तप्त धरा पर सावन की बूंदें बरसाओ मेघा

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सुषमा भंडारी ०
 तप्त धरा पर सावन की
बूंदें बरसाओ मेघा

माटी की सौंधी खुशबु को
लेकर आ जाओ मेघा

नव बसन्त- सा हर्षित हो मन
ऐसे गुनगुनाओ मेघा

तप्त धरा पर सावन की
बूंदें बरसाओ मेघा।।।।

मस्त पवन के झोंको के संग
नाचे जब पत्ता- पत्ता

भीषण गर्मी की इक पल में
धूमिल हो सारी सत्ता

मन चंचल हिरनी -सा दौडे
मेघों में बन जाओ मेघा

तप्त धरा पर सावन की
बूंदे बरसाओ मेघा।।।।

धरा का आँचल यूं लहराये
जैसे मोर पांखुरी- सी

रिमझिम बूंदों के अधरों पर
कान्हा की बांसुरी- सी

बूँदे बनकर ख्वाब कृषक के
आन सजा जाओ मेघा

तप्त धरा पर सावन की
बूंदें बरसाओ मेघा।।।।।

एहसासों संग भीगूं मैं भी
और करूं श्रिंगार भी

तप्त धरा हो जाये पुलकित
खूब लुटाऊँ प्यार भी

घुमड़- घुमड़ कर , उमड़- उमड़ कर
अब तो आ जाओ मेघा

तप्त धरा पर सावन की
बूंदें बरसाओ मेघा।।

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