जनवादी संयुक्त मंच द्वारा "जनाधिकारों पर हमलों से उभरती चुनौतियां" विषय पर सेमिनार
० आशा पटेल ०
जयपुर / आजकल सेंसरशिप का नया तरीका है, पत्रकारों पर मुकद्दमे करके उन्हें डराना। देश में किसानों-मजदूरों के आंदोलनों पर दमन के मायने हैं लोकतंत्र का गला घोंटना। कारवां को सिर्फ एक स्टोरी करने पर वेबसाइट बंद करने की धमकी दे कर डराया जाता है। आज़ देश में ये घोषित इमेरजेंसी से भी ज़्यादा खतरनाक हालात हैं। किसानों की आवाज़ को ट्विटर पर दबाने के प्रयास हो रहे हैं। इसके लिए सरकार अपनी ताकत का दुरपयोग कर रही है।
सैमिनार को संबोधित करते हुये प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता अरुणा राय ने कहा कि हम आवाज़ तो उठाते हैं,लेकिन हमें इसे और भी मज़बूती से उठाना होगा और लगातार उठाते रहना होगा, लगातार लड़ते रहना होगा। राजस्थान में भी हम लड़ाई करते हैं और हमें लड़ते रहना होगा। जंतर मंतर पर आंदोलन करने की जगह भी आन्दोलन के लिए जगह मिली। सरकारों द्वारा जयपुर में आंदोलन की जगह कम कर दी गईं है। हमें हर तरीके से अपनी आवाज़ उठानी चाहिए ।
देश को आज कल्चरल मूवमेंट की बड़ी जरूरत है। पिछली सरकारों में हम संघर्ष करके कई कानून लेकर लाए। हमें हताश होने की ज़रूरत नहीं हैं । हमें निडरता से जुल्म के खिलाफ लड़ने की ज़रूरत है, और तानाशाही के ख़िलाफ़ भी।एक अंधेरे समय के खिलाफ। हमें एक सुंदर दुनिया का ख्वाब ज़िंदा रखते हुए लड़ते रहना होगा,चलते रहना होगा ।
कार्यक्रम के दौरान प्रसिद्ध पत्रकार, वैज्ञानिक, सामाजिक कार्यकर्ता और न्यूज़ क्लिक के सम्पादक प्रबीर पुरकायस्थ की पुस्तक " आगे और लड़ाई है , आपातकाल से वर्तमान तक का विमोचन किया गया। इस अवसर पर पुस्तक प्रदर्शनी का भी आयोजन किया गया।कार्यक्रम की शुरुआत में विषय प्रवर्तन करते हुये प्रसिद्ध समाजशास्त्री डॉ.राजीव गुप्ता ने कहा कि नवउदारवादी नीतियों के चलते फासीवाद का उभार हो रहा है।
जयपुर / आजकल सेंसरशिप का नया तरीका है, पत्रकारों पर मुकद्दमे करके उन्हें डराना। देश में किसानों-मजदूरों के आंदोलनों पर दमन के मायने हैं लोकतंत्र का गला घोंटना। कारवां को सिर्फ एक स्टोरी करने पर वेबसाइट बंद करने की धमकी दे कर डराया जाता है। आज़ देश में ये घोषित इमेरजेंसी से भी ज़्यादा खतरनाक हालात हैं। किसानों की आवाज़ को ट्विटर पर दबाने के प्रयास हो रहे हैं। इसके लिए सरकार अपनी ताकत का दुरपयोग कर रही है।
जनवादी संयुक्त मंच के बेनर तले "जनाधिकारों पर हमलों से उभरती चुनौतियां"विषय पर सेमिनार का आयोजन किया गया / इसमें दलित- आदिवासी- अल्पसंख्यक- महिला दमन प्रतिरोध आन्दोलन, राजस्थान ,जन विचार मंच, एप्सो, संयुक्त किसान मोर्चा, संयुक्त जन मोर्चा राजस्थान से जुड़े सभी दल, संगठन और व्यक्तियों के संयुक्त मंच की ओर से पिंकसिटी प्रैस क्लब में "जनाधिकारों पर हमलों से उभरती चुनौतियां"विषय पर सेमिनार का आयोजन किया गया ।
सैमिनार की अध्यक्षता पत्रकारिता विवि के पूर्व कुलपति सन्नी सेबेस्टियन ,प्रख्यात साहित्यकार पत्रकार फारूक सिद्दीकी और वरिष्ठ पत्रकार राजन महान के अध्यक्ष मंडल ने की। सैमिनार के मुख्य वक्ता प्रसिद्ध पत्रकार और द वायर के सम्पादक सिद्धार्थ वरदराजन ने कहा कि अगर विद्रोह की, विरोध की देश में कोई आवाज़ है तो उसका नाम है प्रबीर पुरकायस्थ। वो इमरजेंसी में भी फर्ज़ी आरोपों में गिरफ्तार हुए फिर अब पुनः गिरफ्तार हुए हैं ,
वो भी एकदम फ़र्ज़ी आरोपों में। आज़ की तारीख में नरेन्द्र मोदी के हिसाब से सरकार की आलोचना करना ही एक अपराध है, देशद्रोह है।पत्रकारों, बुद्धिजीवियों को सिर्फ इसीलिए गिरफ्तार किया जा रहा है क्योंकि वे किसानों ,मज़दूरों की आवाज़ बन रहे है और वो सरकार की जनविरोधी नीतियों का विरोध कर रहे हैं।
हालांकि चीनी कंपनियों से प्रबीर का दूर दूर तक कोई लेना देना नहीं है। लेकिन आज न्यायिक प्रक्रिया इतनी कमज़ोर हो गयी है कि ऐसे निराधार मामलों में भी पीड़ित को बेल नहीं मिलती है।
वरदराजन ने कहा कि ये शासक वर्ग के लोग लाल झंडे से डरते हैं, इनकी नज़रों में लाल झंडे का अर्थ है जनांदोलन और ये जनांदोलनों से डरते हैं, जनता के संघर्षों से डरते हैं। देश में यूनिवर्सिटीज के स्पेस को भी खत्म किया जा रहा है। देश की राजनीति में बुलडोज़र-राजनीति के माध्यम से सीएए जैसे जनांदोलनों को मुश्किल बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि इससे बड़ा अन्याय और क्या हो सकता है कि फादर स्टैन स्वामी की जेल में ही मृत्यू हो गई।
मुझे लगता है कि देश की मुख्यधारा की मीडिया सिर्फ आरएसएस के नफ़रत के एजेंडे को चला रहा है। सिद्धार्थ वरदराजन ने कहा कि आज आप लडने के अलावा और कुछ कर ही नही सकते हैं।सैमिनार को मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित करते हुये वरिष्ठ पत्रकार ओम थानवी ने कहा कि आज सत्य लिखने की कीमत चुकानी पड़ती है। उन्होंने कहा कि पिछली सरकारों के समय में भी पत्रकारों पर दमन होता था। परंतु आज के दौर में और भी भयानक हालात हैं। क्योंकि आज के हालात में गौरी लकेश को लिखने के लिए गोली मार दी गयी थी। मुझे भी सत्य लिखने के लिए वामपंथी कहा जाता है ।
संदीप कप्पन के साथ जो हुआ,वह भी इसका उदाहरण हैं। आज पूरा मीडिया कार्पोरेट ने खरीद लिया है ,जो सरकार के लिए काम करने लगा है। ध्रुव राठी ने जो वीडियो बनाया, वो भी आज के दौर के सत्य को बता रहा है। पहले जो बोलते थे वे भी आज कल कुछ नहीं बोल रहे हैं। आज ज्ञानपीठ जैसे पुरस्कार भी सरकार के करीबी लोगों को मिल रहे है। आज कल लोग लिखने से डरते हैं। आज साहित्यकारों पर दमन के खिलाफ कोई नहीं बोलता है।
सैमिनार को संबोधित करते हुये प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता अरुणा राय ने कहा कि हम आवाज़ तो उठाते हैं,लेकिन हमें इसे और भी मज़बूती से उठाना होगा और लगातार उठाते रहना होगा, लगातार लड़ते रहना होगा। राजस्थान में भी हम लड़ाई करते हैं और हमें लड़ते रहना होगा। जंतर मंतर पर आंदोलन करने की जगह भी आन्दोलन के लिए जगह मिली। सरकारों द्वारा जयपुर में आंदोलन की जगह कम कर दी गईं है। हमें हर तरीके से अपनी आवाज़ उठानी चाहिए ।
गाना गा कर , नाच कर हर तरह से आवाज़ उठानी होगी। वो सत्ता पर काबिज लोग समानता के मूल्यों को ख़त्म कर देना चाहते हैं। हमने सूचना का अधिकार भी आंदोलन करके ही हासिल किया था । हम आम जनता के लिए बोलते हैं तों हम अर्बन नक्सल या आंदोलनजीवी हो जाते हैं। भीमा कोरेगांव और दिल्ली के मामलों के लोग अभी तक जेल में है। गरीबों के लिए अगर काम नहीं करेंगे तो हम लेफ्ट के लोग नहीं हैं। महिला पहलवानों के साथ जो कुछ हुआ वो बहुत ही अन्यायपूर्ण हुआ।
देश को आज कल्चरल मूवमेंट की बड़ी जरूरत है। पिछली सरकारों में हम संघर्ष करके कई कानून लेकर लाए। हमें हताश होने की ज़रूरत नहीं हैं । हमें निडरता से जुल्म के खिलाफ लड़ने की ज़रूरत है, और तानाशाही के ख़िलाफ़ भी।एक अंधेरे समय के खिलाफ। हमें एक सुंदर दुनिया का ख्वाब ज़िंदा रखते हुए लड़ते रहना होगा,चलते रहना होगा ।
कार्यक्रम के दौरान प्रसिद्ध पत्रकार, वैज्ञानिक, सामाजिक कार्यकर्ता और न्यूज़ क्लिक के सम्पादक प्रबीर पुरकायस्थ की पुस्तक " आगे और लड़ाई है , आपातकाल से वर्तमान तक का विमोचन किया गया। इस अवसर पर पुस्तक प्रदर्शनी का भी आयोजन किया गया।कार्यक्रम की शुरुआत में विषय प्रवर्तन करते हुये प्रसिद्ध समाजशास्त्री डॉ.राजीव गुप्ता ने कहा कि नवउदारवादी नीतियों के चलते फासीवाद का उभार हो रहा है।
अगर हम एकजुट होकर संघर्ष करें तो इन जनविरोधी ताकतों को निश्चित रूप से हरा सकते हैं । मीडिया की आवाज़ों को भी आज एक होकर लड़ना होगा। हमें स्वतंत्रता आंदोलन के मूल्यों को लेकर आगे बढ़ना होगा। कार्यक्रम के अंत में अध्यक्ष मंडल की ओर से सैमिनार को संबोधित करते हुए प्रसिद्ध पत्रकार साहित्यकार फारूक सिद्दीकी ने कहा कि देश की जनता के लिए 2024 का आम चुनाव एक बहुत महत्वपूर्ण चुनाव है। किसान आन्दोलन ने भी देश को एक रास्ता दिखाया है।
अध्यक्ष मंडल की ओर से सन्नी सेबेस्टियन और राजन महान ने सम्बोधित करते हुये कहा कि जैसे गांधी जी के नेतृत्व में देश की जनता ने अंग्रेज़ों से लड़ाई लड़ी वैसे ही हमें भी एकजुट होकर लड़ना होगा। हमारे देश का संविधान, लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्ष व्यवस्था हमारे आज़ादी के आंदोलन की विरासत से जुड़ी हुई है।
उसे समाप्त करने के लिए उसे हमारे स्वाधीनता संग्राम की विरासत से अलग करने के लिए ही देश में साम्प्रदायिक ताकतों द्वारा हिंसा और नफरत का माहौल बनाने की कोशिश हो रही है।
उसे समाप्त करने के लिए उसे हमारे स्वाधीनता संग्राम की विरासत से अलग करने के लिए ही देश में साम्प्रदायिक ताकतों द्वारा हिंसा और नफरत का माहौल बनाने की कोशिश हो रही है।
इसे हम सब मिलकर नाकाम करेंगे।सैमिनार का मंच संचालन डॉ.संजय"माधव" , सुनीता चतुर्वेदी और सवाई सिंह ने किया।अंत में राज्य की जानी-मानी महिला नेत्रियों अरुणा रॉय, कविता श्रीवास्तव, ममता जेतली, निशा सिद्धू, सुमित्रा चोपड़ा, मंजूलता के नेतृत्व में क्रांतिकारी गीत के साथ कार्यक्रम का समापन किया गया।
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