुक उपस्थित रहे।

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