भारत सरकार के अल्पसंख्यक मंत्रालय में मुस्लिम कर्मचारियों के साथ भेदभाव : एडवोकेट असलम अहमद
० संवाददाता द्वारा ०
हज में खिदमत के लिए जाने वाले हज ऑफिसर/अस्सिस्टेंट सिर्फ पुलिस फ़ोर्स से लिए जाना मौलिक अधिकारों का हनन, कोर्ट में 23 जनवरी को सुनवाई : एडवोकेट रईस अहमद
नयी दिल्ली - भारत सरकार के केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय के गए वर्ष की तरह इस बार भी असंवेधानिक व भेदभावपूर्ण आदेश जारी किया गया है। जिसके मुताबिक इस साल भी केवल पुलिस फ़ोर्स के कर्मचारियों को ही हज अफसर व हज अस्सिस्टेंट के तौर पर हज 2024 के दौरान सऊदी अरब में खिदमत के लिए चयन किया जाएगा।
हज में खिदमत के लिए जाने वाले हज ऑफिसर/अस्सिस्टेंट सिर्फ पुलिस फ़ोर्स से लिए जाना मौलिक अधिकारों का हनन, कोर्ट में 23 जनवरी को सुनवाई : एडवोकेट रईस अहमद
नयी दिल्ली - भारत सरकार के केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय के गए वर्ष की तरह इस बार भी असंवेधानिक व भेदभावपूर्ण आदेश जारी किया गया है। जिसके मुताबिक इस साल भी केवल पुलिस फ़ोर्स के कर्मचारियों को ही हज अफसर व हज अस्सिस्टेंट के तौर पर हज 2024 के दौरान सऊदी अरब में खिदमत के लिए चयन किया जाएगा।
जबकि कॉर्डिनेटर की पोस्ट के लिए भी केवल केंद्रीय कर्मचारियों को ही चयन का प्रावधान है। जिसके लिए दूसरे राज्यों व विभागों में कार्यरत मुस्लिम कर्मचारियों को इसके लिए मनाही कर दी गयी है। इस संबंध में औरंगाबाद के सरकारी वकील आमिर क़ाज़ी ने इस बार हज सेवा के लिए बॉम्बे हाई कोर्ट की औरंगाबाद बेंच के सामने अर्ज़ी दायर कर केंद्र सरकार के इस आदेश को चुनोती दी है।
आमिर क़ाज़ी वर्ष 2022 में सऊदी अरब में असिस्टेंट हज ऑफिसर के तौर पर सेवा दे चुके हैं। परंतु पिछले साल व इस साल के भेदभावपूर्ण आदेश के कारण उन्हें इस अधिकार से वंचित कर दिया गया है। जिसे वह संवैधानिक मूल अधिकारों के खिलाफ बताते हुए इसे वापस लेने और देश के दूसरे राज्यो व विभागों के कर्मचारियों को समानता के साथ चयन करने की अपील अल्पसंख्यक कार्य मंत्री स्मृति ईरानी से कर चुके है। जिसके पश्चात मंत्रालय से कोई सकारात्मक जवाब न आने के कारण उन्होंने हाई कोर्ट का रुख किया और इस भेदभावपूर्ण आदेश को चुनौती दी है जिसकी सुनवाई बॉम्बे हाई कोर्ट की औरंगाबाद बेंच में 23 जनवरी को होगी।
हर साल सऊदी अरब में हज के दौरान प्रशासनिक सेवाओं के लिए सभी विभागों व राज्यों से मुस्लिम सरकारी कर्मचारी हाजियों की सेवा के लिए जाते रहे हैं। 2014 तक केवल पुरुष कर्मचारी इस सेवा के लिए जाते थे, लेकिन कुछ वर्ष पहले जब से बिना किसी रिश्तेदार के महिलाओं को हज की इजाज़त मिली तब से महिला कर्मचारियों को भी इस सेवा के लिए चयन किया जाने लगा है। इस सिलसिले में सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट असलम अहमद व रईस अहमद जिरह करेंगे। उन्होंने अपने बयान में कहा कि
हर साल सभी विभागों के समस्त कर्मचारियों को इस सेवा का बिना भेदभाव मौक़ा दिया जाता रहा है और जो पूरी तरह अमन व सुकून के साथ अपने फ़र्ज़ की अदायगी भी करते रहें हैं। उसी प्रकार आगे भी समस्त राज्यों के विभागों से मुस्लिम कर्मचारियों का चयन किया जाना चाहिए। एडवोकेट आमिर क़ाज़ी ने बताया कि कई सरकारी कर्मचारियों ने उनसे बात कर इस आदेश पर एतराज़ जताते हुए अप्रसन्ता का इज़हार किया है।
आमिर क़ाज़ी वर्ष 2022 में सऊदी अरब में असिस्टेंट हज ऑफिसर के तौर पर सेवा दे चुके हैं। परंतु पिछले साल व इस साल के भेदभावपूर्ण आदेश के कारण उन्हें इस अधिकार से वंचित कर दिया गया है। जिसे वह संवैधानिक मूल अधिकारों के खिलाफ बताते हुए इसे वापस लेने और देश के दूसरे राज्यो व विभागों के कर्मचारियों को समानता के साथ चयन करने की अपील अल्पसंख्यक कार्य मंत्री स्मृति ईरानी से कर चुके है। जिसके पश्चात मंत्रालय से कोई सकारात्मक जवाब न आने के कारण उन्होंने हाई कोर्ट का रुख किया और इस भेदभावपूर्ण आदेश को चुनौती दी है जिसकी सुनवाई बॉम्बे हाई कोर्ट की औरंगाबाद बेंच में 23 जनवरी को होगी।
हर साल सऊदी अरब में हज के दौरान प्रशासनिक सेवाओं के लिए सभी विभागों व राज्यों से मुस्लिम सरकारी कर्मचारी हाजियों की सेवा के लिए जाते रहे हैं। 2014 तक केवल पुरुष कर्मचारी इस सेवा के लिए जाते थे, लेकिन कुछ वर्ष पहले जब से बिना किसी रिश्तेदार के महिलाओं को हज की इजाज़त मिली तब से महिला कर्मचारियों को भी इस सेवा के लिए चयन किया जाने लगा है। इस सिलसिले में सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट असलम अहमद व रईस अहमद जिरह करेंगे। उन्होंने अपने बयान में कहा कि
हर साल सभी विभागों के समस्त कर्मचारियों को इस सेवा का बिना भेदभाव मौक़ा दिया जाता रहा है और जो पूरी तरह अमन व सुकून के साथ अपने फ़र्ज़ की अदायगी भी करते रहें हैं। उसी प्रकार आगे भी समस्त राज्यों के विभागों से मुस्लिम कर्मचारियों का चयन किया जाना चाहिए। एडवोकेट आमिर क़ाज़ी ने बताया कि कई सरकारी कर्मचारियों ने उनसे बात कर इस आदेश पर एतराज़ जताते हुए अप्रसन्ता का इज़हार किया है।
लिहाज़ा केंद्र सरकार को इस आदेश को तुरंत वापस लेकर समस्त योग्य सरकारी मुस्लिम कर्मचारियों को इस सेवा का मौका दिया जाना चाहिए। लिहाज़ा हम भारत सरकार से अपील करते हैं कि तुरंत इस आदेश को वापस लेकर सभी सरकारी मुस्लिम कर्मचारियों को इस महान इबादत में अपनी सेवा का मौक़ा प्रदान करें समानता के मौलिक अधिकार की रक्षा करे।
टिप्पणियाँ