महिलाओं की अस्मिता के सरंक्षण में आगे आना होगा-डॉ. नरेन्द्र कुसुम

० आशा पटेल ० 
जयपुर। मुक्तमंच' की ओर से योग साधना आश्रम में 'महिला उत्पीङन एवं सामाजिक दायित्व' विषय पर परमहंस योगिनी डॉ. पुष्पलता गर्ग के सान्निध्य , बहुभाषाविद डॉ. नरेन्द्र शर्मा कुसुम की अध्यक्षता एवं 'शब्द ससार' के अध्यक्ष श्रीकृष्ण शर्मा के संयोजन में 87 वीं मासिक संगोष्ठी सम्पन्न हुई। आईएएस रिटा. अरुण ओझा मुख्य अतिथि थे। संगोष्ठी के अध्यक्ष डॉ. नरेन्द्र शर्मा ने कहा कि महिला उत्पीङन का अभिशाप बहुत पुराना है। महिला उत्पीङन का मूल कारण सामाजिक, मानसिक, मनोवैज्ञानिक एवं व्यक्ति का विकृत मस्तिष्क है।
महिला उत्पीङन में घरेलू हिंसा और निकट रिश्तेदारों की आङ में यौन हिंसा आदि शामिल हैं। पीङिता को त्वरित न्याय नहीं मिल पा रहा क्योंकि यह समस्या शासन की प्राथमिकताओं में नहीं है । उन्होने कहा कि प्रबुद्ध न्यायप्रिय और लोकतन्त्र के पोषकों को महिला अस्मिता के सरंक्षण में आगे आना होगा ।
'शब्द संसार' के अध्यक्ष श्रीकृष्ण शर्मा ने कहा कि मासूम बच्चों तथा महिलाओं से छेङछाङ, बलात्कार की घटनाओं पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि वे विचलित,नि:शब्द हैं और दु:खी हैं । 

माना कि सख्त कानून है पर अमल भी उन पर वैसा ही होना चाहिए। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के अनुसार 2017 से 2022 तक भारत में कुल 1.89 लाख प्रकरण दर्ज हुए जिनमें 1.91 लाख पीङिताएं सम्मिलित थी। प्रतिदिन होने वाले 86 बलात्कारों में 52 पीङितों की उम्र 18 से 30 वर्ष के बीच है । अत: प्रबुद्ध नागरिको को जागरुक होकर प्रतिरोध करना होगा।

मुख्य अतिथि आईएएस रिटा. अरुण ओझा ने कहा कि हम पुरुष प्रधान समाज में रह रहे हैं जहाँ स्त्री को भोग्या मानने की मानसिकता है । यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते तत्र देवता रमन्ते की धारणा है जबकि प्राचीनकाल से नारी सत्तात्मक समाज था। सब कुछ उसी के नियन्त्रण मे था किन्तु अब पुरुष ही घर का कर्ताधर्ता है । नारी-पुरुष को बराबरी का दर्जा मिलना चाहिए पर नारी का स्वतन्त्र अस्तित्व कहीं नहीं दिखाई देता।
चिन्तक डॉ.सुभाष गुप्ता ने कहा कि बी.एच.यू. में गेंगरेप के अपराधियों को जमानत मिलने का क्या मतलब है। कोलकाता बलात्कार और हत्या प्रकरण में राजनीतिक संरक्षण की तीव्र गन्ध आ रही है। 

जब तक समाज सुधारक बलात्कार जैसी समस्या के समाधान को अपने हाथ में नहीं लेंगे तब तक कोई हल नहीं होने वाला। फास्ट ट्रेक कोर्टस् से कुछ उम्मीद बँधती है पर ठोस कुछ हुआ नहीं। पूर्व बैंकर एवं विचारक इन्द्रकुमार भंसाली ने कहा कि नारी आज भी भोग की वस्तु मानी जाती है और जब तक पुरुष प्रधान समाज नारी के प्रति अपना दृष्टिकोण नहीं बदलता तब तक नारी उत्पीङन रुकने वाला नहीं।
वरिष्ठ पत्रकार गुलाब बत्रा ने कहा कि हमारे यहाँ नारी को पूजा जाता रहा है। कन्या के जन्म पर कहा जाता था कि लक्ष्मी आ गई पर अति सर्वत्र वर्जयेत के अनुसार नारी को मानव की तरह ही ट्रीट करे उसे दुर्गा, लक्ष्मी, पार्वती मानने की आवश्यकता नहीं।

वरिष्ठ साहित्यकार फारूक आफरीदी ने कहा कि महिला उत्पीङन और हिंसा के कारण देश उबल रहा है। महिला अस्मिता की अनदेखी अक्षम्य अपराध है। आज नैतिक मूल्यों के संरक्षण और सामाजिक स्तर पर जागरुक संगठनों की जरूरत है। न्याय प्रणाली दोषियों में भय पैदा करने वाली हो।वरिष्ठ पत्रकार सुधांशु मिश्र ने कहा सामन्ती सोच से हम महिला को वस्तु समझने लगे हैं और उसकी अस्मिता के साथ खिलवाङ करने मे नहीं चूकते। चीफ जस्टिस तक व्यवस्था जनित उत्पीङन से दु:खी हैं। मीडिया चुप है, मणिपुर में तो राजसत्ता का अधोपतन हो गया। दण्ड का खौफ खत्म हो गया है।

चिन्तक और आर्थिक सलाहकार राजेन्द्र कुमार शर्मा ने कहा कि नारी सदैव से ही पुरुष की कलुषित लिप्सा की शिकार हुई है । पुरुष उसे भोग्या और सन्तति को जन्म दैने का उपकरण मात्र समझता है। आज तो युवा लज्जा बचाने के बजाय नारी पीङा, उत्पीङन, व्यभिचार को अपने कैमरे मे कैद करता है। नारी को सक्षम और सुरक्षित बनाने के लिए मार्शल आर्ट सिखाने पर ध्यान देने की जरुरत है।पूर्व मुख्य अभियन्ता दामोदर चिराणिया ने कहा कि भारत मे महिलाओं पर हो रहे अत्याचार, रेप और हत्या आम बात है। समाज में महिलाओं को आज भी दोयम दर्जे का माना जाता है।

 इस कारण जन्म से स्कूल, कॉलेज, ससुराल तक उसका उत्पीड़न होता रहता है। इन्टरनेट के माध्यम से परोसी जा रही अश्लीलता से सामाजिक सीमाएँ टूटती जा रही है। संगोष्ठी मे डॉ. सावित्री रायजादा, ललित शर्मा अकिंचन, डॉ. मंगल सोनगरा, अजीत तिवारी, लोकेश शर्मा, सुमनेश शर्मा और साहित्यकार डॉ. सुषमा शर्मा ने भी अपने विचार रखे। अन्त मे डॉ. पुष्पलता गर्ग ने आभार व्यक्त किया ।

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