प्रदूषण से सांसत में जान : कहां जायें दिल्ली के लोग

० ज्ञानेन्द्र रावत ० 
प्रदूषण दिल्ली वासियों की नियति बन चुका है। वैसे तो प्रदूषण की मार से दिल्ली के लोग साल के बारह महीने त्रस्त रहते हैं लेकिन सर्दी की शुरुआत दिल्ली वालों के लिए आफत लेकर आती है। क्योंकि सर्दी शुरू होने के साथ ही साफ हवा उनके लिए भीषण समस्या बन जाती है। वायु प्रदूषण इसमें अहम भूमिका निबाहता है जिसके चलते दिल्ली वालों का सांस लेना तक दूभर हो जाता है। मौजूदा हालात इस बात का सबूत है कि आसमान में प्रदूषण की मोटी परत के चलते दिल्ली वालों का दम फूल रहा है। वायु गुणवत्ता सूचकांक बेहद खराब श्रेणी में रहने के कारण दिल्ली के लोगों का सांस लेना दूभर हो गया है।

 साफ हवा के लिए ड्रोन से पानी का छिड़काव भी नाकाम साबित हो रहा है। वह बात दीगर है कि इससे निपटने की दिशा में भारत सरकार ने आज से करीब सात साल पहले 2017 में ही राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के लिए ग्रेडेड एक्शन रिस्पांस प्लान यानी ग्रेप, राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम और 15वें वित्त आयोग के 'मिलियन प्लस चैलेंज फंड' के अंतर्गत धन आवंटन जैसे कदमों के तहत वायु गुणवत्ता में सुधार लाने के प्रयास किये हैं। लेकिन हालात इसके जीते-जागते सबूत हैं कि केन्द्र सरकार और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की सरकार के लाख प्रयासों के बावजूद वायु गुणवत्ता के मामले में सारे प्रयास नाकाम साबित हुए हैं और दिल्ली साफ हवा के लिए तरस रही है।

हालात सबूत हैं कि दिल्ली प्रदूषण में शीर्ष पर है और दिल्ली के आसमान पर स्माग ने डेरा डाल रखा है। नतीजा दृश्यता का स्तर बेहद प्रभावित हुआ है। हवा की रफ्तार कम होने और सर्दी बढ़ने के साथ ही स्माग बढ़ने का अंदेशा बढ़ता जा रहा है। सरकारी आंकड़ों की मानें तो पिछले साल की तुलना में इस बरस पड़ोसी राज्यों में पराली जलाने की घटनाओं में कमी दर्ज की गयी है लेकिन हालात इसके उलट गवाही दे रहे हैं। इसके बावजूद दिल्ली के लोगों को पराली के प्रदूषण से लेशमात्र भी छुटकारा नहीं मिला। कारण यह है कि पराली के जलाये जाने का सिलसिला बदस्तूर जारी है। अकेले पंजाब में एक दिन में 730 जगह पखाली जलाने की घटनाएं सरकारी दावों की कलई खोलने को काफी हैं।

असलियत यह है कि तापमान में गिरावट आने से हवा में मौजूद नमी के कणों के ठोस होने की वजह से कोहरा कहें या फौग बनने लगता है। ऐसी हालत में हवा में पहले से मौजूद धुंध आदि के प्रदूषक तत्व नमी के इन कणों के साथ मिलकर स्माग बनाते हैं। चूंकि इसमें तमाम तरह के हानिकारक प्रदूषक होते हैं, यही वजह है कि स्माग स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक हो जाता है। केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार दिल्ली की हवा में प्रदूषण का जहर तेजी से बढ़ता जा रहा है। पिछले दिनों में वायु गुणवत्ता सूचकांक 300 से ऊपर यानी बेहद खराब श्रेणी में रहा है। बीता सप्ताह इसका प्रमाण है। पिछले दिनों दिल्ली में कहीं वायु गुणवत्ता सूचकांक अत्यंत गंभीर श्रेणी 400 के पार तक पहुंच गया। 

देखा जाये तो दिल्ली की हवा में इस समय सामान्य से तीन गुणा से भी ज्यादा प्रदूषण है। दिल्ली राजधानी क्षेत्र में आजकल हवा में पी एम 10 का स्तर 318 और पी एम 2.5 का स्तर 177 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से ज्यादा है जिसके फिलहाल कम होने की उम्मीद बेमानी है। जबकि स्वास्थ्य की दृष्टि से पी एम 10 का स्तर 100 से कम और पी एम 2.5 का स्तर 60 से कम ही उचित माना जाता है। खतरनाक स्थिति यह है कि दिल्ली के आसमान पर अब धुंध की परत साफ-साफ दिखाई दे रही है। ऐसी हालत में दिल्ली के लोगों को जानलेवा प्रदूषित हवा से राहत मिलने की उम्मीद बेमानी है।

दिल्ली में प्रदूषण का स्तर भयावह श्रेणी में पहुंचने के कारण अब ऐसे लोग भी भारी तादाद में अस्पताल पहुंच रहे हैं जिन्हें कभी भी सांस की बीमारी थी ही नहीं। हालात इतने खराब हो गये हैं कि ऐसी शिकायतें अब आम हो गयीं हैं जिनमें लोग कहते हैं कि अब जब वे सुबह उठते हैं तो उन्हें गले में तेज दर्द होता है और बार-बार मुश्किल से कफ निकल पाता है। इसकी पुष्टि राम मनोहर लोहिया अस्पताल के मैडिसिन विभाग के प्रोफेसर डा० पुतिन गुप्ता करते हुए कहते हैं कि बीते दिनों से अस्पताल में श्वसन, नाक-कान-गला, त्वचा रोग के रोगियों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी हो रही है।

 एक्स की रूमेटोलाजी विभाग की प्रमुख डा० उमा कुमार की मानें तो प्रदूषित तत्व सांस लेते वक्त शरीर के अंदर जाकर खून में घुल जाते हैं। फिर वे दिल और सांस की नली के प्रोटीन में मिलते हैं तो शरीर के प्रतिरोधी तंत्र इन्हें बाहरी समझ कर इनसे लड़ने के लिए एंटीबाडी पैदा करने लगते हैं। ये एंटीबाडी घुटनों या जोडो़ं की कोशिकाओं पर हमला करने लगते हैं जिससे आटोइम्यून बीमारियों जैसे जोडो़ं और गठिया का खतरा बढ़ जाता है। ऐसी हालत में शरीर को बीमारियों से रक्षा करने वाला प्रतिरोधी तंत्र खुद ही स्वस्थ कोशिकाओं पर हमला करने लगता है। 

अधिकांश लोग बच्चों की खांसी न रुकने और सांस अटकने की शिकायत कर रहे हैं। लगातार खांसी से जूझते बच्चों के माता-पिता से अपने बच्चों को कुछ दिन दिल्ली से बाहर पहाडो़ं पर ले जाने की डाक्टर सलाह दे रहे हैं। दिल्ली स्थित आयुर्विज्ञान संस्थान के मैडिसिन विभाग के प्रोफेसर डा० नीरज निश्चल की मानें तो घातक वायु प्रदूषण के पीछे पी एम 2.5 और पी एम 10 की अहम भूमिका होती है। प्रदूषण से शरीर को कोई भी अंग प्रभावित हुए नहीं रहता। प्रदूषण से सिर से लेकर पैर तक नुकसान होता है। 

दी लैंसेट प्लेनेटरी हैल्प जरनल में प्रकाशित एक महत्वपूर्ण अध्ययन जो दुनिया के 13,000 से अधिक शहरों और कस्बों पर किया गया है, के अनुसार दुनिया में पी एम 2.5 से हर साल 10 लाख लोग मौत के मुंह में चले जाते हैं। इनमें अकेले 60 फीसदी लोग एशिया के होते हैं। वायु प्रदूषण से हृदय, फेफड़े, मधुमेह, यकृत, हड्डियों के कमजोर होने, त्वचा और मूत्राशय के कैंसर जैसी बीमारियों के शिकार होते हैं लोग। यही नहीं हवा में घुले धूल के छोटे-छोटे कण बेहद खतरनाक होते हैं। ये कण आंखों और नाक में घुसकर बड़ी परेशानी की वजह बन जाते हैं। यह वैज्ञानिक आधार पर साबित भी हो चुका है।

अध्ययन और शोधों से यह साबित हो गया है कि वायु प्रदूषण से सांस के रोगियों की तादाद में ही बढ़ोतरी नहीं हो रही है बल्कि इससे अजन्मे शिशु का स्वास्थ्य भी गंभीर रूप से प्रभावित हो रहा है। पी एम 2.5 बढ़ने से गर्भवती महिला के बच्चे का वजन 23.4 ग्राम और पी एम 10 बढ़ने से गर्भ में पल रहे बच्चे का वजन 16.8 ग्राम कम हो जाता है। यही नहीं नाइट्रस आक्साइड में सांस लेने से 16 फीसदी गर्भपात होने का अंदेशा बना रहता है। इसके साथ ही प्रदूषण बच्चों के कम विकसित दिमाग और आटिज्म जैसे न्यूरो विकार की संभावना को बढ़ा देता है।

 एम्स दिल्ली के बायोकैमिस्ट्री विभाग के प्रोफेसर डा० संदीप करमाकर का कहना है कि गर्भ में पल रहे बच्चों तक प्रदूषण इतना गहरा असर डालता है कि इससे उनका दिमाग पूरी तरह विकसित नहीं हो पाता है। यहां तक उसमें आटिज्म और अल्जाइमर जैसी बीमारी का खतरा बढ़ जाता है। जाहिर है और शोधों व अध्ययनों से यह साबित भी हो गया है कि प्रदूषण अब जानलेवा हो गया है और बच्चों के जीवन के लिए भयावह स्तर तक खतरा बन चुका है। यही वजह है डाक्टर बच्चों को दिल्ली से बाहर पहाडो़ं पर ले जाने की सलाह दे रहे हैं। अभिभावकों के लिए यह दुविधा की स्थिति है कि वह जायें तो कहां जायें?

 जबकि दूसरी ओर कहा जा रहा है कि इस समस्या का समाधान सामूहिक प्रयासों से ही संभव है और हवा स्वच्छ रखने में नागरिकों को अपनी भूमिका निबाहनी चाहिए। अब सवाल यह उठता है कि हवा साफ रखने में नागरिक की भूमिका क्या है। यदि नागरिक ही इसके लिए जिम्मेदार है तो उस दशा में सरकार क्या करेगी? इस सवाल पर बहस जरूरी है कि आखिर इसके लिए जिम्मेदार है कौन?

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