इस अक्षय तृतीया राज्य सरकारों ने बाल विवाह रोकने की ठानी

० योगेश भट्ट ० 
नयी दिल्ली - अक्षय तृतीया के दौरान बाल विवाह की रोकथाम सुनिश्चित करने के लिए गांवों और प्रखंडों में कड़ी निगरानी रखने के निर्देश दिए हैं। जनगणना के 2011 के आंकड़ों के अनुसार देश में रोजाना 4000 बच्चों को बाल विवाह के नर्क में झोंक दिया जाता हैं। लेकिन विवाह के लिए शुभ माने जाने वाले अक्षय तृतीया के दौरान बाल विवाहों की संख्या में खास तौर से भारी बढ़ोतरी देखने को मिलती है। लेकिन इस वर्ष राज्य सरकारों के सख्त रुख को देखते हुए इसमें कमी की उम्मीद की जा सकती है।

 दस मई को पड़ने वाली अक्षय तृतीया से पूर्व राज्य सरकारों की इस अभूतपूर्व सामूहिक पहलों का स्वागत करते हुए बाल विवाह मुक्त भारत अभियान (सीएमएफआई) ने बाल विवाह की रोकथाम सुनिश्चित करने के लिए इन प्रयासों में हरसंभव सहयोग का हाथ बढ़ाया है। सीएमएफआई गहरे तक जड़े जमाए बैठे इस सामाजिक अपराध के खात्म के लिए बाल विवाह के राष्ट्रीय औसत से ज्यादा दर वाले देश के 257 जिलों में जमीनी स्तर पर काम कर रहे 161 गैरसरकारी संगठनों का गठबंधन है।

सरकार के इन प्रयासों में पूर्ण सहयोग की बात दोहराते हुए बाल विवाह मुक्त भारत अभियान के संयोजक रवि कांत ने कहा, “बाल विवाह एक गहरे तक जड़ें जमाए बैठा अपराध है जिसकी दुर्भाग्य से सामाजिक स्वीकार्यता है। इसके पूरी तरह खात्मे के लिए सभी हितधारकों की भागीदारी के साथ एक बहुआयामी रणनीति और समन्वित कार्रवाइयों की आवश्यकता है। यह तथ्य कि बाल विवाह के खात्मे के लिए इतनी राज्य सरकारों ने अद्वितीय संकल्प का प्रदर्शन करते हुए कई पहलें की हैं,

 उम्मीद जगाने वाला है। इस अक्षय तृतीया अगर हम बच्चों को बाल विवाह के नर्क में झोंके जाने से बचा सके तो यह न सिर्फ हमारी साझा लड़ाई में एक बड़ी जीत होगी बल्कि एक नए मानदंड स्थापित करेगी। इस हौसले, परस्पर सहयोग और कार्रवाइयों से भारत का 2030 तक बाल विवाह मुक्त होना निश्चित है।”

बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान की राज्य सरकारों ने अपने राज्य के सभी जिलों के जिलाधिकारियों और ग्राम पंचायतों को निर्देश जारी कर बाल विवाहों की रोकथाम के लिए जरूरी एहतियाती कदम उठाने के निर्देश दिए हैं। महिला एवं बाल कल्याण विभाग, पंचायती राज, सामाजिक सुरक्षा निदेशालय और विभिन्न राज्यों के बाल अधिकार संरक्षण आयोगों ने बाल विवाह की रोकथाम के लिए अपने गांवों और पंचायतों में अनिवार्य रूप से एक विवाह रजिस्टर रखने के निर्देश दिए हैं। 

साथ ही, कई राज्यों ने अपने प्रशासनिक अमले को विवाह संपन्न कराने में अहम भूमिका निभाने वाले पंडितों, मौलवियों सहित सभी धर्मों के पुरोहितों, शादी में खाना बनाने वालों, शादी के कार्ड छापने वालों के बीच जागरूकता अभियान चलाने के निर्देश दिए हैं ताकि वे बाल विवाह के दुष्परिणामों और इसमें किसी भी तरह से भागीदार बनने के कानूनी परिणामों से अवगत हो सकें।

इन निर्देशों के अलावा हरियाणा के महिला एवं बाल कल्याण विभाग ने बाल विवाहों की रोकथाम के उपायों के तौर पर सभी जिलों के जिलाधिकारियों को पढ़ाई बीच में छोड़ देने वाले बच्चों और लंबे समय से स्कूल से नदारद बच्चों की विद्यालयवार सूची बनाने के निर्देश दिए हैं। उत्तर प्रदेश सरकार ने बाल विवाहों की रोकथाम में नाकामी पर गांव के मुखिया, पंचों और ग्रामस्तरीय बाल संरक्षण समितियों की जवाबदेही तय करने का फैसला किया है। उत्तर प्रदेश सरकार ने पंड़ितों और मौलवियों को विवाह संपन्न कराने से पहले जोड़े की उम्र को सत्यापित करने का भी निर्देश दिया है

 जबकि राजस्थान के पंचायती राज विभाग ने अक्षय तृतीया पर बाल विवाहों की रोकथाम के लिए सभी जिलाधिकारियों को एहतियाती कदम उठाने के निर्देश दिए हैं। बताते चलें कि हाल ही में जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन एलायंस की एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए राजस्थान हाई कोर्ट ने अपने अंतरिम आदेश में राजस्थान सरकार को कहा कि वह सुनिश्चित करे कि इस अक्षय तृतीया कोई बाल विवाह नहीं होने पाए। साथ ही, हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि बाल विवाह को रोक पाने में विफल रहने पर पंचों व सरपंचों की जवाबदेही तय की जाएगी।

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