पत्रकार नीलम गुप्ता की पुस्तक ‘गांव के राष्ट्रशिल्पी’ का लोकार्पण

० आशा पटेल ० 
नई दिल्ली। वरिष्ठ पत्रकार नीलम गुप्ता की नवीनतम प्रकाशित पुस्तक ‘गांव के राष्ट्रशिल्पी’ के लोकार्पण समारोह में मुख्य वक्ता जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी के पूर्व अर्थशास्त्री प्रोफेसर अरुण कुमार ने कहा कि आज जब जलवायु परिवर्तन के कारण हर तरफ बाढ़, तूफान, सूखा जैसी आपदाएं आम होती जा रही हैं, पुराने युद्धों के असर अभी खतम नहीं हुए कि नए युद्ध शुरू हो गए हैं।
दुनिया भर में असमानता और तेजी से बढ़ रही है। ऐसे में सारे विश्व को विकल्प की तलाश है। क्या गांधी हमें वह विकल्प देते हैं। पुस्तक ‘गांव के राष्ट्रशिल्पी’ बताती है कि कैसे गुजरात विद्यापीठ के गांधी विचार पर आधारित कार्यक्रम ग्रामशिल्पी के माध्यम से अहिसक विकास की राह को आसान बनाया जा सकता है। यही वह विकास है जो दुनिया को आज के संकटों से पार पाने की आशा जगाता है।

प्रभाष परम्परा न्यास और मेवाड़ ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशन्स की ओर से लोकार्पण समारोह गाजियाबाद में वसुंधरा स्थित मेवाड़ ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस के विवेकानंद सभागार में आयोजित किया गया  पुस्तक बताती है कि बाजारीकरण के इस दौर में अहिंसक विकास की यह राह आसान नहीं। फिर भी ग्रामशिल्पी किस तरह इस राह पर डटे रहे और अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते रहे। पुस्तक को पढ़ना व जानना इसलिए भी अहम है कि यह ऐसे कई सुझाव देती है जिन पर चलकर ग्रामशिल्पी अपने उन कार्यों को पूरा कर सकते हैं जिन्हें वे अभी तक नहीं कर पाए।

विशिष्ट वक्ता वरिष्ठ पत्रकार राम बहादुर राय ने कहा कि अब गांव भी शहरों जैसे सम्पन्न हो चुके हैं। सड़कों का जाल गांवों तक फैल गया है । अब गांव विकास की नई राह पर हैं। ऐसे में ग्रामशिल्पी का सपना साकार होता दिखाई देता है। उन्होंने कहा कि तकनीक के बदलते युग ने गांवों की परिभाषा भी बदली है। गांव का किसान भी अब आन लाइन माल बेच रहा है। उत्तर प्रदेश का किसान अमृतसर में अपनी सब्जी भेज रहा है। ऐसे में गांवों को अब नए सिरे से देखे जाने की जरूरत है।

सहित्य आज तक से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार जय प्रकाश पांडेय ने कहा-‘जैसे जैसे मैं यह किताब पढ़ता गया मुझे यह जानकर आश्चर्य हुआ कि 1920 में एक व्यक्ति इस सोच के साथ शिक्षा संस्थान की स्थापना करता है कि उसका छात्र गांव में जाकर स्वेच्छा से काम करे और उसके काम से गांव स्वायत्त हो जाए। फिर सौ साल तक यह सोच बनी भी रहे। आज जब पैसा व करियर ही सब कुछ हो तो तब कोई एक युवा तय करे कि वह किसी अनजान गांव में रहकर वहां के लोगों के लिए काम करेगा और कोई शिक्षा संस्थान तय करे कि वह दो साल तक उसकी मदद करेगा, आश्चर्यजनक है। 

मुझे समझ आया अगर एक व्यक्ति एक इकाई के रूप में अपने परिवार व समाज का विकास कर सकता है तो एक समूचा गांव और गांव समूह अगर स्वायत हो जाए तो दुनिया में जितने भी डिस्ट्रक्शन हैं, शायद हम उनसे बच पाएंगे। प्रकृति बच पाएगी। मेरे लिए ग्रामशिल्पियों पर लिखी गई यह किताब बहुत अद्भुत थी। ग्रामशिल्पी कार्यक्रम अद्भुत था। अगर मेरे समय में मेरे कालेज में यह ग्रामशिल्पी कार्यक्रम होता
तो शायद मैं भी आज एक ग्रामशिल्पी ही होता। 

मेरा कहना है कि यह पुस्तक, यह काम इतना महत्वपूर्ण है कि इस पर जितनी भी चर्चा की जाए, जितने भी संस्थानों में की जाए, वह की जानी चाहिए।राधाकृष्ण एक ग्रामशिल्पी हैं और उत्त्तर प्रदेश के आगरा जिले के राटौटी गांव में रहकर अपने आसपास के क्षेत्र की सूरत बदलने में लगे हुए हैं। उन्होंने बताया कि मैं अहमदाबाद में एक दुकानदार था। पर मैंने सोचा मुझे पैसा कमाना है। नाम कमाना है। बड़ी गाड़ी लेनी है।
को समझता गया, मेरा जोश होश में बदलता चला गया। फिर सपना जो देखा तो वह शहर का नहीं, प्रकृति के बीच एक ऐसे छोटे गांव का है ज हां मेरी जरूरत है। 

परिवार गुजरात छोड़, मूल निवासी होने के बावजूद उत्तर प्रदेश में जाने को तैयार नहीं था। पर गया। वहां अपने गांव में बच्चों से काम शुरू किया। जो बच्चे पढ़ना लिखना नहीं जानते थे छह महीने बाद वे अपने गांव पर रिपोर्ट लिखने लगे। गांवों में किसानों की सोच को बदला। आज वे मिश्रित व जैविक खेती कर रहे हैं। आज वहां एक भी किसान आत्महत्या नहीं कर रहा।

समारोह की अध्यक्षता गुजरात विद्यापीठ के कुलनायक रहे राजेंद्र खिमाणी ने की। उन्होंने बताया कि ग्रामशिल्पी कार्यक्रम की मूल भावना ‘अपने काम में श्रद्धा व विश्वास’ है। इसी भावना के साथ 2007 से यह कार्यक्रम शुरू किया गया। आसान नहीं था। कठिनाइयां बहुत आई। फिर भी ग्रामशिल्पी टिका रह सका तो अपने काम में श्रद्धा और इस विश्वास के साथ कि ईश्वर उसे भूखा नहीं सुलाएगा।हमें उनपर पूरा विश्वास था इसीलिए गुजरात विद्यापीठ ने उनसे उनके काम की कभी कोई रिपोर्ट नहीं मांगी। हर दो साल बाद वे खुद ही तय करते थे कि अपने खर्च के लिए विद्यापीठ से उन्हें कितने पैसे चाहिए।

नीलम गुप्ता ने अपनी पुस्तक में इन सब बातों का विस्तार से वर्णन किया है। उन्होंने छात्रों से अनुरोध किया कि वे उनके लोकभारती के ग्रामबंधु कार्यक्रम से जुड़े और देखें कि ग्राम विकास क्या है। उनके लिए यह जानना जरूरी है क्योंकि राष्ट्र व समाज में बदलाव युवक ही करेंगे। मेवाड़ ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस के चेयरमैन डॉ. अशोक कुमार गदिया ने बताया कि चित्तौड़गढ़ में उन्होंने मेवाड़ यूनिवर्सिटी और मेवाड़ गर्ल्स कॉलेज की शुरूआत की ही इसलिए थी कि गांवों के युवक-युवतियां वहां आकर पढ़ाई कर सकें। आज इनमें 12हजार बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं।

 इनमें 90प्रतिशत गांवों से हैं। वहां से निकलकर वे अपने गावों में जाकर अपने रोजगार शुरू कर सके इसके लिए कौशल विकास के पाठ्यक्रम चलाए जा रहे हैं। खासकर लड़कियो के लिए। ताकि गांव में रहते हुए भी वे आत्मनिर्भर बन सकें। उन्होंने ग्रामीण युवाओं व युवतियों के लिए किये जा रहे रोजगारपरक एवं शिक्षाप्रद कार्यों को ग्रामशिल्पी का अनूठा उदाहरण बताया। साथ ही गांवों से शहरी नौजवानों को जोड़ने की बात कही। उन्होंने कहा कि नौजवानों को साथ लेकर गांवों में विकास कार्यक्रम चलाने की आज महती आवश्यकता है।

नीलम गुप्ता ने पुस्तक लोकार्पण से पूर्व अपनी पुस्तक के बारे में संक्षेप में बताया। उन्होंने बताया कि पुस्तक में महात्मा गांधी के गुजरात विद्यापीठ के ग्रामशिल्पियों के कार्यों का विस्तृत और सूक्ष्म आकलन किया गया है। इसमें बताया गया है कि कैसे नौजवान लोकशक्ति को जगाकर गांवों को आत्मनिर्भरता एवं स्वराज की ओर ले जा सकते हैं। सभी नौ ग्रामशिल्पियों ने गांव की जरूरतों के मुताबिक अपने तरीके से काम किया और वही उनका अपना अपना विकास का माडल भी हो गया। यह किताब बताती है अगर हमें गांवों को आत्मनिर्भर बनाना है तो उनमें बैठकर, वहां के लोकमानस के साथ जुड़कर काम करना होगा। 

इस किताब को पढ़ने के बाद कोई भी युवक गांव में जाकर काम करने के लिए प्रेरित हो सकता है। उसे वहां टिकने व जनमानस को जगाने के कई मार्ग मिल सकते हैं। गांधी सोच के साथ अगर हम अहिंसक विकास के रास्ते पर आगे बढ़ेगे तो जलवायु परिवर्तन, भूख, गरीबी, अशिक्षा जैसी समस्याओं के हल अपने आप मिलते चले जाऐंगे।

समारोह में सेंटर फार पोलिसी स्टडीज के निदेशक जितेन्द्र बजाज समेत कई वरिष्ठ पत्रकार और मेवाड़ परिवार के सदस्य एवं विद्यार्थी मौजूद थे। प्रभाष परंपरा न्यास की ओर से उषा जोशी की विशेष मौजूदगी रही। मेवाड़ ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस की निदेशिका डॉ.अलका अग्रवाल ने सभी का आभार व्यक्त किया। संचालन की कमान अमित पाराशर ने संभाली।

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