एंग्लो अरेबिक के हर बच्चे में नया कीर्तिमान स्थापित करने की सलाहियत है : वसीम अहमद
दिल्ली के सबसे पुराने स्कूल एंग्लो अरेबिक स्कूल के प्रिंसिपल मोहम्मद वसीम अहमद से पत्रकार इरफान राही की ख़ास बातचीत : 1692 ईस्वी में स्थापित मुगलिया दौर का अजमेरी गेट स्थित एक बहुत पुराना स्कूल है जिसे एंग्लो अरेबिक के नाम से जाना जाता है यह एकमात्र स्कूल है जिसके एक ही कैंपस में 22 सब्जेक्ट्स पढ़ाए जाते हैं यह दिल्ली का एकमात्र स्कूल है जिसके अंदर हिंदी इंग्लिश के साथ-साथ उर्दू और फ़ारसी ज़बान भी पढ़ाई जाती है। पिछले 10 वर्षों से प्रिंसिपल का कार्य भार संभालने वाले मोहम्मद वसीम अहमद से पत्रकार इरफान राही की खास बातचीत :
इरफान राही : एंग्लो अरेबिक स्कूल दिल्ली का एक जाना माना स्कूल है और उसका प्रिंसिपल होना यह अपने आप में बड़े गर्व की बात है कैसा महसूस करते हैं आप प्रिंसिपल की कुर्सी पर बैठकर ?
इरफान राही : एंग्लो अरेबिक स्कूल दिल्ली का एक जाना माना स्कूल है और उसका प्रिंसिपल होना यह अपने आप में बड़े गर्व की बात है कैसा महसूस करते हैं आप प्रिंसिपल की कुर्सी पर बैठकर ?
वसीम अहमद : मेरे जीवन के सबसे सुखद क्षणों में से वह क्षण था जब मुझे इस महान ऐतिहासिक विद्यालय के प्रधानाचार्य की जिम्मेदारी के लिए चुना गया। मेरा सौभाग्य है कि मुझे इस ऐतिहासिक विद्यालय की सेवा करने का अवसर प्राप्त हुआ।
इरफ़ान राही: आप का जन्म कहां हुआ ?
वसीम अहमद: मेरा जन्म उत्तर प्रदेश के ज़िला अमरोहा में हुआ।
इरफ़ान राही : अपने बारे में विस्तार से हमारे पाठकों को बताएं?
वसीम अहमद : मेरा पूरा नाम मोहम्मद वसीम अहमद है मेरे पिता बुंदू खान हैं मेरा जन्म 20 अक्टूबर 1965 को अमरोहा में हुआ प्राथमिक शिक्षा मैंने अपने क्षेत्रीय विद्यालय से प्राप्त की और फिर उच्च शिक्षा के लिए मैं दिल्ली आया सन 1980 में कॉमर्स , इंग्लिश और उर्दू से हाई स्कूल पास किया और 1982 में कॉमर्स और इंग्लिश से इंटरमीडिएट पास किया सन 1984 में कॉमर्स और इकोनॉमिक्स में बीकॉम किया 1986 में एमकॉम और 1989 में कॉमर्स और इकोनॉमिक्स में ही बी एड किया फिर 1990 में एलएलबी ऑल सब्जेक्ट पास आउट हुआ।
इरफ़ान राही: शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात आपने क्या सोचा और क्या किया जीवीका के लिए ?
वसीम अहमद: एलएलबी करने तक मेरी उम्र 25 साल हो गई थी 1992 से मैं एंग्लो अरेबिक स्कूल में अकाउंटेंसी में लेक्चरर रहा और अब इसी स्कूल में 2012 से प्रिंसिपल हूं और इसे नई बुलंदियों पर पहुंचाने का मैं अपना पूरा प्रयास कर रहा हूं , मैंने अपना जीवन अपने देश के भविष्य जो कि हमारे बच्चे हैं उनके लिए समर्पित कर दिया है, वो एक अच्छा इंसान, अच्छा नागरिक बनने के साथ साथ जिस क्षेत्र में भी वे जाना चाहें उस क्षेत्र में नया कीर्तिमान स्थापित करें ऐसी मेरी इच्छा और प्रयास है और ढेरों शुभकामनाएं हैं।
इरफान राही : इस स्कूल की कुछ विशेषताएं बताएं ?
वसीम अहमद : देखिए इरफान साहब एंग्लो अरेबिक स्कूल दिल्ली का नहीं बल्कि पूरे भारत का एक ऐतिहासिक स्कूल है इसका अपना एक अलग इतिहास है। नवाब ग़ाज़िउद्दीन ख़ान ने सन् 1692 ई०में इसकी बुनियाद रखी थी, इसकी इमारत काफी आकर्षक है मुग़लिया दौर का यह स्कूल पहले दिल्ली कॉलेज हुआ करता था जो अब यहां से शिफ्ट होकर के ज़ाकिर हुसैन कॉलेज में तब्दील हो गया है । इस विद्यालय की शानदार मस्जिद और इसकी भव्य लाईब्रेरी का भी अपना अलग इतिहास है।
इरफ़ान राही: सुना है कुछ नामीا गिरामी हस्तियां यहां से पढ़ कर निकली हैं .?
वसीम अहमद : हां बिल्कुल, बहुत पुराना और ऐतिहासिक स्कूल है बड़े-बड़े नामी गिरामी और नामचीन हस्तियां यहां से पढ़कर निकली हैं जिन्होंने देश व दुनिया में नाम कमाया है जिसमें अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के संस्थापक सर सैयद अहमद ख़ां ,भारत के पूर्व चीफ इलेक्शन कमीशन एस वाई कुरैशी और अगर और पूर्व में जाएं तो पाकिस्तान के प्रथम प्रधानमंत्री लियाकत अली खान वह इसी विद्यालय के विद्यार्थी रह चुके हैं, मास्टर रामचंद्र जो कि विश्व विख्यात गणितज्ञ रह चुके हैं,
वसीम अहमद : मेरा पूरा नाम मोहम्मद वसीम अहमद है मेरे पिता बुंदू खान हैं मेरा जन्म 20 अक्टूबर 1965 को अमरोहा में हुआ प्राथमिक शिक्षा मैंने अपने क्षेत्रीय विद्यालय से प्राप्त की और फिर उच्च शिक्षा के लिए मैं दिल्ली आया सन 1980 में कॉमर्स , इंग्लिश और उर्दू से हाई स्कूल पास किया और 1982 में कॉमर्स और इंग्लिश से इंटरमीडिएट पास किया सन 1984 में कॉमर्स और इकोनॉमिक्स में बीकॉम किया 1986 में एमकॉम और 1989 में कॉमर्स और इकोनॉमिक्स में ही बी एड किया फिर 1990 में एलएलबी ऑल सब्जेक्ट पास आउट हुआ।
इरफ़ान राही: शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात आपने क्या सोचा और क्या किया जीवीका के लिए ?
वसीम अहमद: एलएलबी करने तक मेरी उम्र 25 साल हो गई थी 1992 से मैं एंग्लो अरेबिक स्कूल में अकाउंटेंसी में लेक्चरर रहा और अब इसी स्कूल में 2012 से प्रिंसिपल हूं और इसे नई बुलंदियों पर पहुंचाने का मैं अपना पूरा प्रयास कर रहा हूं , मैंने अपना जीवन अपने देश के भविष्य जो कि हमारे बच्चे हैं उनके लिए समर्पित कर दिया है, वो एक अच्छा इंसान, अच्छा नागरिक बनने के साथ साथ जिस क्षेत्र में भी वे जाना चाहें उस क्षेत्र में नया कीर्तिमान स्थापित करें ऐसी मेरी इच्छा और प्रयास है और ढेरों शुभकामनाएं हैं।
इरफान राही : इस स्कूल की कुछ विशेषताएं बताएं ?
वसीम अहमद : देखिए इरफान साहब एंग्लो अरेबिक स्कूल दिल्ली का नहीं बल्कि पूरे भारत का एक ऐतिहासिक स्कूल है इसका अपना एक अलग इतिहास है। नवाब ग़ाज़िउद्दीन ख़ान ने सन् 1692 ई०में इसकी बुनियाद रखी थी, इसकी इमारत काफी आकर्षक है मुग़लिया दौर का यह स्कूल पहले दिल्ली कॉलेज हुआ करता था जो अब यहां से शिफ्ट होकर के ज़ाकिर हुसैन कॉलेज में तब्दील हो गया है । इस विद्यालय की शानदार मस्जिद और इसकी भव्य लाईब्रेरी का भी अपना अलग इतिहास है।
इरफ़ान राही: सुना है कुछ नामीا गिरामी हस्तियां यहां से पढ़ कर निकली हैं .?
वसीम अहमद : हां बिल्कुल, बहुत पुराना और ऐतिहासिक स्कूल है बड़े-बड़े नामी गिरामी और नामचीन हस्तियां यहां से पढ़कर निकली हैं जिन्होंने देश व दुनिया में नाम कमाया है जिसमें अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के संस्थापक सर सैयद अहमद ख़ां ,भारत के पूर्व चीफ इलेक्शन कमीशन एस वाई कुरैशी और अगर और पूर्व में जाएं तो पाकिस्तान के प्रथम प्रधानमंत्री लियाकत अली खान वह इसी विद्यालय के विद्यार्थी रह चुके हैं, मास्टर रामचंद्र जो कि विश्व विख्यात गणितज्ञ रह चुके हैं,
मशहूर शायर अल्ताफ हुसैन हाली ,देवबंद के संस्थापक मौलाना क़ासिम नानोतवी , मौलाना अशरफ अली थानवी, भारत की ओर से विभिन्न देशों के लिए राजनयिक रह चुके पूर्व सांसद मीम अफ़ज़ल , साहित्यकार गोपी चंद नारंग, वरिष्ठ पत्रकार पूर्व सांसद और नई दुनिया के संपादक शाहिद सिद्दीकी सहित सैंकड़ों ऐसे विद्यार्थी हैं जिन्होंने देश व दुनिया में नाम कमाया है।
इरफ़ान राही : कौन-कौन से विषय और कौन-कौन सी भाषाएं आपके इस विद्यालय में पढ़ाई जाती हैं?
वसीम अहमद : यह दिल्ली का एकमात्र ऐसा विद्यालय है जिसमें सभी स्ट्रीम पढ़ाई जाती हैं जैसे साइंस ,कॉमर्स और ह्यूमैनिटीज़ इसके साथ ही हिंदी, अंग्रेजी, अरबी और फारसी भी यहां पर पढ़ाई जाती हैब कुल 22 सब्जेक्ट्स स्कूल में पढ़ाए जाते हैं जो कि अपने आप में एक विशेषता है इस विद्यालय की। इसके अलावा खेल, एन सी सी, सांस्कृतिक गतिविधियां जैसे ड्रामा, पेंटिंग, भाषण प्रतियोगिता बैतबाज़ी, कविता, म्यूजिक आदि में होने वाली कम्पटीशन में हमारे बच्चे पुरस्कार जीत कर लाते हैं।
इरफान राही : यह एक गवर्नमेंट ऐडेड स्कूल है इसका कौन सी संस्था संचालन करती है ?
वसीम अहमद: जामिया मिलिया इस्लामिया के वॉइस चांसलर इस विद्यालय के चेयरमैन होते हैं और दिल्ली एजुकेशन सोसाइटी नामक संस्था इस विद्यालय का संचालन करती है उसी के अंतर्गत विद्यालय में जो हॉस्टल की सुविधा है इसका संचालन भी दिल्ली एजुकेशन सोसाइटी की निगरानी में होता है ।
इरफ़ान राही : कौन-कौन से विषय और कौन-कौन सी भाषाएं आपके इस विद्यालय में पढ़ाई जाती हैं?
वसीम अहमद : यह दिल्ली का एकमात्र ऐसा विद्यालय है जिसमें सभी स्ट्रीम पढ़ाई जाती हैं जैसे साइंस ,कॉमर्स और ह्यूमैनिटीज़ इसके साथ ही हिंदी, अंग्रेजी, अरबी और फारसी भी यहां पर पढ़ाई जाती हैब कुल 22 सब्जेक्ट्स स्कूल में पढ़ाए जाते हैं जो कि अपने आप में एक विशेषता है इस विद्यालय की। इसके अलावा खेल, एन सी सी, सांस्कृतिक गतिविधियां जैसे ड्रामा, पेंटिंग, भाषण प्रतियोगिता बैतबाज़ी, कविता, म्यूजिक आदि में होने वाली कम्पटीशन में हमारे बच्चे पुरस्कार जीत कर लाते हैं।
इरफान राही : यह एक गवर्नमेंट ऐडेड स्कूल है इसका कौन सी संस्था संचालन करती है ?
वसीम अहमद: जामिया मिलिया इस्लामिया के वॉइस चांसलर इस विद्यालय के चेयरमैन होते हैं और दिल्ली एजुकेशन सोसाइटी नामक संस्था इस विद्यालय का संचालन करती है उसी के अंतर्गत विद्यालय में जो हॉस्टल की सुविधा है इसका संचालन भी दिल्ली एजुकेशन सोसाइटी की निगरानी में होता है ।
इरफ़ान राही : बहुत हरा भरा है आपका स्कूल ?
वसीम अहमद : विद्यालय में एक बाग़ है जिसमें खजूर और चीड़ के विशाल पेड़ हैं, सैंकड़ों गुलाब के पेड़ पौधे हैं और एक शानदार मस्जिद है जो एंग्लो एरोबिक की ज़ीनत है , हरा भरा मैदान है बच्चों को खेलने के लिए मैदान है , साथ में शानदार मुग़लिया दौर की बेहतरीन इमारतें हैं , बहुत खूबसूरत मंज़र है , यहां की ख़ूबसूरती व पेड़ पौधे मन को लुभाते हैं।
इरफान राही : मुस्लिम बच्चों में शिक्षा के प्रति रुझान की कमी होना इसके क्या कारण है आपकी नज़र में?
वसीम अहमद: मुस्लिम बच्चों पर माता-पिता की पूरी तवज्जो और ध्यान न रखा जाना ही सबसे बड़ी वजह है कम उम्र में अधिकतर बच्चे सही फैसला लेने की सलाहियत नहीं रखते और ऐसे में उनके माता-पिता टीचर्स और जिम्मेदारान की ज़िम्मेदारियां बढ़ जाती हैं । बच्चे की हर लम्हे निगरानी रखी जाए उसकी हर नक़्ल ओ हरकत पर ध्यान रखें । मुस्लिम माता-पिता मौजूदा ज़माने में आमतौर पर आर्थिक संकट के कारण भी बच्चों की पूरी निगरानी नहीं कर पा रहे हैं ,
वसीम अहमद : विद्यालय में एक बाग़ है जिसमें खजूर और चीड़ के विशाल पेड़ हैं, सैंकड़ों गुलाब के पेड़ पौधे हैं और एक शानदार मस्जिद है जो एंग्लो एरोबिक की ज़ीनत है , हरा भरा मैदान है बच्चों को खेलने के लिए मैदान है , साथ में शानदार मुग़लिया दौर की बेहतरीन इमारतें हैं , बहुत खूबसूरत मंज़र है , यहां की ख़ूबसूरती व पेड़ पौधे मन को लुभाते हैं।
इरफान राही : मुस्लिम बच्चों में शिक्षा के प्रति रुझान की कमी होना इसके क्या कारण है आपकी नज़र में?
वसीम अहमद: मुस्लिम बच्चों पर माता-पिता की पूरी तवज्जो और ध्यान न रखा जाना ही सबसे बड़ी वजह है कम उम्र में अधिकतर बच्चे सही फैसला लेने की सलाहियत नहीं रखते और ऐसे में उनके माता-पिता टीचर्स और जिम्मेदारान की ज़िम्मेदारियां बढ़ जाती हैं । बच्चे की हर लम्हे निगरानी रखी जाए उसकी हर नक़्ल ओ हरकत पर ध्यान रखें । मुस्लिम माता-पिता मौजूदा ज़माने में आमतौर पर आर्थिक संकट के कारण भी बच्चों की पूरी निगरानी नहीं कर पा रहे हैं ,
उनकी दिलचस्पी का ध्यान नहीं रख पाते जिसकी वजह से बच्चे मैट्रिक तक पहुंचते पहुंचते उमूमन शिक्षा बीच में ही छोड़ने पर मजबूर हो जाते हैं और वह अपना मन बना लेते हैं कि अब आगे नहीं पढ़ना, अगर मुस्लिम बच्चों के अभिभावक सही देख रेख करें तो बच्चों में स्कूल छोड़ने का रुझान कम हो जाएगा।
एक बात और जो मैं यहां ज़िक्र करना चाहूंगा वह यह कि दरअसल बड़ों की ना अहली ही छोटों को ना अहल बनाती है जब हम अपने बच्चों को इतना आज़ाद छोड़ेंगे कि वह क्या पढ़ता है ,कहां जाता है ,किसके साथ उसका उठना बैठना है वगैरह तो हमारी इस लापरवाही और कोताही का बच्चा भरपूर फायदा उठाता है और वह ग़लत सोहबत और नालायक बच्चों के संग चल पड़ता है और जब तक वालिदैन और उस्ताद को मालूम होता है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है यानी बच्चा तालीम से जी चुराने लगता है।
इरफ़ान राही : ग़रीब मुसलमान अपने बच्चों को कैसे तालीम दिलाएं ?
वसीम अहमद : आपने अक्सर देखा होगा अख़बारों में पढ़ा होगा कि मज़दूरी करने वाले की बेटी - बेटे ने आईएएस पास कर लिया , किसान का बेटा इंजीनियर बन गया ,ऑटो ड्राइवर का बेटा पीएचडी कर रहा है मतलब यह है कि गुरबत से मुश्किलात ज़रूर पैदा होती हैं लेकिन अगर हम तालीम को ज़िंदगी का मक़सद बना लें तो ग़रीबी भी हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकती।
हम खुद तो मेहनत करना नहीं चाहते, मुस्लिम क़ौम अपने बच्चों को तालीम की तरफ राग़िब नहीं करना चाहती और नाकामी का ठीकरा ग़रीबी और महंगाई पर फोड़ा जाता है , जो मुसलमान ग़रीब नहीं है जिनके पास दौलत की कमी नहीं है उनमें भी तो आखिर तालीम का ग्राफ काफी हद तक कम है इसलिए हमें यह मानना ही होगा कि अगर हम तालीम के मैदान में पीछे हैं तो उसके सबसे बड़े ज़िम्मेदार भी हम खुद हैं उसके बाद महंगाई सरकारी पॉलिसीयां और मुसलमानों की आर्थिक तंगी व हालात का भी असर पड़ता है
इरफ़ान राही : शिक्षा में उत्कृष्ट कार्य करने हेतु और एक लंबे समय तक प्रिंसिपल का कार्यभार संभालने के लिए यकीनन आपको कई सरकारी व ग़ैर सरकारी संस्थाओं और अकादमियों द्वारा पुरस्कृत व सम्मानित किया गया है कुछ बताएं ?
एक बात और जो मैं यहां ज़िक्र करना चाहूंगा वह यह कि दरअसल बड़ों की ना अहली ही छोटों को ना अहल बनाती है जब हम अपने बच्चों को इतना आज़ाद छोड़ेंगे कि वह क्या पढ़ता है ,कहां जाता है ,किसके साथ उसका उठना बैठना है वगैरह तो हमारी इस लापरवाही और कोताही का बच्चा भरपूर फायदा उठाता है और वह ग़लत सोहबत और नालायक बच्चों के संग चल पड़ता है और जब तक वालिदैन और उस्ताद को मालूम होता है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है यानी बच्चा तालीम से जी चुराने लगता है।
इरफ़ान राही : ग़रीब मुसलमान अपने बच्चों को कैसे तालीम दिलाएं ?
वसीम अहमद : आपने अक्सर देखा होगा अख़बारों में पढ़ा होगा कि मज़दूरी करने वाले की बेटी - बेटे ने आईएएस पास कर लिया , किसान का बेटा इंजीनियर बन गया ,ऑटो ड्राइवर का बेटा पीएचडी कर रहा है मतलब यह है कि गुरबत से मुश्किलात ज़रूर पैदा होती हैं लेकिन अगर हम तालीम को ज़िंदगी का मक़सद बना लें तो ग़रीबी भी हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकती।
हम खुद तो मेहनत करना नहीं चाहते, मुस्लिम क़ौम अपने बच्चों को तालीम की तरफ राग़िब नहीं करना चाहती और नाकामी का ठीकरा ग़रीबी और महंगाई पर फोड़ा जाता है , जो मुसलमान ग़रीब नहीं है जिनके पास दौलत की कमी नहीं है उनमें भी तो आखिर तालीम का ग्राफ काफी हद तक कम है इसलिए हमें यह मानना ही होगा कि अगर हम तालीम के मैदान में पीछे हैं तो उसके सबसे बड़े ज़िम्मेदार भी हम खुद हैं उसके बाद महंगाई सरकारी पॉलिसीयां और मुसलमानों की आर्थिक तंगी व हालात का भी असर पड़ता है
इरफ़ान राही : शिक्षा में उत्कृष्ट कार्य करने हेतु और एक लंबे समय तक प्रिंसिपल का कार्यभार संभालने के लिए यकीनन आपको कई सरकारी व ग़ैर सरकारी संस्थाओं और अकादमियों द्वारा पुरस्कृत व सम्मानित किया गया है कुछ बताएं ?
वसीम अहमद : जी अल्लाह का शुक्र है बहुत बड़ा एहसान है कि मुझे अब तक तक़रीबन ढाई दर्जन अवार्ड मुख़्तलिफ़ काविशों , प्रोग्राम और ख़िदमत की लिए मिल चुके हैं और यह सिलसिला अभी भी जारी है इसके अलावा मैं बहुत सारी समिति संगठन में अहम ओहदों पर रहते हुए कार्य कर रहा हूं बहुत सारी सामाजिक ,शैक्षिक और सांस्कृतिक संस्थाओं और ग्रुपों के लिए कार्य कर रहा हूं ,अल्लाह का शुक्रगुज़ार हूं कि उसने बुलंद हौसला नया जज़्बा और तालिमी लहर का जुनून दिया हम कोशिश करते गए और नतीजे की कभी परवाह नहीं की इसीलिए अवार्ड भी मिले जिसके लिए मैं सभी का शुक्रगुज़ार हूं ।
इरफ़ान राही : विद्यालय प्रबंधन और टीचर्स स्टाफ के लिए क्या कहेंगे ?
इरफ़ान राही : विद्यालय प्रबंधन और टीचर्स स्टाफ के लिए क्या कहेंगे ?
वसीम अहमद : दिल्ली एजुकेशन सोसाइटी अपने आप में एक बहुत मज़बूत और एक पुरानी शैक्षिक संस्था है इसके मैनेजमेंट में बहुत तालीम याफ़्ता लोग मौजूद हैं जो स्कूल की दशा और दिशा को निरंतर संवारते रहते हैं, स्कूल का टीचिंग और नॉन टीचिंग स्टाफ बहुत कोऑपरेटिव है , डिसिप्लिन मेंटेन करके रखते हैं हम समझते हैं कि हमारे स्कूल में पढ़ने वाला हर बच्चा भारत देश और दुनिया के लिए एक नया कीर्तिमान स्थापित करने वाला हो सकता है जैसा कि पूर्व में भी हुआ है लिहाज़ा हम हर बच्चे में उसका उज्जवल भविष्य देखते हैं और उसी नज़रिए से उसकी तालीम और तबियत करते हैं।
इरफ़ान राही : अंत में क्या संदेश देना चाहेंगे ?
इरफ़ान राही : अंत में क्या संदेश देना चाहेंगे ?
वसीम अहमद: लक्ष्य प्राप्त करने के लिए बहुत ही सादा सी बात है - मेहनत, मेहनत और मेहनत ! कामयाबी हमारे क़दमों में होगी।
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