पर्यावरण को असंतुलित करने में मनुष्य का सबसे अधिक हाथ है
नयी दिल्ली,साहित्य अकादमी, दिल्ली के द्वारा 'स्वच्छता ही सेवा -2023' कार्यक्रम के अन्तर्गत ' पर्यावरण और साहित्य ' विषय पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया जिसकी अध्यक्षता प्रयाग शुक्ल ने की । इसमें अजय कुमार मिश्रा (संस्कृत), केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, दिल्ली ,अनवर पाशा (उर्दू ), जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय, दिल्ली ,पंकज चतुर्वेदी , राष्ट्रीय पुस्तक न्यास , दिल्ली ,राजीव रंजन गिरि, दिल्ली विश्वविद्यालय , दिल्ली तथा जसविंदर कौर बिंद्रा,(पंजाबी) दिल्ली विश्वविद्यालय , दिल्ली ने पर्यावरण को लेकर अपने विचार रखे।
संपादक तथा कला विशेषज्ञ प्रयाग शुक्ल ने कहा कि यह कठोर सत्य है कि पर्यावरण को विशेष कर मानव समुदाय ने असंतुलित किया है ।उन्होंने आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के हवाले यह भी कहा कि राष्ट्र केवल मनुष्य से नहीं , अपितु वहां की पर्वतों ,झीलों ,पशुओं तथा पक्षियों आदि से निर्मित होता है ।साथ ही साथ यह भी बताया कि पत्रिकारिता के जरिए भी प्राकृतिक सौन्दर्य तथा पर्यावरण के चिन्तन प्रकाश में आते रहे हैं । लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि इन दिनों जो अभद्र भाषा का प्रयोग किया जा रहा है ,वह भी भाषिक पर्यावरण के लिए कोई कम चिन्ता व्यक्त नहीं है । उन्होंने आगे यह भी कहा कि साहित्य पर्यावरण की चिन्ता जरुर जताता आया है । लेकिन इसका समाधान सबको मिल जुल कर ही करना होगा ।
अजय कुमार मिश्रा ने वैदिक साहित्य से लेकर अद्यतन संस्कृत साहित्य में निहित पर्यावरण संतुलन के फलसफा को रखते हुए कहा कि संस्कृत के इन्भौरमेन्टल ईकोनोमी दर्शन को समझने के लिए यह आवश्यक है कि आयुर्वेद तथा ज्योतिष के सहकारी भाव को जो हमारी ऋषि तथा कृषि परम्परा में संरक्षित की गई है ,उसे गंभीरता से समझा जाय क्योंकि औपनिवेशिक रणनीति के तहत पर्यावरण तथा आयुर्वेद के मौलिक और वैज्ञानिक चिन्तनों तथा उनके रिश्तों को जबरदस्त ढंग से खंडित कर के कुठाराघात किया गया । अतः अपनी माटी अपना देश को महत्त्व देना युगीन मांग है जिसमें राष्ट्रीय शिक्षा नीति -2020 की मानीखेज भूमिका हो सकती है ।
पंकज चतुर्वेदी ने महाभारत के उद्धरणों से पर्यावरण के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए समकालीन हिन्दी की रचनाओं पर भी प्रकाश डाला और चर्चित पर्यावरणविद् -साहित्यकार अनुपम मिश्र के प्रसंगों को भी उठाया । जसविंदर कौर बिंद्रा ने उर्दू अदब में पर्यावरण के सवालों को अंकित करते हुए उर्दू की लोकोक्तियों के नज़रिए से पर्यावरण पर प्रकाश डाला और अनवर पाशा ने कहा कि पर्यावरण को असंतुलित करने में मनुष्य का सबसे अधिक के हाथ रहा है । पाशा ने उर्दू की कुछ बानगी से पर्यावरण को लेकर चिन्ताओं भी स्पष्ट किया । राजीव रंजन गिरि ने कहा कि प्रकृति पर कब्ज़ा करने की लालच ने प्रकृति को दूषित तथा असंतुलित किया है ।इस संदर्भ में उन्होंने डार्विन के सिद्धांत की भी चर्चा की ।
साहित्य अकादमी के यशस्वी सचिव श्रीनिवासराव ने संगोष्ठी के अध्यक्ष तथा सभी वक्ताओं को अंगवस्त्रों से स्वागत किया । नामचीन युवा लेखक तथा समीक्षक , संपादक हिन्दी , साहित्य अकादमी,अनुपम तिवारी ने मंच का जीवन्त संचालन किया तथा अजय शर्मा ने कार्यक्रम का संयोजन ।
संपादक तथा कला विशेषज्ञ प्रयाग शुक्ल ने कहा कि यह कठोर सत्य है कि पर्यावरण को विशेष कर मानव समुदाय ने असंतुलित किया है ।उन्होंने आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के हवाले यह भी कहा कि राष्ट्र केवल मनुष्य से नहीं , अपितु वहां की पर्वतों ,झीलों ,पशुओं तथा पक्षियों आदि से निर्मित होता है ।साथ ही साथ यह भी बताया कि पत्रिकारिता के जरिए भी प्राकृतिक सौन्दर्य तथा पर्यावरण के चिन्तन प्रकाश में आते रहे हैं । लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि इन दिनों जो अभद्र भाषा का प्रयोग किया जा रहा है ,वह भी भाषिक पर्यावरण के लिए कोई कम चिन्ता व्यक्त नहीं है । उन्होंने आगे यह भी कहा कि साहित्य पर्यावरण की चिन्ता जरुर जताता आया है । लेकिन इसका समाधान सबको मिल जुल कर ही करना होगा ।
अजय कुमार मिश्रा ने वैदिक साहित्य से लेकर अद्यतन संस्कृत साहित्य में निहित पर्यावरण संतुलन के फलसफा को रखते हुए कहा कि संस्कृत के इन्भौरमेन्टल ईकोनोमी दर्शन को समझने के लिए यह आवश्यक है कि आयुर्वेद तथा ज्योतिष के सहकारी भाव को जो हमारी ऋषि तथा कृषि परम्परा में संरक्षित की गई है ,उसे गंभीरता से समझा जाय क्योंकि औपनिवेशिक रणनीति के तहत पर्यावरण तथा आयुर्वेद के मौलिक और वैज्ञानिक चिन्तनों तथा उनके रिश्तों को जबरदस्त ढंग से खंडित कर के कुठाराघात किया गया । अतः अपनी माटी अपना देश को महत्त्व देना युगीन मांग है जिसमें राष्ट्रीय शिक्षा नीति -2020 की मानीखेज भूमिका हो सकती है ।
पंकज चतुर्वेदी ने महाभारत के उद्धरणों से पर्यावरण के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए समकालीन हिन्दी की रचनाओं पर भी प्रकाश डाला और चर्चित पर्यावरणविद् -साहित्यकार अनुपम मिश्र के प्रसंगों को भी उठाया । जसविंदर कौर बिंद्रा ने उर्दू अदब में पर्यावरण के सवालों को अंकित करते हुए उर्दू की लोकोक्तियों के नज़रिए से पर्यावरण पर प्रकाश डाला और अनवर पाशा ने कहा कि पर्यावरण को असंतुलित करने में मनुष्य का सबसे अधिक के हाथ रहा है । पाशा ने उर्दू की कुछ बानगी से पर्यावरण को लेकर चिन्ताओं भी स्पष्ट किया । राजीव रंजन गिरि ने कहा कि प्रकृति पर कब्ज़ा करने की लालच ने प्रकृति को दूषित तथा असंतुलित किया है ।इस संदर्भ में उन्होंने डार्विन के सिद्धांत की भी चर्चा की ।
साहित्य अकादमी के यशस्वी सचिव श्रीनिवासराव ने संगोष्ठी के अध्यक्ष तथा सभी वक्ताओं को अंगवस्त्रों से स्वागत किया । नामचीन युवा लेखक तथा समीक्षक , संपादक हिन्दी , साहित्य अकादमी,अनुपम तिवारी ने मंच का जीवन्त संचालन किया तथा अजय शर्मा ने कार्यक्रम का संयोजन ।
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