ग़ज़लों और रुबाइयों के संग्रह ‘चलो टुक मीर को सुनने’ का लोकार्पण
० योगेश भट्ट ०
नई दिल्ली. रेख्ते के मशहूर शायर मीर तक़ी मीर की 300वीं वर्षगांठ पर अंजुमन तरक्की उर्दू (हिन्दी) द्वारा इंडिया हैबिटैट सेंटर में ‘अगले जमाने में कोई मीर भी था’ कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस मौके पर मीर तक़ी मीर की 1500 से अधिक ग़ज़लों और चुनिन्दा रुबाइयों के संग्रह ‘चलो टुक मीर को सुनने’ का लोकार्पण हुआ। राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित इस किताब का सम्पादन विपिन गर्ग ने किया है।
‘चलो टुक मीर को सुनने’ संग्रह के सम्पादक विपिन गर्ग ने कहा कि मीर ने शायरी की सभी विधाओं को आज़माया लेकिन उनका पसंदीदा शगल ग़ज़ल-गोई है। मीर ने ग़ज़लों में तक़रीबन 14-15 हज़ार शे’र कहे हैं। इसी के कारण मीर को ‘ख़ुदा-ए-सुख़न’ कहा जाता है। संग्रह में मीर की ग़ज़लों के लगभग 8000 शे’रों के अलावा परिशिष्ट के रूप में 15-20 ग़ज़लें हैं जो कि उनकी मस्नवियों, शिकारनामों आदि से ली गई हैं तथा कुछ रुबाईयाँ भी इसमें दी गई हैं। मीर के हवाले से इतना बड़ा काम हिन्दी में आज तक नहीं हुआ है।
नई दिल्ली. रेख्ते के मशहूर शायर मीर तक़ी मीर की 300वीं वर्षगांठ पर अंजुमन तरक्की उर्दू (हिन्दी) द्वारा इंडिया हैबिटैट सेंटर में ‘अगले जमाने में कोई मीर भी था’ कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस मौके पर मीर तक़ी मीर की 1500 से अधिक ग़ज़लों और चुनिन्दा रुबाइयों के संग्रह ‘चलो टुक मीर को सुनने’ का लोकार्पण हुआ। राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित इस किताब का सम्पादन विपिन गर्ग ने किया है।
लोकार्पण के दौरान मंच पर अंजुमन तरक्की उर्दू (हिन्दी) के जनरल सेक्रेटरी अतहर फ़ारूक़ी, दास्तानगो मोहम्मद फ़ारूक़ी, सदफ़ फातिमा, जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के प्रो. अहमद महफ़ूज, किताब के सम्पादक विपिन गर्ग, राजकमल प्रकाशन समूह के अध्यक्ष अशोक महेश्वरी समेत अन्य गणमान्य मौजूद रहे। किताब के लोकार्पण के बाद दास्तानगो महमूद फ़ारूक़ी और दारेन शहीदी ने मीर की ज़िन्दगी पर आधारित दिलचस्प दास्तान ‘दास्तान-ए-मीर’ सुनाई।
‘चलो टुक मीर को सुनने’ संग्रह के सम्पादक विपिन गर्ग ने कहा कि मीर ने शायरी की सभी विधाओं को आज़माया लेकिन उनका पसंदीदा शगल ग़ज़ल-गोई है। मीर ने ग़ज़लों में तक़रीबन 14-15 हज़ार शे’र कहे हैं। इसी के कारण मीर को ‘ख़ुदा-ए-सुख़न’ कहा जाता है। संग्रह में मीर की ग़ज़लों के लगभग 8000 शे’रों के अलावा परिशिष्ट के रूप में 15-20 ग़ज़लें हैं जो कि उनकी मस्नवियों, शिकारनामों आदि से ली गई हैं तथा कुछ रुबाईयाँ भी इसमें दी गई हैं। मीर के हवाले से इतना बड़ा काम हिन्दी में आज तक नहीं हुआ है।
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