बखत का प्रभात पर केंद्रित विशेषांक का हुआ लोकार्पण
० आशा पटेल ०
जयपुर। पिंक सिटी प्रेस क्लब में हिन्दी भाषा के प्रथम टैबलॉयड साहित्यिक अख़बार बखत के पांचवें अंक का विमोचन हुआ, जो कवि प्रभात पर एकाग्र विशेषांक है । जाने माने साहित्यकार सवाई सिंह शेखावत और डॉ सत्यनारायण ने 1985 में इसकी शुरुआत की थी,तब बखत के तीन अंक राजस्थान के कवियों क्रमश: राजेंद्र बोहरा, कृष्ण कल्पित और विनोद पदरज पर केंद्रित थे ।
जयपुर। पिंक सिटी प्रेस क्लब में हिन्दी भाषा के प्रथम टैबलॉयड साहित्यिक अख़बार बखत के पांचवें अंक का विमोचन हुआ, जो कवि प्रभात पर एकाग्र विशेषांक है । जाने माने साहित्यकार सवाई सिंह शेखावत और डॉ सत्यनारायण ने 1985 में इसकी शुरुआत की थी,तब बखत के तीन अंक राजस्थान के कवियों क्रमश: राजेंद्र बोहरा, कृष्ण कल्पित और विनोद पदरज पर केंद्रित थे ।
तीन दशक बाद बखत का पुनर्प्रकाशन शुरू हुआ तो चौथा अंक राजस्थानी के कवि लेखक नाटककार अर्जुन देव चारण पर एकाग्र था और अब कवि प्रभात पर केंद्रित अंक का जयपुर के साहित्य प्रेमियों की उपस्थिति में लोकार्पण किया गया । समारोह में प्रभात ने अपनी कविताओं का पाठ किया और प्रभात की कविता और बखत की साहित्यिक पत्रकारिता पर राजाराम भादू, कृष्ण कल्पित और संपादक सवाई सिंह शेखावत और डॉ सत्यनारायण ने विस्तार से विचार व्यक्त किए । समारोह का संचालन कमलेश तिवारी ने किया ।बखत के इस अंक में प्रभात की कविता पर अनेक टिप्पणी भी प्रकाशित है । प्रभात की कविता पर टिप्पणी कृष्ण कल्पित ने लिखा
"प्रभात को पढ़ना बोझ से हल्के हो जाना है । कवियों को भी ये कवि होने के बोझ से हल्का कर देती हैं । ये मनुष्य को पुकारती हुई कविताएं हैं । मनुष्य के सुख दुख में शामिल होना ही शायद कविता होती है । प्रभात साधारणता के विलक्षण कवि हैं । ध्यान से देखने पर ध्यान आता है कि हिंदी की समकालीन कविता जिस मध्यवर्ग की चहारदीवारी से घिरी हुई है, प्रभात की कविता उससे बाहर है । यह रास्तों, गलियों और निर्जन पथ पर उगी हुई घास है । ज़माने से हार कर पथ पर बैठे एक बेबस मनुष्य से सरकार का लेना देना नहीं हो सकता, लेकिन उस अभागे मनुष्य से कवि का लेना देना होता है ।
यहां शिल्प का कोई तामझाम नहीं है । प्रभात का कहन ही उसका शिल्प है । ये कविताएं नहीं, मनुष्य की डबडबाई हुई आंखें हैं । डबडबाई हुई आंखों से ही ऐसे जीवन के भरपूर सजल दृश्य दिखाई देते हैं ।पुरस्कार/महत्व/मान्यता की आस में बैठे जिन कवियों की आंखें पत्थर की हो गई हैं, उनमें कविता का पानी नहीं उतर सकता । ये कविताएं इतनी गीली हैं कि जिन कागज़ों पर भी इन्हें छापा जाएगा वे गल जायेंगे !"
कार्यक्रम में जयपुर के लगभग सभी साहित्यकार और साहित्य प्रेमीयों ने शिरक़त की।
कार्यक्रम में जयपुर के लगभग सभी साहित्यकार और साहित्य प्रेमीयों ने शिरक़त की।
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