DPS DWARKA SCHOOL : दिल्ली हाई कोर्ट का बड़ा आदेश अभिभावकों को दिखी आशा की किरण

० योगेश भट्ट ० 
नई दिल्ली : डीपीएस द्वारका द्वारा मनमानी फीस वसूलने के लिए काट दिए थे 26 बच्चो के नाम। वर्षो से अभिभावक इस मनमानी के खिलाफ आवाज उठा रहे थे और शिक्षा निदेशालय से अनुरोध कर रहे थे कि अपने आदेश/नियमो का पालन कराए जिसमे वह अभी तक नाकाम रहे। अभिभावकों ने इन बच्चो के नाम दुबारा जुड़वाने के लिए डीडीई एसडबल्यू बी, नजफगढ़, दिल्ली शिक्षा निदेशालय के मुख्यालय में कई बार गुहार लगाई, ज्ञापन दिया एवम प्रदर्शन किए लेकिन आश्वाशन के सिवा कोई समाधान नहीं मिला तब थक हार के अभिभावकों ने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।

उच्च न्यायलय ने शिक्षा के मौलिक अधिकारों, शिक्षा का अधिकार एवम डीएसईएआर एक्ट 1973 के तहत अपने अंतरिम आदेश में डीपीएस स्कूल द्वारका की तानाशाही पर अंकुश लगाया जो कि देश भर के अभिभावकों के लिए भी एक ऐतिहासिक फैसला है एवम पूरे भारतवर्ष के हर निजी संस्थान के लिए एक सबक है एवम अभिभावकों के लिए सविधान एवम मौलिक अधिकारों का रक्षक है।

दिव्या मैटी ने बताया कि यह एक बेहद खुशी और गर्व की बात है कि दिल्ली उच्च न्यायालय ने सचाई को विवेकपूर्ण सुना एवम समझा और उन अभिभावकों को राहत दी जो पिछले 4 वर्षों से डीपीएस द्वारका द्वारा मांगे गए अस्वीकृत शुल्क के खिलाफ न्याय की मांग करते आ रहे हैं। स्कूल ने जबरन अस्वीकृत फीस वसूली के लिए नाबालिग बच्चों को नाम काट एवम लाइब्रेरी में बैठा कर मानसिक तौर पर प्रताड़ित कर अपने लालच की सभी हदें पार कर दी।

सोमेंद्र यादव ने बताया कि मेरी बच्ची 10th क्लास में पढ़ती है जिसका नाम इन्होंने स्वीकृत फीस हमेशा समय से देने पर भी काट दिया जिसकी वजह से हमारे और सभी अभिभावकों के घर का माहौल भी काफी खराब हो गया था यहां तक इन्होंने कुछ 10th के बच्चो के नाम पहले भी काटे थे जिन्हे इन्होंने स्कूल द्वारा आयोजित प्री मिड एग्जाम में भी नही बैठने दिया था। उच्च न्यायालय का आदेश हमारे एवम देश के सभी अभिभावकों के लिए न्याय की जीत है।

महेश मिश्रा - अभिभावक, समाजसेवी व सेक्रेटरी फैडरेशन ऑफ साउथ एंड वेस्ट डिस्ट्रीक्ट वेलफेयर फोरम दिल्ली ने कहा कि यह आदेश न्यायलय पर विश्वाश रखने वालो की जीत है एवम डीपीएस द्वारका स्कूल की मनमानी को एक सबक है। हम सभी जागरूक अभिभावकों एवम सभी प्रकाशन समूहों (मीडिया) का आभार प्रकट करते है जिन्होंने निस्वार्थ हमारा साथ दिया और हमारी आवाज को उठाते रहे।

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