जमाअत-ए-इस्लामी हिंद ने माना चुनाव में वोटर ने नफरत के खिलाफ़ डाले वोट
० आशा पटेल ०
नई दिल्ली । जमाअत-ए-इस्लामी हिंद की केंद्रीय सलाहकार परिषद् का मानना है कि इस बार संसदीय चुनाव में लोगों का जनादेश बिल्कुल स्पष्ट है। यह जनादेश लोकतंत्र, फासीवाद और संप्रदायवाद के बजाये संवैधानिक मूल्यों, नफरत और भेदभाव के बजाये सहिष्णुता और बहुलवाद और अहंकार के बजाय विनम्रता के पक्ष में है। सलाहकार परिषद् का मानना है कि लोगों ने सत्ताधारी पार्टी को सत्ता नहीं लौटाई है, बल्कि एनडीए की गठबंधन सरकार और एक मजबूत विपक्ष के लिए वोट किया है। हकूमत के ज़िम्मेदारों को इस जनादेश को भली-भांति समझना चाहिए और उसके अनुरूप अपने दृष्टिकोण में उचित सुधार करना चाहिए।
उन्होंने बताया कि केंद्रीय सलाहकार परिषद् विपक्षी दलों से मांग करती है कि वे नतीजों और उसके जनादेश को समझें । यदि धर्मनिरपेक्ष दल अपने दलगत हितों एवं व्यक्तिगत अहंकार से ऊपर उठकर गठबंधन का रूप नहीं लेते तो उन्हें यह सफलता कभी नहीं मिलती। यह भी एक तथ्य है कि विपक्ष पर लोगों का विश्वास तब पैदा हुआ जब उसने सांप्रदायिकता, फासीवादी प्रवृत्तियों ,नफरत और भेदभाव की राजनीति के खिलाफ स्पष्ट और साहसिक रुख अपनाया।
केंद्रीय सलाहकार परिषद् का मानना है कि मुसलमानों ने चुनावों में समग्र रूप से बुद्धिमत्ता, सूझ-बूझ, अंतर्दृष्टि और धैर्य दिखाया। चुनावों के दौरान उन्हें गुमराह करने, भड़काने और उनकी भावनाओं को ठेस पहुँचाने की योजनाबद्ध और लगातार कोशिशें हुईं, लेकिन उन्होंने खुद को इस जाल से बचाए रखा और बड़ी शालीनता और सतर्कता के साथ अपने वोट का इस्तेमाल किया। यह बैठक इसके लिए उनकी सराहना करती हैं और भविष्य में भी इसी तरह का समझदारी भरा व्यवहार जारी रखने की अपील करती है।'
सलाहकार परिषद् का यह अधिवेशन केंद्र सरकार और विपक्ष दोनों से मांग करता है कि वे लोगों के इस जनादेश का सम्मान करें और लोकतांत्रिक मूल्यों और परंपराओं को ध्यान में रखें। अधिवेशन याद दिलाता है कि यह सरकार की जिम्मेदारी है कि वह देश के सभी नागरिकों के मौलिक अधिकारों का समान रूप से सम्मान करे और देश में सांप्रदायिकता और वर्ग संघर्ष पैदा न होने दे।
नई दिल्ली । जमाअत-ए-इस्लामी हिंद की केंद्रीय सलाहकार परिषद् का मानना है कि इस बार संसदीय चुनाव में लोगों का जनादेश बिल्कुल स्पष्ट है। यह जनादेश लोकतंत्र, फासीवाद और संप्रदायवाद के बजाये संवैधानिक मूल्यों, नफरत और भेदभाव के बजाये सहिष्णुता और बहुलवाद और अहंकार के बजाय विनम्रता के पक्ष में है। सलाहकार परिषद् का मानना है कि लोगों ने सत्ताधारी पार्टी को सत्ता नहीं लौटाई है, बल्कि एनडीए की गठबंधन सरकार और एक मजबूत विपक्ष के लिए वोट किया है। हकूमत के ज़िम्मेदारों को इस जनादेश को भली-भांति समझना चाहिए और उसके अनुरूप अपने दृष्टिकोण में उचित सुधार करना चाहिए।
परिषद् का यह भी मानना है कि जहां भाजपा को अपनी सांप्रदायिक नीतियों के कारण देश के उत्तरी और पश्चिमी हिस्सों में नुकसान उठाना पड़ा है, वहीं दक्षिण में उसकी पकड़ मजबूत हुई है। दक्षिणी राज्यों के लोगों की जिम्मेदारी बढ़ गई है कि वे अपने राज्यों में सांप्रदायिकता, नफरत और कट्टरता के जहर को फैलने न दें, जिसने देश के बाकी हिस्सों को गंभीर नुकसान पहुंचाया है। जमाअत-ए-इस्लामी हिंद की केंद्रीय सलाहकार परिषद् की बैठक में राष्ट्रीय अध्यक्ष सैयद साआद्तुल्लाह हुसेनी ने बताया कि देश का एक बड़ा राज्य उत्तर प्रदेश,
जहां पिछले कई वर्षों से धार्मिक नफरत के आधार पर मुसलमानों के खिलाफ ज़ुल्म और हिंसा का माहौल बनाया जा रहा था, मस्जिद मंदिर के नाम पर दो वर्गों के बीच दरार पैदा की जा रही थी और कानून के शासन के बजाय, अत्याचार , उत्पीड़न, कट्टरता और कानून के पक्षपातपूर्ण उपयोग का एक सामान्य माहौल बनाया गया था वहां राज्य के लोगों ने अपने वोटों के माध्यम से इस बुरी प्रवृत्ति के प्रति अपनी अस्वीकृति स्पष्ट रूप से व्यक्त की है।
उन्होंने बताया कि केंद्रीय सलाहकार परिषद् विपक्षी दलों से मांग करती है कि वे नतीजों और उसके जनादेश को समझें । यदि धर्मनिरपेक्ष दल अपने दलगत हितों एवं व्यक्तिगत अहंकार से ऊपर उठकर गठबंधन का रूप नहीं लेते तो उन्हें यह सफलता कभी नहीं मिलती। यह भी एक तथ्य है कि विपक्ष पर लोगों का विश्वास तब पैदा हुआ जब उसने सांप्रदायिकता, फासीवादी प्रवृत्तियों ,नफरत और भेदभाव की राजनीति के खिलाफ स्पष्ट और साहसिक रुख अपनाया।
जिन राज्यों में वे साम्प्रदायिकता के विरुद्ध स्पष्ट रुख लेकर आये, वहां उन्हें सफलता मिली और जहां वे संकोच, भय और दमन तथा लोभ और स्वार्थ के मनोविज्ञान से पीड़ित थे, वहां उन्हें इस बार भी असफलता का सामना करना पड़ा। जमाअत-ए-इस्लामी हिंद की केंद्रीय सलाहकार परिषद् हालिया चुनावों में नागरिकों के असाधारण प्रयासों की सराहना करती है,
जिन्होंने खामोशी और समझदारी से लोकतंत्र की स्थिरता और देश में सांप्रदायिक शांति और सद्भाव के स्थायित्व और दमनकारी नीतियों की रोकथाम के लिए सतत एवं समग्र संघर्ष किया तथा जनचेतना को जागृत किया। इसी प्रकार दलित और पिछड़े वर्ग के नागरिकों ने भी जनता की मूलभूत समस्याओं और संविधान की रक्षा को ध्यान में रखते हुए अपनी प्राथमिकताएं तय कीं और सकारात्मक परिणाम सामने आये।
केंद्रीय सलाहकार परिषद् का मानना है कि मुसलमानों ने चुनावों में समग्र रूप से बुद्धिमत्ता, सूझ-बूझ, अंतर्दृष्टि और धैर्य दिखाया। चुनावों के दौरान उन्हें गुमराह करने, भड़काने और उनकी भावनाओं को ठेस पहुँचाने की योजनाबद्ध और लगातार कोशिशें हुईं, लेकिन उन्होंने खुद को इस जाल से बचाए रखा और बड़ी शालीनता और सतर्कता के साथ अपने वोट का इस्तेमाल किया। यह बैठक इसके लिए उनकी सराहना करती हैं और भविष्य में भी इसी तरह का समझदारी भरा व्यवहार जारी रखने की अपील करती है।'
सलाहकार परिषद् का यह अधिवेशन केंद्र सरकार और विपक्ष दोनों से मांग करता है कि वे लोगों के इस जनादेश का सम्मान करें और लोकतांत्रिक मूल्यों और परंपराओं को ध्यान में रखें। अधिवेशन याद दिलाता है कि यह सरकार की जिम्मेदारी है कि वह देश के सभी नागरिकों के मौलिक अधिकारों का समान रूप से सम्मान करे और देश में सांप्रदायिकता और वर्ग संघर्ष पैदा न होने दे।
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