अभिनेता एक,भूमिका अनेक–प्रो. रवि शर्मा ‘मधुप’
० योगेश भट्ट ०
नयी दिल्ली - अन्य कलाओं की भाँति अभिनय भी एक कला है। इसमें निखार लाने के लिए जन्मजात प्रतिभा, सीखने की ललक और निरंतर अभ्यास की आवश्यकता होती है। मंच पर अभिनय, कैमरे के सामने अभिनय से कहीं अधिक कठिन होता है, क्योंकि इसमें गलती सुधारने का अवसर नहीं मिलता। मंच पर अभिनय का एक परंपरागत रूप है - रामलीला। इन दिनों देश-विदेश में रामलीला मंचन चल रहा है। ऐसा ही एक मंचन राजधानी दिल्ली के रानी बाग क्षेत्र में श्री नागरिक रामलीला एवं दशहरा कमेटी द्वारा किया जा रहा है| इसमें दो दर्जन से अधिक कलाकार एक महीने के अभ्यास के पश्चात श्री राम की लीला का भव्य मंचन करते हैं।
नयी दिल्ली - अन्य कलाओं की भाँति अभिनय भी एक कला है। इसमें निखार लाने के लिए जन्मजात प्रतिभा, सीखने की ललक और निरंतर अभ्यास की आवश्यकता होती है। मंच पर अभिनय, कैमरे के सामने अभिनय से कहीं अधिक कठिन होता है, क्योंकि इसमें गलती सुधारने का अवसर नहीं मिलता। मंच पर अभिनय का एक परंपरागत रूप है - रामलीला। इन दिनों देश-विदेश में रामलीला मंचन चल रहा है। ऐसा ही एक मंचन राजधानी दिल्ली के रानी बाग क्षेत्र में श्री नागरिक रामलीला एवं दशहरा कमेटी द्वारा किया जा रहा है| इसमें दो दर्जन से अधिक कलाकार एक महीने के अभ्यास के पश्चात श्री राम की लीला का भव्य मंचन करते हैं।
इन कलाकारों में एक कलाकार हैं श्री राम कॉलेज ऑफ कॉमर्स के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. रवि शर्मा 'मधुप'। वे इस रामलीला में विगत 43 वर्ष से विभिन्न भूमिकाएँ निभाते आ रहे हैं। इस वर्ष भी उन्होंने अयोध्यापति दशरथ, भगवान परशुराम, किष्किंधा नरेश बाली एवं महाबली कुंभकर्ण की भूमिका को मंच पर जीवंत कर दिया। इतनी विविधतापूर्ण भूमिकाओं को वे कैसे सफलतापूर्वक निभाते हैं, यह पूछे जाने पर उन्होंने कहा, "यह मेरे पूर्व जन्म के पुण्यों का सुफल और प्रभु श्री राम की कृपा का ही परिणाम है कि मैं अपने प्रयास में कुछ सफलता प्राप्त कर पाता हूँ।
पिछले वर्ष जब पहली बार मुझे कुंभकर्ण की भूमिका सौंपी गई, तो मुझे लगा कि शायद मैं इस भूमिका के साथ न्याय नहीं कर पाऊँगा, क्योंकि मेरा शारीरिक डील-डौल इसके अनुरूप नहीं था। मैंने स्वयं को उस भूमिका के अनुरूप प्रदर्शित करने के लिए कुछ विशेष साज-सज्जा अपनाई। इससे मेरी इस भूमिका की बहुत प्रशंसा हुई और मेरा आत्म विश्वास बढ़ गया।
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